नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने राज्य द्वारा लगाए जाने वाले इंटरनेट प्रतिबंध पर उसके द्वारा जारी वर्ष 2020 के दिशा-निर्देशों को लागू करने के अनुरोध वाली एक अर्जी गुरुवार को खारिज कर दी. न्यायमूर्ति बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता के पास दिशा-निर्देशों को लागू कराने के लिए अन्य उपाय उपलब्ध हैं.
10 जनवरी, 2020 को उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और इंटरनेट पर व्यापार करने की स्वतंत्रता संविधान के तहत संरक्षित है. अदालत ने तब जम्मू-कश्मीर प्रशासन को इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाने के आदेशों की तुरंत समीक्षा करने का निर्देश दिया था.
अदालत ने कहा था कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 144 के तहत मिली प्रशासनिक शक्ति, जो चार या अधिक लोगों के एकत्र होने पर रोक लगाती है, का इस्तेमाल राय या शिकायत की वैध अभिव्यक्ति या किसी भी लोकतांत्रिक अधिकार के प्रयोग को दबाने के लिए नहीं किया जा सकता है. गुरुवार को सुनवाई के दौरान पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा, 'हम निपटाए गए मामले को विविध आवेदनों के जरिए दोबारा शुरू करने की निंदा करते हैं. याचिका खारिज की जाती है.'
न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि अदालत ने याचिका पर नोटिस जारी करके गलती की है. याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि शीर्ष अदालत द्वारा 10 जनवरी, 2020 के फैसले में जारी निर्देशों का अधिकारियों द्वारा पालन नहीं किया गया. शीर्ष अदालत ने 11 मई को विविध आवेदन पर नोटिस जारी किया था और केंद्र से जवाब मांगा था.
अपने जनवरी 2020 के फैसले में शीर्ष अदालत ने केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर के अधिकारियों को इंटरनेट सेवाओं को निलंबित करने वाले सभी आदेशों की तुरंत समीक्षा करने का निर्देश दिया था और कहा था कि जो आदेश कानून के अनुरूप नहीं हैं, उन्हें रद्द किया जाना चाहिए.