ETV Bharat / bharat

POCSO ACT के तहत मामला : सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'इस तरह का अपराध बर्दाश्त नहीं', खारिज की जमानत याचिका

पॉक्सो एक्ट के तहत एक आरोपी की जमानत याचिका खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह का अपराध बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है. कोर्ट ने कहा कि जहां एक युवती की न्यूड तस्वीर ली जाती है और फिर उसे धमकी दी जाती है, ऐसे आरोप काफी गंभीर होते हैं.

SC
सुप्रीम कोर्ट
author img

By

Published : Jun 8, 2022, 5:59 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम सहित विभिन्न कानूनों के तहत दर्ज मामले में एक व्यक्ति को अग्रिम जमानत देने से बुधवार को यह कहते हुए इनकार कर दिया कि वह इस तरह का अपराध बर्दाश्त नहीं कर सकता, जहां एक युवती की आपत्तिजनक तस्वीर ली जाती है और फिर उसे धमकी दी जाती है.

शीर्ष अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप बहुत गंभीर हैं और आज की स्थिति में, दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 164 के तहत दर्ज पीड़िता का बयान याचिकाकर्ता के खिलाफ है. न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की अवकाशकालीन पीठ कलकत्ता उच्च न्यायालय के गत मई के उस आदेश के खिलाफ याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें पश्चिम बंगाल में दर्ज मामले में अग्रिम जमानत संबंधी व्यक्ति की याचिका खारिज कर दी गयी थी.

भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और पॉक्सो अधिनियम, 2012 के संबंधित प्रावधानों के तहत धोखाधड़ी और आपराधिक धमकी सहित कथित अपराधों के लिए पिछले साल अक्टूबर में मामला दर्ज किया गया था. शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘हमें बर्दाश्त नहीं है. समाज में, एक युवती की तस्वीर लेकर फिर उसे धमकी नहीं दी जाती है.’’

व्यक्ति की ओर से पेश वकील ने पीठ को बताया कि वह जांच में शामिल हुआ है और इसमें सहयोग भी कर रहा है. शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘आप नग्न तस्वीर कैसे ले सकते हैं और फिर धमकी कैसे दे सकते हैं ? आज की स्थिति में, धारा 164 (सीआरपीसी) के तहत बयान आपके खिलाफ है. बहुत गंभीर आरोप हैं.’’

वकील ने दलील दी कि वह आदमी हर तरह से सहयोग करने और किसी भी शर्त का पालन करने के लिए तैयार है, जो शीर्ष अदालत उस पर लगा सकती है. पीठ ने मौखिक रूप से कहा, ‘‘क्षमा करें. खारिज.’’ याचिकाकर्ता ने पहले यह दावा करते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था कि उसे मामले में झूठा फंसाया गया है.

राज्य की ओर से पेश वकील ने उच्च न्यायालय के समक्ष दलील दी थी कि शिकायतकर्ता की ओर से यह शिकायत की गयी थी कि आरोपी व्यक्ति ने नाबालिग अवस्था में उसके साथ गलत काम किया था और इस संबंध में सीआरपीसी की धारा 164 के तहत पीड़िता का बयान दर्ज किया गया है.

शिकायतकर्ता की ओर से पेश वकील ने उच्च न्यायालय के समक्ष दलील दी थी कि आरोपी व्यक्ति युवती के साथ रिश्ते में था, जबकि वह नाबालिग थी और आरोपी ने युवती की आपत्तिजनक तस्वीरें खींची थी और वीडियो बनाई थी.

ये भी पढे़ं : यौन अपराध के पीड़ित बच्चे के माता-पिता आरोपी के साथ समझौता नहीं कर सकते : कोर्ट

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम सहित विभिन्न कानूनों के तहत दर्ज मामले में एक व्यक्ति को अग्रिम जमानत देने से बुधवार को यह कहते हुए इनकार कर दिया कि वह इस तरह का अपराध बर्दाश्त नहीं कर सकता, जहां एक युवती की आपत्तिजनक तस्वीर ली जाती है और फिर उसे धमकी दी जाती है.

शीर्ष अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप बहुत गंभीर हैं और आज की स्थिति में, दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 164 के तहत दर्ज पीड़िता का बयान याचिकाकर्ता के खिलाफ है. न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की अवकाशकालीन पीठ कलकत्ता उच्च न्यायालय के गत मई के उस आदेश के खिलाफ याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें पश्चिम बंगाल में दर्ज मामले में अग्रिम जमानत संबंधी व्यक्ति की याचिका खारिज कर दी गयी थी.

भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और पॉक्सो अधिनियम, 2012 के संबंधित प्रावधानों के तहत धोखाधड़ी और आपराधिक धमकी सहित कथित अपराधों के लिए पिछले साल अक्टूबर में मामला दर्ज किया गया था. शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘हमें बर्दाश्त नहीं है. समाज में, एक युवती की तस्वीर लेकर फिर उसे धमकी नहीं दी जाती है.’’

व्यक्ति की ओर से पेश वकील ने पीठ को बताया कि वह जांच में शामिल हुआ है और इसमें सहयोग भी कर रहा है. शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘आप नग्न तस्वीर कैसे ले सकते हैं और फिर धमकी कैसे दे सकते हैं ? आज की स्थिति में, धारा 164 (सीआरपीसी) के तहत बयान आपके खिलाफ है. बहुत गंभीर आरोप हैं.’’

वकील ने दलील दी कि वह आदमी हर तरह से सहयोग करने और किसी भी शर्त का पालन करने के लिए तैयार है, जो शीर्ष अदालत उस पर लगा सकती है. पीठ ने मौखिक रूप से कहा, ‘‘क्षमा करें. खारिज.’’ याचिकाकर्ता ने पहले यह दावा करते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था कि उसे मामले में झूठा फंसाया गया है.

राज्य की ओर से पेश वकील ने उच्च न्यायालय के समक्ष दलील दी थी कि शिकायतकर्ता की ओर से यह शिकायत की गयी थी कि आरोपी व्यक्ति ने नाबालिग अवस्था में उसके साथ गलत काम किया था और इस संबंध में सीआरपीसी की धारा 164 के तहत पीड़िता का बयान दर्ज किया गया है.

शिकायतकर्ता की ओर से पेश वकील ने उच्च न्यायालय के समक्ष दलील दी थी कि आरोपी व्यक्ति युवती के साथ रिश्ते में था, जबकि वह नाबालिग थी और आरोपी ने युवती की आपत्तिजनक तस्वीरें खींची थी और वीडियो बनाई थी.

ये भी पढे़ं : यौन अपराध के पीड़ित बच्चे के माता-पिता आरोपी के साथ समझौता नहीं कर सकते : कोर्ट

For All Latest Updates

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.