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विधानसभा चुनाव से पहले इलेक्टोरल बाॅन्ड की बिक्री पर रोक वाली याचिका SC में खारिज

उच्चतम न्यायालय ने विधानसभा चुनाव से पहले इलेक्टोरल बाॅन्ड की ब्रिक्री पर रोक की मांग वाली याचिका खारिज कर दी है. गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ ने याचिका दायर कर इसकी मांग की थी.

SC dismisses
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Published : Mar 26, 2021, 3:37 PM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने आगामी विधानसभा चुनाव से पहले इलेक्टोरल बाॅन्ड की ब्रिक्री पर रोक लगाने का अनुरोध करने वाली याचिका शुक्रवार को खारिज कर दी. प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यम की पीठ ने इलेक्टोरल बाॅन्ड की आगे और बिक्री पर रोक लगाने से इनकार कर दिया.

गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ ने एक याचिका दायर कर इसकी मांग की थी. कहा था कि राजनीतिक दलों के वित्त पोषण और उनके खातों में पारदर्शिता की कथित कमी से संबंधित एक मामले के लंबित रहने के दौरान और आगामी विधानसभा चुनाव से पहले चुनावी बॉन्ड की आगे और बिक्री की अनुमति नहीं दी जाए.

केंद्र ने इससे पहले पीठ को बताया था कि एक अप्रैल से 10 अप्रैल के बीच बॉन्ड जारी किए जाएंगे.

एनजीओ ने याचिका में दावा किया था कि इस बात की गंभीर आशंका है कि पश्चिम बंगाल और असम समेत कुछ राज्यों में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले चुनावी बॉन्ड की बिक्री से मुखौटा कंपनियों के जरिए राजनीतिक दलों का अवैध और गैरकानूनी वित्त पोषण और बढ़ेगा.

शीर्ष अदालत ने 20 मार्च को फैसला सुरक्षित रखते हुए, राजनीतिक दलों द्वारा चुनावी बॉन्ड के जरिए प्राप्त की जाने वाली निधि के आतंकवाद जैसे अवैध कार्यों में संभावित इस्तेमाल का मामला उठाया था.

पीठ ने कहा था कि सरकार को चुनावी बॉन्ड के जरिए प्राप्त धन के आतंकवाद जैसे अवैध कार्यों में दुरुपयोग की आशंका के मामले पर गौर करना चाहिए.

पीठ ने सरकार से पूछा था कि इस धन का इस्तेमाल कैसे होता है. इस पर सरकार का क्या नियंत्रण है? उसने कहा था कि राजनीतिक दल अपने राजनीतिक एजेंडे से परे की गतिविधियों के लिए इन निधियों का इस्तेमाल कर सकते हैं.

पीठ ने कहा था कि यदि राजनीतिक दल 100 करोड़ रुपए के चुनावी बॉन्ड हासिल करते हैं, तो इस बात का क्या भरोसा है कि इसे किसी अवैध मकसद या हिंसात्मक गतिविधियों को मदद देने में इस्तेमाल नहीं किया जाएगा.

उसने साथ ही कहा कि वह राजनीति में दखल नहीं देना चाहती और ये टिप्पणियां किसी विशेष राजनीतिक दल के लिए नहीं की गई हैं. केंद्र ने पीठ से कहा था कि चुनावी बॉन्ड की वैधता 15 दिन की है और राजनीतिक दलों को अपना 'इनकम टैक्स रिटर्न' भी भरना है.

उसने कहा कि खरीदार को वैध धन का इस्तेमाल करना होगा और चुनावी बॉन्ड की खरीदारी बैंकिंग माध्यम से होगी.

सरकार ने कहा था कि आतंकवाद को वैध धन से वित्तीय मदद नहीं दी जाती. इसे काले धन के जरिए मदद दी जाती है. एनजीओ ने कहा कि दाता (डोनर) की पहचान उजागर नहीं की जाती और चुनाव आयोग तथा भारतीय रिजर्व बैंक ने भी इस पर आपत्ति जताई है. उसने यह भी दावा किया कि चुनावी बॉन्ड से मिलने वाली अधिकतर राशि सत्तारूढ़ पार्टी को मिली है.

