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सुप्रीम कोर्ट में जलापूर्ति मामला : हरियाणा के खिलाफ दिल्ली सरकार की याचिका खारिज

उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय राजधानी में जलापूर्ति को लेकर 1996 के एक आदेश के कथित उल्लंघन का आरोप लगाते हुए हरियाणा के खिलाफ दिल्ली सरकार की ओर से दायर अवमानना याचिका को खारिज कर दिया.

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Published : Jul 23, 2021, 3:20 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने आज दिल्ली सरकार की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें सरकार ने हरियाणा के खिलाफ आरोप लगाए थे. कोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी में जलापूर्ति के मामले में दिल्ली की अवमानना याचिका को खारिज किया है.

बता दें कि दिल्ली के पास कोई जल स्रोत नहीं है. दिल्ली पानी के लिए पड़ोसी राज्यों उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा पर निर्भर है. जिसके चलते इन राज्यों से दिल्ली का विवाद होता रहा है. दिल्ली सरकार राजधानी में पानी की कमी के लिए हरियाणा को जिम्मेदार ठहरा रही है. दिल्ली जल बोर्ड ने हरियाणा पर पानी की कटौती का आरोप लगाते सुप्रीम कोर्ट के 1996 के आदेश का पालन न करने के लिए हरियाणा के मुख्य सचिव, अतिरिक्त मुख्य सचिव और जल संसाधन विभाग के खिलाफ अवमानना ​​याचिका दायर की थी.

1956 से चल रहा है विवाद
हालांकि, हरियाणा सरकार दिल्ली सरकार के आरोपों को नकारते हुए दिल्ली सरकार पर पानी की बर्बादी का आरोप लगाए हैं. यह भी दिलचस्प है कि दिल्ली और हरियाणा के बीच पानी के बंटवारे को लेकर होने वाला विवाद नया नहीं है. यह विवाद 1956 से ही चल रहा है, जब वह पूर्वी पंजाब का हिस्सा था. इस बीच दोनों सरकारें हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में भी लड़ती रही हैं, लेकिन ये समस्या आज भी नहीं सुलझी है. बरसात के दिनों में जब यमुना का जलस्तर बढ़ता है तो दिल्ली में जलभराव की समस्या आ जाती है, वहीं जब गर्मी के समय में दिल्ली बूंद-बूंद के लिए तरसती है तो हरियाणा सरकार पर पानी की कटौती के आरोप लगते रहे हैं.

इसको लेकर यमुना नदी ट्रेब्यूनल बनाया गया जिसमें पानी के बंटवारे की सीमा तय की गई. उसके बाद में सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 1995 में दिल्ली को पानी देने को लेकर फैसला सुनाया. लेकिन इस बार ये विवाद फिर गहराता जा रहा है. पिछले काफी दिनों से दिल्ली सरकार हरियाणा सरकार पर लगातार दिल्ली के हक का पानी रोकने का आरोप लगा रही है.

ये भी पढ़ें- दिल्ली में पानी की कमी के लिए हरियाणा की खट्टर सरकार जिम्मेदार : राघव चड्ढा

दिल्ली जल बोर्ड के उपाध्यक्ष राघव चड्ढा का आरोप है कि हरियाणा यमुना नदी में 221 क्यूसेक यानी करीब 100 MGD पानी कम छोड़ रहा है. जिसके चलते दिल्ली के तीन बड़े वाटर ट्रीटमेंट प्लांट के प्रोडक्शन में 100 MGD की कमी आई है. जो 245 MGD से घटकर 145 MGD हो गई है. वहीं चंद्रावल में 90 MGD से घटकर 55 MGD, वजीराबाद में 135 MGD से घटकर 80 MGD और ओखला में 20 MGD से घटकर 15 MGD रह गई है.

राघव चड्ढा ने कहा कि हरियाणा सरकार की कटौती के कारण NDMC के VIP इलाकों जैसे, सुप्रीम कोर्ट, प्रधानमंत्री निवास, राष्ट्रपति भवन और दूतावास के इलाकों में पानी की सप्लाई बाधित हो रही है. साथ ही आम जनता भी त्राहि-त्राहि कर रही है .

