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जंगल पर नहीं हो सकता अतिक्रमण, लोगों को वहां रहने का अधिकार नहीं : सुप्रीम कोर्ट

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Published : Nov 12, 2021, 8:46 PM IST

Updated : Nov 12, 2021, 8:52 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि वह खोरी गांव निवासियों के लिए पुनर्वास योजना के संबंध में आदेश पारित करेगा और सोमवार यानि 15 नवंबर को विध्वंस के मामले पर विचार करेगा. बता दें कि खोरी गांव में वन भूमि से लगभग 10,000 घरों को हटा दिया गया था क्योंकि वे अवैध रूप से बनाए गए थे. अदालत ने हरियाणा सरकार को उन लोगों के पुनर्वास की व्यवस्था करने के लिए कहा था. जिसके बाद इस पुनर्वास योजना को अदालत में चुनौती दी गई थी.

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नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि फरीदाबाद के खोरी गांव स्थित अरावली वन क्षेत्र में अनधिकृत अवसंरचना के निवासियों को वहां रहने का कोई अधिकार नहीं है और जंगल कोई खुली जमीन नहीं है, जिस पर कोई भी अतिक्रमण कर ले.

शीर्ष अदालत ने कहा कि उसने बार-बार वन भूमि पर संरचनाओं के अस्तित्व पर सवाल उठाया था. न्यायालय खोरी गांव में जंगल की जमीन पर अनधिकृत अवसंरचना को ढहाने के मामले की सुनवाई कर रहा था.

न्यायालय की यह टिप्पणी कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश एक वकील की दलीलें सुनने के बाद आई, जिसने फरीदाबाद नगर निगम की पुनर्वास योजना में पात्रता मानदंड सहित आवास के अधिकार, आजीविका के अधिकार और जीवन के अधिकार जैसी दलीलें दी थी.

न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी की खंडपीठ ने कहा, 'कृपया समझें कि आपको जंगल में रहने का कोई अधिकार नहीं था. जंगल में रहने के अधिकार का दावा कोई नहीं कर सकता. यह खुली जमीन नहीं है, जिस पर कोई भी कब्जा कर सकता है.’’

पीठ ने कहा, जंगल में रहने का कोई अधिकार नहीं है. आपको हटा दिया गया है क्योंकि यह एक वन क्षेत्र है और वह घोषणा थी…. न्यायालय बार-बार उस जमीन पर संरचनाओं के अस्तित्व पर सवाल उठाता रहा है.

सुनवाई के दौरान कुछ अन्य याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख ने योजना में पात्रता शर्तों और आवासीय प्रमाण स्थापित करने के लिए दस्तावेजों सहित कुछ पहलुओं पर अपनी दलीलें रखीं.

पीठ ने कहा कि पहला मुद्दा अनिवार्य रूप से घर के असली मालिक की पहचान करना और यह तय करना है कि क्या इस तरह के ढांचे को गिराया गया था. दूसरा मुद्दा यह है कि क्या व्यक्ति अवैध ढांचा ढहाये जाने के बदले पुनर्वास का पात्र है.

पढ़ें :- SC की सख्ती के बावजूद दिल्ली की 48,000 झुग्गियां रेलवे के लिए बाधा

पीठ ने पारिख से कहा, 'जहां तक पहचान का सवाल है, यह वास्तविक कब्जाधारी सहित उन सभी के हित में है, जो पुनर्वास के पात्र हैं.'

नगर निगम की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अरुण भारद्वाज ने कहा कि खोरी गांव में आवेदकों के निवास का प्रमाण स्थापित करने का स्रोत केवल ‘आधार कार्ड’ नहीं हो सकता.

पीठ ने कहा कि आधार कार्ड को निवास के प्रमाण के रूप में नहीं माना जा सकता है, इसे पहचान के प्रमाण के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा.

इसने कहा कि जिस ढांचे को गिराया गया था, उसके अस्तित्व और अन्य प्रासंगिक चीजों की जांच निगम को करनी होगी.

