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'मकानों पर पोस्टर लगने के बाद मरीजों के साथ हो रहा अछूतों जैसा व्यवहार' - सर्वोच्चय अदालत

कोविड-19 मरीजों के घरों के बाहर पोस्टर लगाने के बाद उनके साथ 'अछूतों' जैसा व्यवहार वाली बात पर केंद्र ने सर्वोच्चय अदालत से कहा कि मरीजों को 'कलंकित' करने की मंशा नहीं है, इसके पीछे मकसद अन्य लोगों को सुरक्षित रखने का है.

Supreme court
उच्चतम न्यायालय
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Published : Dec 1, 2020, 6:44 PM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कहा कि कोविड-19 मरीजों के मकान के बाहर एक बार पोस्टर लग जाने पर उनके साथ 'अछूतों' जैसा व्यवहार हो रहा है और यह जमीनी स्तर पर एक अलग हकीकत बयान करता है. इस पर केंद्र ने शीर्ष अदालत से कहा कि हालांकि, उसने यह नियम नहीं बनाया है, लेकिन इसकी कोविड-19 मरीजों को 'कलंकित' करने की मंशा नहीं है, इसका लक्ष्य अन्य लोगों की सुरक्षा करना है.

न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति आर. सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति एम. आर. शाह की पीठ ने कहा, जमीनी स्तर की हकीकत कुछ अलग है और उनके मकानों पर ऐसा पोस्टर लगने के बाद उनके साथ अछूतों जैसा व्यवहार हो रहा है. केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि कुछ राज्य संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए अपने स्तर पर ऐसा कर रहे हैं.

आदेश पर केंद्र का जवाब
मेहता ने कहा, कोविड-19 मरीजों के मकान पर पोस्टर चिपकाने का तरीका खत्म करने के लिए देशव्यापी दिशानिर्देश जारी करने का अनुरोध किया गया. इस अनुरोध याचिका पर न्यायालय के आदेश पर केंद्र अपना जवाब दे चुका है. पीठ ने कहा, केंद्र द्वारा दाखिल जवाब को रिकॉर्ड पर आने दें, उसके बाद बृहस्पतिवार को हम इस पर सुनवाई करेंगे. शीर्ष अदालत ने पांच नवंबर को केंद्र से कहा था कि वह कोविड-19 मरीजों के मकान पर पोस्टर चिपकाने का तरीका खत्म करने के लिए दिशानिर्देश जारी करने पर विचार करें.

नोटिस जारी किए बिना मांगा जवाब
न्यायालय ने कुश कालरा की अर्जी पर सुनवाई करते हुए केंद्र को औपचारिक नोटिस जारी किए बिना जवाब मांगा था. पीठ ने कहा था कि जब दिल्ली उच्च न्यायालय में शहर की सरकार मरीजों के मकानों पर पोस्टर नहीं लगाने पर राजी हो सकती है, तो इस संबंध में केंद्र सरकार पूरे देश के लिए दिशा-निर्देश जारी क्यों नहीं कर सकती. दिल्ली सरकार ने तीन नवंबर को दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया कि उसने अपने सभी जिलों को निर्देश दिया है. निर्देश के मुताबिक, वे कोविड-19 मरीजों या गृहपृथक-वास में रह रहे लोगों के मकानों पर पास्टर ना लगाएं और पहले से लगे पोस्टरों को भी हटा लें.

पढ़ें: एक 'गलत' क्लिक के चलते IIT में दाखिले से चूके छात्र ने SC का दरवाजा खटखटाया

उच्च न्यायालय में दी गई अर्जी
दिल्ली सरकार ने अदालत को बताया कि उसके अधिकारियों को कोविड-19 मरीजों से जुड़ी जानकारी उनके पड़ोसियों, आरडब्ल्यूए या व्हाट्सएप ग्रुप पर साझा करने की भी अनुमति नहीं है. कालरा ने उच्च न्यायालय में दी गई अर्जी में कहा था कि कोविड-19 मरीज के नाम को आरडब्ल्यूए और व्हाट्सएप ग्रुप पर साझा करने से न सिर्फ वे कलंकित हो रहे हैं, बल्कि बिना वजह लोगों का ध्यान उन पर जा रहा है.

अर्जी में इस बात का उल्लेख
अर्जी में कहा गया है कि कोविड-19 मरीजों को निजती दी जानी चाहिए और उन्हें इस बीमारी से उबरने के लिए शांति और लोगों की घूरती हुई नजरों से दूर रखा जाना चाहिए, लेकिन उन्हें दुनिया की नजरों के सामने लाया जा रहा है. उसमें यह भी दावा किया गया है कि सार्वजनिक रूप से अपमानित और कलंकित होने से बचने के लिए लोग अपनी कोविड-19 जांच कराने से हिचक रहे हैं और यह सब कुछ मरीजों के मकानों पर पोस्टर चिपकाने का नतीजा है.

