नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने 2018 में सुनाए गए अपने उस फैसले को पुनर्विचार के लिए प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष अधिसूचित किया है. जिसमें कहा गया था कि दीवानी एवं फौजदारी मामलों में किसी निचली अदालत या उच्च न्यायालय द्वारा सुनाया गया स्थागनादेश छह महीने बाद स्वत: निष्प्रभावी हो जाएगा, बशर्ते उसकी अवधि विशेष रूप से बढ़ाई न गई हो.
शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर प्रकाशित एक अधिसूचना के अनुसार, इस संविधान पीठ में न्यायमूर्ति अभय एस ओका, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला, न्यायमूर्ति पंकज मिथल और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा शामिल होंगे.
असम में अवैध प्रवासियों से संबंधित नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए की संवैधानिक वैधता से जुड़े एक अन्य मामले में सुनवाई समाप्त होने के बाद संविधान पीठ इस मामले पर सुनवाई शुरू करेगी. न्यायालय ने एक दिसंबर को अपने 2018 के फैसले को पुनर्विचार के लिए पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ को संदर्भित किया था.
प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने 'हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ऑफ इलाहाबाद' की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी की इस याचिका पर गौर किया था कि 2018 का फैसला संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालयों को प्रदत्त शक्ति को छीन लेता है.
संविधान का अनुच्छेद 226 उच्च न्यायालयों को व्यापक शक्तियां देता है जिसके तहत वे मौलिक अधिकारों को लागू करने और अन्य उद्देश्यों के लिए किसी भी व्यक्ति या सरकार को रिट और आदेश जारी कर सकते हैं.
पीठ ने इस फैसले से उत्पन्न कानूनी मुद्दे से निपटने के लिए अटॉर्नी जनरल या सॉलिसिटर जनरल से सहयोग करने को कहा है. 'एशियन रिसर्फेसिंग ऑफ रोड एजेंसी प्राइवेट लिमिटेड' के निदेशक बनाम सीबीआई (केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो) के मामले में तीन न्यायाधीशों की पीठ ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा था कि उच्च न्यायालयों सहित अदालतों द्वारा दिए गए स्थगन के अंतरिम आदेश ऐसी स्थिति में स्वत: रद्द हो जाएंगे, यदि उनकी अवधि को विशेष रूप से बढ़ाया नहीं जाता यानी कोई भी मुकदमा या कार्यवाही छह महीने के बाद स्थगित नहीं रह सकती.
बाद में शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया था कि यदि स्थगनादेश उसके द्वारा पारित किया गया है तो यह निर्णय लागू नहीं होगा. सीजेआई की अगुवाई वाली पीठ द्विवेदी की दलीलों से प्रथम दृष्टया सहमत दिखी थी और उसने कहा था कि उनकी याचिका को पांच न्यायाधीशों वाली पीठ को भेजा जाएगा क्योंकि 2018 का फैसला शीर्ष अदालत की तीन न्यायाधीशों वाली पीठ ने सुनाया था.