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SC ने केंद्र से कहा- सभी अनाथ बच्चों तक कोविड-19 योजनाओं का लाभ पहुंचाने की संभावनाएं तलाशें - सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने केंद्र से सभी अनाथ बच्चों तक पीएम केयर्स फंड सहित कोविड-19 योजनाओं का लाभ पहुंचाने की संभावनाएं तलाशने को कहा. साथ ही कोर्ट ने केंद्र और सभी राज्य सरकारों से प्रतिक्रिया मांगी है.

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 16, 2023, 5:51 PM IST

नई दिल्ली : भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ (Chief Justice of India DY Chandrachud) ने कहा कि कोविड-19 महामारी के कारण अनाथ हुए बच्चे और उस बच्चे के बीच अंतर करना उचित नहीं है जिसके माता या पिता की दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी. कोर्ट ने केंद्र से सभी अनाथ बच्चों तक पीएम केयर्स फंड सहित कोविड-19 योजनाओं का लाभ पहुंचाने की संभावनाएं तलाशने को कहा. साथ ही कोर्ट ने केंद्र और सभी राज्य सरकारों से इस पर प्रतिक्रिया मांगी कि क्या धारा 2 (घ) शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 में वंचित समूहों से संबंधित बच्चे की अभिव्यक्ति को परिभाषित किया गया है, इसमें अनाथ बच्चे भी शामिल हो सकते हैं.

शुक्रवार को सुनवाई की शुरुआत में प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ की अध्यक्षता वाली पीठ ने एक जनहित याचिका पर शुक्रवार को कहा कि 5 जुलाई, 2018 को अदालत ने एक जनहित याचिका पर केंद्र और राज्यों को नोटिस जारी किया था. वहीं केंद्र सरकार को अनाथों को वही लाभ देने का निर्देश दिया था जो अल्पसंख्यक समुदायों और बीपीएल श्रेणियों के बच्चों को मिलता है. हालांकि, सरकार ने अब तक कोई जवाब दाखिल नहीं किया है. मामले में सुनवाई के दौरान वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि पीएम केयर्स योजना के तहत कोविड-19 महामारी के दौरान अनाथ हुए लोगों को दिया जाने वाला लाभ सभी अनाथों को दिया जाना चाहिए.

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अदालत ने पॉलोमी पाविनी शुक्ला द्वारा दायर जनहित याचिका पर 1 मई, 2023 को जारी अपने आदेश में इसे चिह्नित किया था और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल विक्रमजीत बनर्जी के साथ अपना सुझाव साझा करने के लिए कहा था ताकि इसे संबंधित मंत्रालय तक पहुंचाया जा सके. साथ ही पीठ ने केंद्र से जवाब मांगा कि क्या महामारी में अनाथ हुए बच्चों को पीएम केयर्स फंड के तहत दिए जाने वाले लाभ अन्य माता-पिता रहित बच्चों को भी दिए जा सकते हैं.

याचिकाकर्ता ने जोर देकर कहा कि यह भेदभाव करना अनुचित है कि उनके माता-पिता की मृत्यु कैसे हुई... इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि वास्तव में आप सही हैं कि यह उचित नहीं है. हो सकता है कि उन्होंने कोविड के लिए सही नीति बनाई हो, लेकिन अब आपको इसे हर किसी के लिए विस्तारित करना चाहिए, एक अनाथ अनाथ होता है, भले ही उसके पिता या माता की मृत्यु हो गई हो. सड़क दुर्घटना या बीमारी से... आप स्थिति की देखभाल कर रहे हैं, माता-पिता की नहीं.

याचिकाकर्ता ने कहा कि बड़ा मुद्दा यह है कि अनाथ बच्चों को विभिन्न रूपों में समानता के अधिकार से वंचित किया जा रहा है. इस पर अदालत को ध्यान देने की जरूरत है. मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अदालत जानना चाहेगी कि उनके पास क्या योजनाएं हैं और वे क्या करने की योजना बना रहे हैं, इस पर कोर्ट अधिकारियों पर दबाव डाल सकती है. वहीं भूषण ने कहा कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) को दिया जाने वाला लाभ, सभी निजी स्कूलों में ईडब्ल्यूएस के लिए 20 प्रतिशत आरक्षण है और इसे अनाथ बच्चों तक नहीं बढ़ाया जा रहा है.भूषण ने जोर देकर कहा कि सरकार को इस मुद्दे का समाधान करना चाहिए. इस पर मुख्य न्यायाधीश ने बनर्जी से कहा कि उन्हें इस मामले को किसी अन्य मामले की तरह नहीं देखना होगा. एएसजी ने कहा कि वह निर्देश लेंगे.