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कहा कि कोविड-19 मरीजों के मकान के बाहर एक बार पोस्टर लग जाने पर उनके साथ 'अछूतों' जैसा व्यवहार हो रहा है और यह जमीनी स्तर पर एक अलग हकीकत बयान करता है. इस पर केंद्र ने शीर्ष अदालत से कहा कि हालांकि, उसने यह नियम नहीं बनाया है, लेकिन इसकी कोविड-19 मरीजों को 'कलंकित' करने की मंशा नहीं है, इसका लक्ष्य अन्य लोगों की सुरक्षा करना है.

न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति आर. सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति एम. आर. शाह की पीठ ने कहा, जमीनी स्तर की हकीकत कुछ अलग है और उनके मकानों पर ऐसा पोस्टर लगने के बाद उनके साथ अछूतों जैसा व्यवहार हो रहा है. केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि कुछ राज्य संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए अपने स्तर पर ऐसा कर रहे हैं.

आदेश पर केंद्र का जवाब
मेहता ने कहा, कोविड-19 मरीजों के मकान पर पोस्टर चिपकाने का तरीका खत्म करने के लिए देशव्यापी दिशानिर्देश जारी करने का अनुरोध किया गया. इस अनुरोध याचिका पर न्यायालय के आदेश पर केंद्र अपना जवाब दे चुका है. पीठ ने कहा, केंद्र द्वारा दाखिल जवाब को रिकॉर्ड पर आने दें, उसके बाद बृहस्पतिवार को हम इस पर सुनवाई करेंगे. शीर्ष अदालत ने पांच नवंबर को केंद्र से कहा था कि वह कोविड-19 मरीजों के मकान पर पोस्टर चिपकाने का तरीका खत्म करने के लिए दिशानिर्देश जारी करने पर विचार करें.

नोटिस जारी किए बिना मांगा जवाब
न्यायालय ने कुश कालरा की अर्जी पर सुनवाई करते हुए केंद्र को औपचारिक नोटिस जारी किए बिना जवाब मांगा था. पीठ ने कहा था कि जब दिल्ली उच्च न्यायालय में शहर की सरकार मरीजों के मकानों पर पोस्टर नहीं लगाने पर राजी हो सकती है, तो इस संबंध में केंद्र सरकार पूरे देश के लिए दिशा-निर्देश जारी क्यों नहीं कर सकती. दिल्ली सरकार ने तीन नवंबर को दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया कि उसने अपने सभी जिलों को निर्देश दिया है. निर्देश के मुताबिक, वे कोविड-19 मरीजों या गृहपृथक-वास में रह रहे लोगों के मकानों पर पास्टर ना लगाएं और पहले से लगे पोस्टरों को भी हटा लें.

पढ़ें: एक 'गलत' क्लिक के चलते IIT में दाखिले से चूके छात्र ने SC का दरवाजा खटखटाया

उच्च न्यायालय में दी गई अर्जी
दिल्ली सरकार ने अदालत को बताया कि उसके अधिकारियों को कोविड-19 मरीजों से जुड़ी जानकारी उनके पड़ोसियों, आरडब्ल्यूए या व्हाट्सएप ग्रुप पर साझा करने की भी अनुमति नहीं है. कालरा ने उच्च न्यायालय में दी गई अर्जी में कहा था कि कोविड-19 मरीज के नाम को आरडब्ल्यूए और व्हाट्सएप ग्रुप पर साझा करने से न सिर्फ वे कलंकित हो रहे हैं, बल्कि बिना वजह लोगों का ध्यान उन पर जा रहा है.

अर्जी में इस बात का उल्लेख
अर्जी में कहा गया है कि कोविड-19 मरीजों को निजती दी जानी चाहिए और उन्हें इस बीमारी से उबरने के लिए शांति और लोगों की घूरती हुई नजरों से दूर रखा जाना चाहिए, लेकिन उन्हें दुनिया की नजरों के सामने लाया जा रहा है. उसमें यह भी दावा किया गया है कि सार्वजनिक रूप से अपमानित और कलंकित होने से बचने के लिए लोग अपनी कोविड-19 जांच कराने से हिचक रहे हैं और यह सब कुछ मरीजों के मकानों पर पोस्टर चिपकाने का नतीजा है.

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