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SC On Retired Judges Political Appointments : जजों के रिटायर के बाद राजनीतिक नियुक्तियों से पहले दो साल के अंतराल संबंधी याचिका खारिज

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) और हाई कोर्ट के न्यायाधीशों की रिटायर के बाद राजनीतिक नियुक्ति को लेकर दायर की गई याचिका को देश की शीर्ष अदालत ने खारिज कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि रिटायर न्यायाधीश का कोई पद स्वीकार करना या नहीं करना उस न्यायाधीश पर छोड़ देना चाहिए.

Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 6, 2023, 5:00 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने शीर्ष न्यायालय और हाई कोर्ट के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति के बाद उनके राजनीतिक नियुक्तियां स्वीकार करने से पहले दो साल का अंतराल रखने का अनुरोध करने वाली एक याचिका बुधवार को खारिज कर दी. बता दें कि बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन ने संस्थापक अध्यक्ष और अधिवक्ता अहमद मेहदी आब्दी के माध्यम से दायर अपनी याचिका में 12 फरवरी को आंध्र प्रदेश के राज्यपाल के रूप में शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की नियुक्ति का उल्लेख किया गया था.

इस संबंध में जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस सुधांशु धुलिया की पीठ ने कहा कि यह मुद्दा कि सेवानिवृत्त न्यायाधीश को कोई पद स्वीकार करना चाहिए या नहीं, संबद्ध न्यायाधीश के विवेक पर छोड़ देना चाहिए. साथ ही पीठ ने कहा कि यह इस मुद्दे की पड़ताल नहीं कर सकती कि क्या कोई पूर्व न्यायाधीश लोकसभा के लिए निर्वाचित हो सकता है या राज्यसभा में मनोनीत हो सकता है. पीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा, 'यह मुद्दा कि एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश को कोई पद स्वीकार करना चाहिए या नहीं, संबद्ध न्यायाधीश के विवेक पर छोड़ना होगा या एक कानून लाना होगा, लेकिन संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत निर्देश देने का विषय नहीं बन सकता.'

वहीं याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वकील ने कहा कि इस तरह के प्रावधान का अभाव लोगों के मन में एक गलत धारणा पैदा कर रहा. साथ ही पीठ ने वकील से पूछा, राजनीतिक नियुक्ति क्या है? पीठ ने कहा, ‘‘यह सब गंभीरता से नहीं लेने वाले विषय हैं. यह न्यायाधीश पर निर्भर है कि वह इनकार करना चाहते हैं या इनकार नहीं करते हैं.

पीठ ने याचिकाकर्ता से सवाल किया कि क्या सुप्रीम कोर्ट कह सकता है कि रिटायर के बाद कोई भी व्यक्ति अधिकरण में नियुक्त नहीं हो सकता. वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता केवल उन नियुक्तियों के बारे में बात कर रहे हैं, जो सरकार के विवेकाधिकार पर निर्भर है और जिसके लिए रिटायर के बाद दो साल का अंतराल होना चाहिए. न्यायाधीश के विवेकाधिकार पर काफी चीजें निर्भर रहने का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता ने केवल एक मामला चुना है. हालांकि, इसने अदालत में किसी का नाम नहीं लिया है. पीठ ने कहा, आप नहीं चाहते कि एक खास व्यक्ति राज्यपाल बने.

याचिका में तर्क दिया गया कि 2013 के आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग घोटाले के बाद, न्यायमूर्ति आरएम लोढ़ा के नेतृत्व वाले शीर्ष अदालत द्वारा नियुक्त पैनल ने बीसीसीआई में कई सुधारों की सिफारिश की थी. इसमें तीन साल की निश्चित अवधि की सेवा के बाद बोर्ड के एक अधिकारी के लिए तीन साल की कूलिंग ऑफ अवधि शामिल थी. हालांकि, न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) अब्दुल नज़ीर उस पांच-न्यायाधीशों की पीठ में से तीसरे न्यायाधीश हैं, जिन्होंने सरकार से सेवानिवृत्ति के बाद नियुक्ति प्राप्त करने के लिए अयोध्या का फैसला सुनाया था. भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) रंजन गोगोई राज्यसभा के सदस्य रहे. इससे पूर्व उन्होंने राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामलों (असम एनआरसी, सबरीमाला, अयोध्या, राफेल, सीबीआई) की सुनवाई की अध्यक्षता की है जिसमें सरकार भी एक पक्ष थी.

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इस संबंध में जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस सुधांशु धुलिया की पीठ ने कहा कि यह मुद्दा कि सेवानिवृत्त न्यायाधीश को कोई पद स्वीकार करना चाहिए या नहीं, संबद्ध न्यायाधीश के विवेक पर छोड़ देना चाहिए. साथ ही पीठ ने कहा कि यह इस मुद्दे की पड़ताल नहीं कर सकती कि क्या कोई पूर्व न्यायाधीश लोकसभा के लिए निर्वाचित हो सकता है या राज्यसभा में मनोनीत हो सकता है. पीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा, 'यह मुद्दा कि एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश को कोई पद स्वीकार करना चाहिए या नहीं, संबद्ध न्यायाधीश के विवेक पर छोड़ना होगा या एक कानून लाना होगा, लेकिन संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत निर्देश देने का विषय नहीं बन सकता.'

वहीं याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वकील ने कहा कि इस तरह के प्रावधान का अभाव लोगों के मन में एक गलत धारणा पैदा कर रहा. साथ ही पीठ ने वकील से पूछा, राजनीतिक नियुक्ति क्या है? पीठ ने कहा, ‘‘यह सब गंभीरता से नहीं लेने वाले विषय हैं. यह न्यायाधीश पर निर्भर है कि वह इनकार करना चाहते हैं या इनकार नहीं करते हैं.

पीठ ने याचिकाकर्ता से सवाल किया कि क्या सुप्रीम कोर्ट कह सकता है कि रिटायर के बाद कोई भी व्यक्ति अधिकरण में नियुक्त नहीं हो सकता. वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता केवल उन नियुक्तियों के बारे में बात कर रहे हैं, जो सरकार के विवेकाधिकार पर निर्भर है और जिसके लिए रिटायर के बाद दो साल का अंतराल होना चाहिए. न्यायाधीश के विवेकाधिकार पर काफी चीजें निर्भर रहने का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता ने केवल एक मामला चुना है. हालांकि, इसने अदालत में किसी का नाम नहीं लिया है. पीठ ने कहा, आप नहीं चाहते कि एक खास व्यक्ति राज्यपाल बने.

याचिका में तर्क दिया गया कि 2013 के आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग घोटाले के बाद, न्यायमूर्ति आरएम लोढ़ा के नेतृत्व वाले शीर्ष अदालत द्वारा नियुक्त पैनल ने बीसीसीआई में कई सुधारों की सिफारिश की थी. इसमें तीन साल की निश्चित अवधि की सेवा के बाद बोर्ड के एक अधिकारी के लिए तीन साल की कूलिंग ऑफ अवधि शामिल थी. हालांकि, न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) अब्दुल नज़ीर उस पांच-न्यायाधीशों की पीठ में से तीसरे न्यायाधीश हैं, जिन्होंने सरकार से सेवानिवृत्ति के बाद नियुक्ति प्राप्त करने के लिए अयोध्या का फैसला सुनाया था. भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) रंजन गोगोई राज्यसभा के सदस्य रहे. इससे पूर्व उन्होंने राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामलों (असम एनआरसी, सबरीमाला, अयोध्या, राफेल, सीबीआई) की सुनवाई की अध्यक्षता की है जिसमें सरकार भी एक पक्ष थी.

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