यह भी पढ़ें-टाटा-मिस्त्री विवाद : सुप्रीम कोर्ट ने रद्द किया साइरस मिस्त्री को टाटा समूह में बहाल करने का आदेश

गौरतलब है कि तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, असम, केरल और पुडुचेरी में 27 मार्च से 29 अप्रैल के बीच विधानसभा चुनाव होने हैं.

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने आगामी विधानसभा चुनाव से पहले इलेक्टोरल बाॅन्ड की ब्रिक्री पर रोक लगाने का अनुरोध करने वाली याचिका शुक्रवार को खारिज कर दी. प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यम की पीठ ने इलेक्टोरल बाॅन्ड की आगे और बिक्री पर रोक लगाने से इनकार कर दिया.

गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ ने एक याचिका दायर कर इसकी मांग की थी. कहा था कि राजनीतिक दलों के वित्त पोषण और उनके खातों में पारदर्शिता की कथित कमी से संबंधित एक मामले के लंबित रहने के दौरान और आगामी विधानसभा चुनाव से पहले चुनावी बॉन्ड की आगे और बिक्री की अनुमति नहीं दी जाए.

केंद्र ने इससे पहले पीठ को बताया था कि एक अप्रैल से 10 अप्रैल के बीच बॉन्ड जारी किए जाएंगे.

एनजीओ ने याचिका में दावा किया था कि इस बात की गंभीर आशंका है कि पश्चिम बंगाल और असम समेत कुछ राज्यों में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले चुनावी बॉन्ड की बिक्री से मुखौटा कंपनियों के जरिए राजनीतिक दलों का अवैध और गैरकानूनी वित्त पोषण और बढ़ेगा.

शीर्ष अदालत ने 20 मार्च को फैसला सुरक्षित रखते हुए, राजनीतिक दलों द्वारा चुनावी बॉन्ड के जरिए प्राप्त की जाने वाली निधि के आतंकवाद जैसे अवैध कार्यों में संभावित इस्तेमाल का मामला उठाया था.

पीठ ने कहा था कि सरकार को चुनावी बॉन्ड के जरिए प्राप्त धन के आतंकवाद जैसे अवैध कार्यों में दुरुपयोग की आशंका के मामले पर गौर करना चाहिए.

पीठ ने सरकार से पूछा था कि इस धन का इस्तेमाल कैसे होता है. इस पर सरकार का क्या नियंत्रण है? उसने कहा था कि राजनीतिक दल अपने राजनीतिक एजेंडे से परे की गतिविधियों के लिए इन निधियों का इस्तेमाल कर सकते हैं.

पीठ ने कहा था कि यदि राजनीतिक दल 100 करोड़ रुपए के चुनावी बॉन्ड हासिल करते हैं, तो इस बात का क्या भरोसा है कि इसे किसी अवैध मकसद या हिंसात्मक गतिविधियों को मदद देने में इस्तेमाल नहीं किया जाएगा.

उसने साथ ही कहा कि वह राजनीति में दखल नहीं देना चाहती और ये टिप्पणियां किसी विशेष राजनीतिक दल के लिए नहीं की गई हैं. केंद्र ने पीठ से कहा था कि चुनावी बॉन्ड की वैधता 15 दिन की है और राजनीतिक दलों को अपना 'इनकम टैक्स रिटर्न' भी भरना है.

उसने कहा कि खरीदार को वैध धन का इस्तेमाल करना होगा और चुनावी बॉन्ड की खरीदारी बैंकिंग माध्यम से होगी.

सरकार ने कहा था कि आतंकवाद को वैध धन से वित्तीय मदद नहीं दी जाती. इसे काले धन के जरिए मदद दी जाती है. एनजीओ ने कहा कि दाता (डोनर) की पहचान उजागर नहीं की जाती और चुनाव आयोग तथा भारतीय रिजर्व बैंक ने भी इस पर आपत्ति जताई है. उसने यह भी दावा किया कि चुनावी बॉन्ड से मिलने वाली अधिकतर राशि सत्तारूढ़ पार्टी को मिली है.

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गौरतलब है कि तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, असम, केरल और पुडुचेरी में 27 मार्च से 29 अप्रैल के बीच विधानसभा चुनाव होने हैं.

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