वहीं सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने कहा कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम धारा 2 (डी) के तहत प्रत्येक राज्य को किसी भी अन्य अतिरिक्त बच्चों को सूचित करने का अधिकार देता है जिन्हें कमजोर और लाभ के लिए पात्र माना जा सकता है. उन्होंने कहा कि 2013 में गुजरात और 2015 में दिल्ली ने साधारण जीओ (सरकारी आदेश) द्वारा ऐसा किया है. इसके लिए कैबिनेट नोट की आवश्यकता नहीं है. अन्य राज्यों को भी यही आदेश जारी करने के लिए निर्देशित किया जा सकता है. एएसजी ने कहा कि मुझे नहीं लगता कि सभी राज्यों ने अपने हलफनामे दाखिल किए हैं. इस पर भूषण ने कहा कि इसके अंतर्गत उन्हें अनाथ बच्चों को भी शामिल करना चाहिए. सुनवाई के दौरान पीठ ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम की धारा 2 (डी) पर गौर करते हुए कहा कि सरकार को वंचित समूहों के बच्चों में अनाथ बच्चों को भी शामिल करने पर विचार करना चाहिए.

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल का कहना है कि केंद्र सरकार अनाथों का लाभ सुनिश्चित करने वाली सरकार की विभिन्न योजनाओं के संबंध में एक अद्यतन स्थिति प्रदान करने वाला एक व्यापक हलफनामा दायर करेगी. इसके अलावा अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल इस बात पर भी निर्देश देंगे कि क्या उन योजनाओं का लाभ जो कोविड-19 महामारी के दौरान अनाथ बच्चों के लिए प्रदान की गई थी उसे सभी अनाथ बच्चों तक बढ़ाया जा सकता है. आदेश में कहा गया है कि अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल और राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के स्थायी वकील इस बात पर भी निर्देश देंगे कि क्या याचिकाकर्ता द्वारा दिए गए किसी भी सुझाव को योजनाओं को फिर से तैयार करने या अद्यतन करते समय शामिल किया जा सकता है.

ये भी पढ़ें - Bombay HC judge : हाईकोर्ट ने आरोपी का पक्ष लेने का दावा करने वाले पत्र की सीबीआई जांच के दिए आदेश

नई दिल्ली : भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ (Chief Justice of India DY Chandrachud) ने कहा कि कोविड-19 महामारी के कारण अनाथ हुए बच्चे और उस बच्चे के बीच अंतर करना उचित नहीं है जिसके माता या पिता की दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी. कोर्ट ने केंद्र से सभी अनाथ बच्चों तक पीएम केयर्स फंड सहित कोविड-19 योजनाओं का लाभ पहुंचाने की संभावनाएं तलाशने को कहा. साथ ही कोर्ट ने केंद्र और सभी राज्य सरकारों से इस पर प्रतिक्रिया मांगी कि क्या धारा 2 (घ) शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 में वंचित समूहों से संबंधित बच्चे की अभिव्यक्ति को परिभाषित किया गया है, इसमें अनाथ बच्चे भी शामिल हो सकते हैं.

शुक्रवार को सुनवाई की शुरुआत में प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ की अध्यक्षता वाली पीठ ने एक जनहित याचिका पर शुक्रवार को कहा कि 5 जुलाई, 2018 को अदालत ने एक जनहित याचिका पर केंद्र और राज्यों को नोटिस जारी किया था. वहीं केंद्र सरकार को अनाथों को वही लाभ देने का निर्देश दिया था जो अल्पसंख्यक समुदायों और बीपीएल श्रेणियों के बच्चों को मिलता है. हालांकि, सरकार ने अब तक कोई जवाब दाखिल नहीं किया है. मामले में सुनवाई के दौरान वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि पीएम केयर्स योजना के तहत कोविड-19 महामारी के दौरान अनाथ हुए लोगों को दिया जाने वाला लाभ सभी अनाथों को दिया जाना चाहिए.