पीठ ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 15 नवंबर की तिथि मुकर्रर की है.

शीर्ष अदालत ने गत आठ अक्टूबर को कहा था कि पुनर्वास योजना के तहत पात्र आवेदकों को ईडब्ल्यूएस (आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग) फ्लैटों का अस्थायी आवंटन करने के लिए आधार कार्ड नगर निगम द्वारा प्रामाणिक दस्तावेजों में से एक होगा.

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि फरीदाबाद के खोरी गांव स्थित अरावली वन क्षेत्र में अनधिकृत अवसंरचना के निवासियों को वहां रहने का कोई अधिकार नहीं है और जंगल कोई खुली जमीन नहीं है, जिस पर कोई भी अतिक्रमण कर ले.

शीर्ष अदालत ने कहा कि उसने बार-बार वन भूमि पर संरचनाओं के अस्तित्व पर सवाल उठाया था. न्यायालय खोरी गांव में जंगल की जमीन पर अनधिकृत अवसंरचना को ढहाने के मामले की सुनवाई कर रहा था.

न्यायालय की यह टिप्पणी कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश एक वकील की दलीलें सुनने के बाद आई, जिसने फरीदाबाद नगर निगम की पुनर्वास योजना में पात्रता मानदंड सहित आवास के अधिकार, आजीविका के अधिकार और जीवन के अधिकार जैसी दलीलें दी थी.

न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी की खंडपीठ ने कहा, 'कृपया समझें कि आपको जंगल में रहने का कोई अधिकार नहीं था. जंगल में रहने के अधिकार का दावा कोई नहीं कर सकता. यह खुली जमीन नहीं है, जिस पर कोई भी कब्जा कर सकता है.’’

पीठ ने कहा, जंगल में रहने का कोई अधिकार नहीं है. आपको हटा दिया गया है क्योंकि यह एक वन क्षेत्र है और वह घोषणा थी…. न्यायालय बार-बार उस जमीन पर संरचनाओं के अस्तित्व पर सवाल उठाता रहा है.

सुनवाई के दौरान कुछ अन्य याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख ने योजना में पात्रता शर्तों और आवासीय प्रमाण स्थापित करने के लिए दस्तावेजों सहित कुछ पहलुओं पर अपनी दलीलें रखीं.

पीठ ने कहा कि पहला मुद्दा अनिवार्य रूप से घर के असली मालिक की पहचान करना और यह तय करना है कि क्या इस तरह के ढांचे को गिराया गया था. दूसरा मुद्दा यह है कि क्या व्यक्ति अवैध ढांचा ढहाये जाने के बदले पुनर्वास का पात्र है.

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पीठ ने पारिख से कहा, 'जहां तक पहचान का सवाल है, यह वास्तविक कब्जाधारी सहित उन सभी के हित में है, जो पुनर्वास के पात्र हैं.'

नगर निगम की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अरुण भारद्वाज ने कहा कि खोरी गांव में आवेदकों के निवास का प्रमाण स्थापित करने का स्रोत केवल ‘आधार कार्ड’ नहीं हो सकता.

पीठ ने कहा कि आधार कार्ड को निवास के प्रमाण के रूप में नहीं माना जा सकता है, इसे पहचान के प्रमाण के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा.

इसने कहा कि जिस ढांचे को गिराया गया था, उसके अस्तित्व और अन्य प्रासंगिक चीजों की जांच निगम को करनी होगी.

पीठ ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 15 नवंबर की तिथि मुकर्रर की है.

शीर्ष अदालत ने गत आठ अक्टूबर को कहा था कि पुनर्वास योजना के तहत पात्र आवेदकों को ईडब्ल्यूएस (आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग) फ्लैटों का अस्थायी आवंटन करने के लिए आधार कार्ड नगर निगम द्वारा प्रामाणिक दस्तावेजों में से एक होगा.

Last Updated : Nov 12, 2021, 8:52 PM IST
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