नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने एक महिला द्वारा एक युवक पर लगाए गए दुष्कर्म के आरोप को यह कहते हुए खारिज कर दिया है कि वह उस युवक के साथ सहमति से संबंध में थी. न्यायालय ने यह भी कहा कि महिला का यह संबंध दूसरे शख्स के साथ उसकी शादी से पहले कायम हुआ था, जो तलाक के बाद तक जारी रहा. न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ (Justice DY Chnadrachud) और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना (Justice AS Bopanna) की पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ युवक की ओर से दायर अपील पर यह आदेश दिया. युवक ने उसके खिलाफ लगाए गए आरोपों और मामले में दाखिल आरोपपत्र को रद्द करने से इनकार करने के उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी थी. पीठ ने कहा कि शिकायत में लगाए गए आरोपों के मद्देनजर प्राथमिकी या आरोपपत्र में उन जरूरी तत्वों को ढूंढना असंभव है, जिससे भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा-376 (दुष्कर्म) के तहत अपराध बनता हो.
पीठ ने कहा, 'तदनुसार हम अपील स्वीकार करते हैं और उस फैसले तथा दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC) की धारा-482 के तहत दायर याचिका पर उच्च न्यायालय के पांच अक्टूबर 2018 के आक्षेपित आदेश को खारिज करते हैं. इस प्रकार, सीआरपीसी की धारा-482 के तहत दायर याचिका मंजूर की जाती है.' शीर्ष अदालत ने कहा कि मौजूदा मामले में उच्च न्यायालय द्वारा इस मुद्दे से निपटा जाना था कि अगर आरोपपत्र में लगाए गए सभी आरोपों को सही मान भी लिया जाए तो क्या आईपीसी की धारा-376 के तहत दंडनीय अपराध बनता है.
पीठ ने कहा, 'याचिकाकर्ता और द्वितीय प्रतिवादी के बीच नि:संदेह साल 2013 से दिसंबर 2017 तक सहमति से संबंध थे. वे दोनों पढ़े-लिखे वयस्क हैं. द्वितीय प्रतिवादी ने इस अवधि के दौरान 12 जून 2014 को किसी और से शादी कर ली. सत्रह सितंबर 2017 को यह शादी आपसी सहमति से तलाक के जरिए समाप्त हो गई.'
न्यायालय ने कहा, 'द्वितीय प्रतिवादी की ओर से लगाए गए आरोप दर्शाते हैं कि याचिकाकर्ता से उसके संबंध (दूसरे शख्स से) उसकी शादी से पहले से कायम थे और शादी के दौरान तथा आपसी सहमति से (पति से) तलाक के बाद भी जारी रहे.' न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि जिस अहम मुद्दे पर विचार किया जाना था, वह यह है कि क्या आरोप संकेत देते हैं कि याचिकाकर्ता (दुष्कर्म का आरोपी युवक) ने महिला से शादी का वादा किया था, जो झूठा था और जिसके आधार पर द्वितीय प्रतिवादी (दुष्कर्म का आरोप लगाने वाली महिला) यौन संबंध बनाने को प्रेरित हुई थी.
पीठ ने कहा, 'महिला (द्वितीय प्रतिवादी) ने स्वीकार किया था कि 12 जून 2014 को दूसरे व्यक्ति से शादी के बावजूद याचिकाकर्ता के साथ उसके संबंध जारी थे. द्वितीय प्रतिवादी ने कहा था कि याचिकाकर्ता ने उस पर शादी तोड़ने का दबाव बनाया था और ससुराल में रहने जाने के महज तीन महीने बाद मार्च 2015 में उसकी शादी टूट गई थी.' पीठ ने कहा कि महिला ने बताया है कि उसके बाद वह अपने माता-पिता के घर लौट आई और फिर अपीलकर्ता के साथ रहने लगी.
शीर्ष अदालत ने कहा, '2016 में प्रशिक्षण पूरा करने के बाद द्वितीय प्रतिवादी दिसंबर 2017 तक याचिकाकर्ता के साथ रही. द्वितीय प्रतिवादी की शिकायत यह है कि याचिकाकर्ता ने 10 दिसंबर 2017 को किसी और से सगाई कर ली. याचिकाकर्ता पर आरोप है कि उसने अपनी सगाई तोड़ने का भरोसा दिलाया था, लेकिन वह अपने आश्वासन का पालन करने में नाकाम रहा.' पीठ ने कहा कि सीआरपीसी की धारा-482 (आरोपों को रद्द करने के लिए) के अभ्यास के अधिकार क्षेत्र को नियंत्रित करने वाले मानदंड अच्छी तरह से तय हैं और इस न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णयों में दोहराए गए हैं.
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(पीटीआई-भाषा)