ये भी पढ़ें- दिल्ली पर मंडरा रहा जल संकट, हरियाणा सरकार पर लगा ये आरोप

वहीं हरियाणा सरकार दिल्ली सरकार के आरोपों को नकारती रही है. हरियाणा के मुख्यमंत्री का कहना है कि दिल्ली में पानी की कमी का जिम्मेदार आप सरकार का कुप्रबंधन है. इसके अलावा हरियाणा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान हरियाणा सरकार का कहना था कि वो दिल्ली को 719 क्यूसेक की बजाय रोजाना 1049 क्यूसेक पानी दे रहा है.

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने आज दिल्ली सरकार की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें सरकार ने हरियाणा के खिलाफ आरोप लगाए थे. कोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी में जलापूर्ति के मामले में दिल्ली की अवमानना याचिका को खारिज किया है.

बता दें कि दिल्ली के पास कोई जल स्रोत नहीं है. दिल्ली पानी के लिए पड़ोसी राज्यों उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा पर निर्भर है. जिसके चलते इन राज्यों से दिल्ली का विवाद होता रहा है. दिल्ली सरकार राजधानी में पानी की कमी के लिए हरियाणा को जिम्मेदार ठहरा रही है. दिल्ली जल बोर्ड ने हरियाणा पर पानी की कटौती का आरोप लगाते सुप्रीम कोर्ट के 1996 के आदेश का पालन न करने के लिए हरियाणा के मुख्य सचिव, अतिरिक्त मुख्य सचिव और जल संसाधन विभाग के खिलाफ अवमानना ​​याचिका दायर की थी.

1956 से चल रहा है विवाद
हालांकि, हरियाणा सरकार दिल्ली सरकार के आरोपों को नकारते हुए दिल्ली सरकार पर पानी की बर्बादी का आरोप लगाए हैं. यह भी दिलचस्प है कि दिल्ली और हरियाणा के बीच पानी के बंटवारे को लेकर होने वाला विवाद नया नहीं है. यह विवाद 1956 से ही चल रहा है, जब वह पूर्वी पंजाब का हिस्सा था. इस बीच दोनों सरकारें हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में भी लड़ती रही हैं, लेकिन ये समस्या आज भी नहीं सुलझी है. बरसात के दिनों में जब यमुना का जलस्तर बढ़ता है तो दिल्ली में जलभराव की समस्या आ जाती है, वहीं जब गर्मी के समय में दिल्ली बूंद-बूंद के लिए तरसती है तो हरियाणा सरकार पर पानी की कटौती के आरोप लगते रहे हैं.

इसको लेकर यमुना नदी ट्रेब्यूनल बनाया गया जिसमें पानी के बंटवारे की सीमा तय की गई. उसके बाद में सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 1995 में दिल्ली को पानी देने को लेकर फैसला सुनाया. लेकिन इस बार ये विवाद फिर गहराता जा रहा है. पिछले काफी दिनों से दिल्ली सरकार हरियाणा सरकार पर लगातार दिल्ली के हक का पानी रोकने का आरोप लगा रही है.

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दिल्ली जल बोर्ड के उपाध्यक्ष राघव चड्ढा का आरोप है कि हरियाणा यमुना नदी में 221 क्यूसेक यानी करीब 100 MGD पानी कम छोड़ रहा है. जिसके चलते दिल्ली के तीन बड़े वाटर ट्रीटमेंट प्लांट के प्रोडक्शन में 100 MGD की कमी आई है. जो 245 MGD से घटकर 145 MGD हो गई है. वहीं चंद्रावल में 90 MGD से घटकर 55 MGD, वजीराबाद में 135 MGD से घटकर 80 MGD और ओखला में 20 MGD से घटकर 15 MGD रह गई है.

राघव चड्ढा ने कहा कि हरियाणा सरकार की कटौती के कारण NDMC के VIP इलाकों जैसे, सुप्रीम कोर्ट, प्रधानमंत्री निवास, राष्ट्रपति भवन और दूतावास के इलाकों में पानी की सप्लाई बाधित हो रही है. साथ ही आम जनता भी त्राहि-त्राहि कर रही है .

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वहीं हरियाणा सरकार दिल्ली सरकार के आरोपों को नकारती रही है. हरियाणा के मुख्यमंत्री का कहना है कि दिल्ली में पानी की कमी का जिम्मेदार आप सरकार का कुप्रबंधन है. इसके अलावा हरियाणा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान हरियाणा सरकार का कहना था कि वो दिल्ली को 719 क्यूसेक की बजाय रोजाना 1049 क्यूसेक पानी दे रहा है.

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