नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में कार्यकर्ता वर्नोन गोंजाल्विस और अरुण फरेरा को शुक्रवार को जमानत दे दी और इस तथ्य पर गौर किया कि वे पांच वर्ष से हिरासत में हैं. न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस तथा न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने निर्देश दिया कि गोंजाल्विस तथा फरेरा महाराष्ट्र से बाहर नहीं जाएंगे और पुलिस के समक्ष अपना पासपोर्ट जमा कराएंगे. न्यायालय ने कहा कि दोनों कार्यकर्ता एक-एक मोबाइल का इस्तेमाल करेंगे और मामले की जांच कर रहे राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) को अपना पता बताएंगे.
दोनों कार्यकर्ता उनकी जमानत याचिका बंबई उच्च न्यायालय से खारिज होने के बाद उच्चतम न्यायालय पहुंचे थे. यह मामला पुणे में 31 दिसंबर 2017 को एल्गार परिषद के एक कार्यक्रम से जुड़ा है और पुणे पुलिस का कहना है कि इसके लिए धन माओवादियों ने दिया था. पुलिस का आरोप है कि कार्यक्रम के दौरान दिए गए भड़काऊ भाषणों के कारण अगले दिन कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक में हिंसा भड़की थी.
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इससे पहले बॉम्बे हाइकोर्ट ने केस के आरोपी वरवरा राव की याचिका को खारिज कर दिया था. जानकारी के मुताबिक वरवरा ने मोतियाबिंद के ऑपरेशन के लिए हैदराबाद जाने की अनुमति मांगी थी, जिसे कोर्ट ने नामंजूर कर दी थी. बता दें, महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में एक कार्यक्रम के दौरान हिंसा भड़क गई थी. जिसमें वयोवृद्ध कवि वरवरा राव पर आरोप लगाया गया था. कार्रवाई करते हुए राष्ट्रीय एजेंसी ने उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया था.