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SC ने जमानत मिलने के बाद रिहाई में देरी के मामले का स्वत: संज्ञान लिया - जमानत मिलने के बाद रिहाई में देरी

उच्चतम न्यायालय ने आठ जुलाई को जमानत पाने वाले 13 कैदियों को रिहा करने में उत्तर प्रदेश के अधिकारियों की ओर से देरी का स्वत: संज्ञान लिया है. पढ़ें पूरी खबर...

सुप्रीम कोर्ट
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Published : Jul 15, 2021, 7:25 PM IST

Updated : Jul 15, 2021, 8:12 PM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने आठ जुलाई को जमानत पाने वाले 13 कैदियों को रिहा करने में उत्तर प्रदेश के अधिकारियों की ओर से देरी का स्वत: संज्ञान लिया है. इन कैदियों को शीर्ष अदालत ने जमानत दी थी.दोषी हत्या के एक मामले में आगरा जेल में 14 से लेकर 22 साल से बंद हैं. वे जुर्म के समय किशोर थे.

तेरह दोषियों ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था और दावा किया था कि उनकी हिरासत अवैध है, क्योंकि फरवरी 2017 और मार्च 2021 के बीच विभिन्न अंतराल पर उनमें से प्रत्येक के मामले में किशोर न्याय बोर्ड ने स्पष्ट आदेश पारित किए थे, जिसमें उन्हें हत्या के समय किशोर घोषित किया गया था.

शीर्ष अदालत ने आठ जुलाई को उन्हें अंतरिम जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया था और उत्तर प्रदेश सरकार को उनके किशोर होने के आदेश के बावजूद जेल में निरंतर रहने के तथ्यों को सत्यापित करने के लिए समय दिया था.

प्रधान न्यायाधीश एन वी रमना ने उन रिपोर्ट का संज्ञान लिया है जिनमें कहा गया है कि उन दोषियों को जमानत देने के बावजूद अब तक रिहा नहीं किया गया है, जिनकी अपराध के समय किशोरता स्थापित हो चुकी है.

जमानत मिलने के बाद दोषियों को रिहा करने में देरी शीर्षक से 13 जुलाई को नए मामले का स्वत: संज्ञान लिया गया जिसपर शुक्रवार को प्रधान न्यायाधीश, न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की पीठ सुनवाई करेगी.

13 कैदियों ने अपनी याचिका में कहा था कि किशोर न्याय बोर्ड द्वारा अपराध किए जाने के समय उन्हें 18 साल से कम उम्र का घोषित किए जाने के बावजूद वे जेल में बंद हैं.

याचिका में कहा गया था कि वे 14 से लेकर 22 वर्षों से जेल में हैं जबकि किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम में अधिकतम तीन साल की कैद का प्रावधान है और वह भी किशोर गृहों में.

शीर्ष अदालत शुक्रवार को 2020 के अन्य स्वत: संज्ञान मामले में अपने आठ मई के आदेश के संबंध में स्थिति का जायज़ा लेगी. यह मामला कोविड-19 के प्रसार की वजह से जेलों में भीड़-भाड़ को कम करने से संबंधित है.

कोरोना वायरस के मरीजों की संख्या मे अप्रत्याशित बढ़ोतरी’ को देखते हुए प्रधान न्यायाधीश के नेतृत्व वाली पीठ ने आठ मई को जेलों में भीड़-भाड़ कम करने के लिए कई निर्देश जारी किए थे और आदेश दिया था कि उन कैदियों को फौरन रिहा किया जाए जिन्हें पिछले साल जमानत या पेरोल दी गई थी.

शीर्ष अदालत ने 16 मार्च 2020 को देश भर की जेलों के क्षमता से अधिक भरे होने का स्वत: संज्ञान लिया था और कहा था कि कैदियों के लिए यह मुश्किल है कि वे कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए एक दूसरे से दूरी बनाएं.

यह भी पढ़ें- मुकदमों में विलंब के कारण जेल में रहने को मजबूर हैं विचाराधीन कैदी : हाईकोर्ट

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने आठ जुलाई को जमानत पाने वाले 13 कैदियों को रिहा करने में उत्तर प्रदेश के अधिकारियों की ओर से देरी का स्वत: संज्ञान लिया है. इन कैदियों को शीर्ष अदालत ने जमानत दी थी.दोषी हत्या के एक मामले में आगरा जेल में 14 से लेकर 22 साल से बंद हैं. वे जुर्म के समय किशोर थे.

तेरह दोषियों ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था और दावा किया था कि उनकी हिरासत अवैध है, क्योंकि फरवरी 2017 और मार्च 2021 के बीच विभिन्न अंतराल पर उनमें से प्रत्येक के मामले में किशोर न्याय बोर्ड ने स्पष्ट आदेश पारित किए थे, जिसमें उन्हें हत्या के समय किशोर घोषित किया गया था.

शीर्ष अदालत ने आठ जुलाई को उन्हें अंतरिम जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया था और उत्तर प्रदेश सरकार को उनके किशोर होने के आदेश के बावजूद जेल में निरंतर रहने के तथ्यों को सत्यापित करने के लिए समय दिया था.

प्रधान न्यायाधीश एन वी रमना ने उन रिपोर्ट का संज्ञान लिया है जिनमें कहा गया है कि उन दोषियों को जमानत देने के बावजूद अब तक रिहा नहीं किया गया है, जिनकी अपराध के समय किशोरता स्थापित हो चुकी है.

जमानत मिलने के बाद दोषियों को रिहा करने में देरी शीर्षक से 13 जुलाई को नए मामले का स्वत: संज्ञान लिया गया जिसपर शुक्रवार को प्रधान न्यायाधीश, न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की पीठ सुनवाई करेगी.

13 कैदियों ने अपनी याचिका में कहा था कि किशोर न्याय बोर्ड द्वारा अपराध किए जाने के समय उन्हें 18 साल से कम उम्र का घोषित किए जाने के बावजूद वे जेल में बंद हैं.

याचिका में कहा गया था कि वे 14 से लेकर 22 वर्षों से जेल में हैं जबकि किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम में अधिकतम तीन साल की कैद का प्रावधान है और वह भी किशोर गृहों में.

शीर्ष अदालत शुक्रवार को 2020 के अन्य स्वत: संज्ञान मामले में अपने आठ मई के आदेश के संबंध में स्थिति का जायज़ा लेगी. यह मामला कोविड-19 के प्रसार की वजह से जेलों में भीड़-भाड़ को कम करने से संबंधित है.

कोरोना वायरस के मरीजों की संख्या मे अप्रत्याशित बढ़ोतरी’ को देखते हुए प्रधान न्यायाधीश के नेतृत्व वाली पीठ ने आठ मई को जेलों में भीड़-भाड़ कम करने के लिए कई निर्देश जारी किए थे और आदेश दिया था कि उन कैदियों को फौरन रिहा किया जाए जिन्हें पिछले साल जमानत या पेरोल दी गई थी.

शीर्ष अदालत ने 16 मार्च 2020 को देश भर की जेलों के क्षमता से अधिक भरे होने का स्वत: संज्ञान लिया था और कहा था कि कैदियों के लिए यह मुश्किल है कि वे कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए एक दूसरे से दूरी बनाएं.

यह भी पढ़ें- मुकदमों में विलंब के कारण जेल में रहने को मजबूर हैं विचाराधीन कैदी : हाईकोर्ट

Last Updated : Jul 15, 2021, 8:12 PM IST
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