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तमिलनाडु सरकार की ऑफ-शोर पेन मेमोरियल परियोजना को चुनौती देने वाली याचिका SC में खारिज - परियोजना को चुनौती देने वाली याचिका

सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री एम करुणानिधि की याद में द्रमुक सरकार की ऑफ-शोर पेन मेमोरियल परियोजना को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया.

Etv BharatSC refuses plea challenging TN govt decision for a pen statue in the memory of DMK patriarch M Karunanidhi
Etv Bharatसुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार की परियोजना को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज किया
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Published : Aug 1, 2023, 1:51 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को तमिलनाडु की राजनीति के पितामह एवं पूर्व मुख्यमंत्री एम करुणानिधि की याद में एक ऑफ-शोर पेन मेमोरियल परियोजना के द्रमुक सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया. न्यायमूर्ति एसके कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा कि यदि यह एक राजनीतिक याचिका है, तो शीर्ष अदालत राजनीतिक लड़ाई लड़ने का मंच नहीं है और याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि वह इस लड़ाई को कहीं और लड़ें.

डीएमके सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता पी विल्सन ने तर्क दिया कि अदालत के समक्ष याचिका एक राजनीति से प्रेरित याचिका है, जो मछुआरों की आजीविका की आड़ में लड़ी जा रही है. वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ दवे कुछ मछुआरों का प्रतिनिधित्व करते हुए अदालत में पेश हुए, जिन्होंने बंगाल की खाड़ी के तट से 360 मीटर दूर प्रस्तावित 81 करोड़ रुपये के 42 मीटर ऊंचे पेन स्मारक के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख किया था. याचिका में तर्क दिया गया कि स्मारक से पर्यावरणीय क्षति होगी और आजीविका का नुकसान होगा.

याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए पीठ ने कहा, 'अगर यह पर्यावरण संबंधी चिंताओं के बारे में है, तो एनजीटी (राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण) इस पर सुनवाई क्यों नहीं कर सकती? हर बात सीधे सुप्रीम कोर्ट में क्यों आनी चाहिए?' दवे ने तर्क दिया कि मछुआरों द्वारा आजीविका के अपने मौलिक अधिकार को लागू करने के लिए जनहित याचिका दायर की गई है, और इसे सीधे शीर्ष अदालत के समक्ष रखा जा सकता है.

विल्सन ने कहा कि राज्य सरकार को स्मारक के लिए अन्य स्वीकृतियों के साथ-साथ तटीय विनियमन क्षेत्र (सीआरजेड) की मंजूरी भी मिल गई है और एनजीटी भी इस मामले से अवगत है. डेव ने जोर देकर कहा कि समुद्र के आधे एकड़ क्षेत्र में प्रस्तावित स्मारक पारिस्थितिकी तंत्र के लिए आपदा का कारण बनेगा. विल्सन ने प्रस्तुत किया कि राज्य सरकार ने परामर्श प्रक्रिया को अपनाई थी. हालांकि, जिन लोगों ने स्मारक पर आपत्ति जताई थी, उन्होंने सार्वजनिक सुनवाई में भाग नहीं लिया.

ये भी पढ़ें- Manipur violence : अदालत के हस्तक्षेप की सीमा इस पर निर्भर है कि सरकार ने अब तक क्या किया : सुप्रीम कोर्ट

दलीलें सुनने के बाद, पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से पूछा, अगर यह मौलिक अधिकारों के बारे में है तो उच्च न्यायालय इस मामले की सुनवाई क्यों नहीं कर सकता है और बताया कि यह मामला एक स्थानीय मुद्दा है और यह स्पष्ट किया कि यदि यह एक पर्यावरणीय मुद्दा है, लेकिन एक स्थानीय, याचिकाकर्ता एनजीटी के समक्ष जा सकता है. याचिकाकर्ता याचिका वापस लेने पर सहमत हो गया. शीर्ष अदालत ने याचिका को वापस लिया हुआ मानकर खारिज कर दिया.

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को तमिलनाडु की राजनीति के पितामह एवं पूर्व मुख्यमंत्री एम करुणानिधि की याद में एक ऑफ-शोर पेन मेमोरियल परियोजना के द्रमुक सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया. न्यायमूर्ति एसके कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा कि यदि यह एक राजनीतिक याचिका है, तो शीर्ष अदालत राजनीतिक लड़ाई लड़ने का मंच नहीं है और याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि वह इस लड़ाई को कहीं और लड़ें.

डीएमके सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता पी विल्सन ने तर्क दिया कि अदालत के समक्ष याचिका एक राजनीति से प्रेरित याचिका है, जो मछुआरों की आजीविका की आड़ में लड़ी जा रही है. वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ दवे कुछ मछुआरों का प्रतिनिधित्व करते हुए अदालत में पेश हुए, जिन्होंने बंगाल की खाड़ी के तट से 360 मीटर दूर प्रस्तावित 81 करोड़ रुपये के 42 मीटर ऊंचे पेन स्मारक के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख किया था. याचिका में तर्क दिया गया कि स्मारक से पर्यावरणीय क्षति होगी और आजीविका का नुकसान होगा.

याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए पीठ ने कहा, 'अगर यह पर्यावरण संबंधी चिंताओं के बारे में है, तो एनजीटी (राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण) इस पर सुनवाई क्यों नहीं कर सकती? हर बात सीधे सुप्रीम कोर्ट में क्यों आनी चाहिए?' दवे ने तर्क दिया कि मछुआरों द्वारा आजीविका के अपने मौलिक अधिकार को लागू करने के लिए जनहित याचिका दायर की गई है, और इसे सीधे शीर्ष अदालत के समक्ष रखा जा सकता है.

विल्सन ने कहा कि राज्य सरकार को स्मारक के लिए अन्य स्वीकृतियों के साथ-साथ तटीय विनियमन क्षेत्र (सीआरजेड) की मंजूरी भी मिल गई है और एनजीटी भी इस मामले से अवगत है. डेव ने जोर देकर कहा कि समुद्र के आधे एकड़ क्षेत्र में प्रस्तावित स्मारक पारिस्थितिकी तंत्र के लिए आपदा का कारण बनेगा. विल्सन ने प्रस्तुत किया कि राज्य सरकार ने परामर्श प्रक्रिया को अपनाई थी. हालांकि, जिन लोगों ने स्मारक पर आपत्ति जताई थी, उन्होंने सार्वजनिक सुनवाई में भाग नहीं लिया.

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दलीलें सुनने के बाद, पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से पूछा, अगर यह मौलिक अधिकारों के बारे में है तो उच्च न्यायालय इस मामले की सुनवाई क्यों नहीं कर सकता है और बताया कि यह मामला एक स्थानीय मुद्दा है और यह स्पष्ट किया कि यदि यह एक पर्यावरणीय मुद्दा है, लेकिन एक स्थानीय, याचिकाकर्ता एनजीटी के समक्ष जा सकता है. याचिकाकर्ता याचिका वापस लेने पर सहमत हो गया. शीर्ष अदालत ने याचिका को वापस लिया हुआ मानकर खारिज कर दिया.

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