नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को न्यायाधीशों की नियुक्ति में “देरी” पर निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि कॉलेजियम की 70 सिफारिशें अब भी सरकार के पास अटकी हुई हैं और अटॉर्नी जनरल से इस मुद्दे को हल करने के लिए उनके कार्यालय का उपयोग करने को कहा. न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ द्वारा मामला उठाए जाने के बाद अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए लंबित सिफारिशों पर निर्देश लेने के लिए एक सप्ताह का समय मांगा.
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति कौल ने वेंकटरमणी को बताया, “आज मैं चुप हूं क्योंकि अटॉर्नी जनरल ने बहुत कम समय मांगा है, अगली बार मैं चुप नहीं रहूंगा। इन मुद्दों का समाधान देखने के लिए अपने अच्छे कार्यालय का उपयोग करें.” पीठ ने कहा, “पिछले सप्ताह तक 80 सिफारिशें लंबित थीं, जब 10 नामों को मंजूरी दी गई। अब, यह आंकड़ा 70 है, जिनमें से 26 सिफारिशें न्यायाधीशों के स्थानांतरण की हैं, सात सिफारिशें दोहराई गई हैं, नौ कॉलेजियम को वापस किए बिना लंबित हैं और एक मामला संवेदनशील उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति का है.”
न्यायालय ने कहा कि ये सभी सिफारिशें पिछले साल नवंबर से लंबित हैं. न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि लंबित सिफारिशों पर कोई ठोस कार्रवाई सात महीनों से नहीं हुई है और मामूली प्रक्रियागत कदम उठाने से यह काम हो जाते हैं. शीर्ष अदालत और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति को देखने वाले उच्चतम न्यायालय का हिस्सा न्यायमूर्ति कौल ने कहा, “हमने चीजों को आगे बढ़ाने और बारीकी से निगरानी करने का प्रयास किया है. मैंने अटॉर्नी जनरल से कहा है कि हर 10-12 दिन में यह मामला उठाया जाएगा, ताकि मेरे पद छोड़ने (25 दिसंबर) से पहले पर्याप्त काम हो जाए.”
कॉलेजियम प्रणाली के माध्यम से न्यायाधीशों की नियुक्ति अतीत में उच्चतम न्यायालय और केंद्र के बीच टकराव की प्रमुख वजह बन गई है और इस तंत्र की विभिन्न क्षेत्रों से आलोचना हो रही है. शीर्ष अदालत बेंगलुरु के एडवोकेट्स एसोसिएशन द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें 2021 के फैसले में अदालत द्वारा निर्धारित समय-सीमा का कथित तौर पर पालन नहीं करने के लिए केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रालय के खिलाफ अवमानना कार्रवाई की मांग की गई थी.
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