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अदालत ने पॉलोमी पाविनी शुक्ला द्वारा दायर जनहित याचिका पर 1 मई, 2023 को जारी अपने आदेश में इसे चिह्नित किया था और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल विक्रमजीत बनर्जी के साथ अपना सुझाव साझा करने के लिए कहा था ताकि इसे संबंधित मंत्रालय तक पहुंचाया जा सके. साथ ही पीठ ने केंद्र से जवाब मांगा कि क्या महामारी में अनाथ हुए बच्चों को पीएम केयर्स फंड के तहत दिए जाने वाले लाभ अन्य माता-पिता रहित बच्चों को भी दिए जा सकते हैं.

याचिकाकर्ता ने जोर देकर कहा कि यह भेदभाव करना अनुचित है कि उनके माता-पिता की मृत्यु कैसे हुई... इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि वास्तव में आप सही हैं कि यह उचित नहीं है. हो सकता है कि उन्होंने कोविड के लिए सही नीति बनाई हो, लेकिन अब आपको इसे हर किसी के लिए विस्तारित करना चाहिए, एक अनाथ अनाथ होता है, भले ही उसके पिता या माता की मृत्यु हो गई हो. सड़क दुर्घटना या बीमारी से... आप स्थिति की देखभाल कर रहे हैं, माता-पिता की नहीं.

याचिकाकर्ता ने कहा कि बड़ा मुद्दा यह है कि अनाथ बच्चों को विभिन्न रूपों में समानता के अधिकार से वंचित किया जा रहा है. इस पर अदालत को ध्यान देने की जरूरत है. मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अदालत जानना चाहेगी कि उनके पास क्या योजनाएं हैं और वे क्या करने की योजना बना रहे हैं, इस पर कोर्ट अधिकारियों पर दबाव डाल सकती है. वहीं भूषण ने कहा कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) को दिया जाने वाला लाभ, सभी निजी स्कूलों में ईडब्ल्यूएस के लिए 20 प्रतिशत आरक्षण है और इसे अनाथ बच्चों तक नहीं बढ़ाया जा रहा है.भूषण ने जोर देकर कहा कि सरकार को इस मुद्दे का समाधान करना चाहिए. इस पर मुख्य न्यायाधीश ने बनर्जी से कहा कि उन्हें इस मामले को किसी अन्य मामले की तरह नहीं देखना होगा. एएसजी ने कहा कि वह निर्देश लेंगे.

वहीं सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने कहा कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम धारा 2 (डी) के तहत प्रत्येक राज्य को किसी भी अन्य अतिरिक्त बच्चों को सूचित करने का अधिकार देता है जिन्हें कमजोर और लाभ के लिए पात्र माना जा सकता है. उन्होंने कहा कि 2013 में गुजरात और 2015 में दिल्ली ने साधारण जीओ (सरकारी आदेश) द्वारा ऐसा किया है. इसके लिए कैबिनेट नोट की आवश्यकता नहीं है. अन्य राज्यों को भी यही आदेश जारी करने के लिए निर्देशित किया जा सकता है. एएसजी ने कहा कि मुझे नहीं लगता कि सभी राज्यों ने अपने हलफनामे दाखिल किए हैं. इस पर भूषण ने कहा कि इसके अंतर्गत उन्हें अनाथ बच्चों को भी शामिल करना चाहिए. सुनवाई के दौरान पीठ ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम की धारा 2 (डी) पर गौर करते हुए कहा कि सरकार को वंचित समूहों के बच्चों में अनाथ बच्चों को भी शामिल करने पर विचार करना चाहिए.

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल का कहना है कि केंद्र सरकार अनाथों का लाभ सुनिश्चित करने वाली सरकार की विभिन्न योजनाओं के संबंध में एक अद्यतन स्थिति प्रदान करने वाला एक व्यापक हलफनामा दायर करेगी. इसके अलावा अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल इस बात पर भी निर्देश देंगे कि क्या उन योजनाओं का लाभ जो कोविड-19 महामारी के दौरान अनाथ बच्चों के लिए प्रदान की गई थी उसे सभी अनाथ बच्चों तक बढ़ाया जा सकता है. आदेश में कहा गया है कि अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल और राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के स्थायी वकील इस बात पर भी निर्देश देंगे कि क्या याचिकाकर्ता द्वारा दिए गए किसी भी सुझाव को योजनाओं को फिर से तैयार करने या अद्यतन करते समय शामिल किया जा सकता है.

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