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SC On NURSERY BILL : नर्सरी दाखिले में बच्चों की 'स्क्रीनिंग' पर बैन से जुड़ी याचिका सुप्रीम कोर्ट से खारिज

नर्सरी दाखिले (nursery admissions) के लिए बच्चों की 'स्क्रीनिंग' (साक्षात्कार) से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने याचिका खारिज कर दी है. याचिकाकर्ता ने दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) के फैसले को चुनौती दी थी.

Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट
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By PTI

Published : Oct 13, 2023, 3:03 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने दिल्ली उच्च न्यायालय के उस फैसले को चुनौती देने वाली एक याचिका शुक्रवार को खारिज कर दी, जिसमें उसने उपराज्यपाल को नर्सरी दाखिले (nursery admissions) के लिए बच्चों की 'स्क्रीनिंग' (साक्षात्कार) पर प्रतिबंध लगाने के प्रस्ताव वाले 2015 के एक विधेयक को मंजूरी देने या लौटाने का निर्देश देने से इनकार कर दिया था.

'स्क्रीनिंग' में बच्चों या उनके अभिभावकों से साक्षात्कार लिया जाता है. न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा कि वह एक कानून बनाने का निर्देश नहीं दे सकती. पीठ ने कहा कहा, 'क्या कानून बनाने के लिए कोई आदेश हो सकता है? क्या हम सरकार को विधेयक पेश करने का निर्देश दे सकते हैं? उच्चतम न्यायालय हर चीज के लिए रामबाण नहीं हो सकता है.'

उच्च न्यायालय ने गत तीन जुलाई को एक गैर सरकारी संस्था 'सोशल ज्यूरिस्ट' द्वारा दायर एक जनहित याचिका खारिज कर दी थी. उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि वह विधायी प्रक्रिया में हस्तक्षेप और उपराज्यपाल को दिल्ली स्कूल शिक्षा (संशोधन) विधेयक, 2015 को मंजूरी देने या उसे लौटाने का निर्देश नहीं दे सकता है.

इसके बाद एनजीओ की ओर से उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की गई. अधिवक्ता अशोक अग्रवाल के माध्यम से दायर एनजीओ की याचिका में कहा गया है कि विद्यालयों में नर्सरी कक्षा में दाखिले में 'स्क्रीनिंग' प्रक्रिया पर प्रतिबंध लगाने वाला बाल-हितैषी विधेयक पिछले सात वर्षों से बिना किसी औचित्य तथा सार्वजनिक हित के खिलाफ और लोक नीति के खिलाफ केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच लटका हुआ है.

जनहित याचिका खारिज करते हुए उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने कहा था कि उच्च न्यायालय के लिए यह उचित नहीं है कि वह संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए एक संवैधानिक प्राधिकार राज्यपाल को ऐसे मामले में निर्देश दे जो पूरी तरह से उनके अधिकार क्षेत्र में आते हैं.

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नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने दिल्ली उच्च न्यायालय के उस फैसले को चुनौती देने वाली एक याचिका शुक्रवार को खारिज कर दी, जिसमें उसने उपराज्यपाल को नर्सरी दाखिले (nursery admissions) के लिए बच्चों की 'स्क्रीनिंग' (साक्षात्कार) पर प्रतिबंध लगाने के प्रस्ताव वाले 2015 के एक विधेयक को मंजूरी देने या लौटाने का निर्देश देने से इनकार कर दिया था.

'स्क्रीनिंग' में बच्चों या उनके अभिभावकों से साक्षात्कार लिया जाता है. न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा कि वह एक कानून बनाने का निर्देश नहीं दे सकती. पीठ ने कहा कहा, 'क्या कानून बनाने के लिए कोई आदेश हो सकता है? क्या हम सरकार को विधेयक पेश करने का निर्देश दे सकते हैं? उच्चतम न्यायालय हर चीज के लिए रामबाण नहीं हो सकता है.'

उच्च न्यायालय ने गत तीन जुलाई को एक गैर सरकारी संस्था 'सोशल ज्यूरिस्ट' द्वारा दायर एक जनहित याचिका खारिज कर दी थी. उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि वह विधायी प्रक्रिया में हस्तक्षेप और उपराज्यपाल को दिल्ली स्कूल शिक्षा (संशोधन) विधेयक, 2015 को मंजूरी देने या उसे लौटाने का निर्देश नहीं दे सकता है.

इसके बाद एनजीओ की ओर से उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की गई. अधिवक्ता अशोक अग्रवाल के माध्यम से दायर एनजीओ की याचिका में कहा गया है कि विद्यालयों में नर्सरी कक्षा में दाखिले में 'स्क्रीनिंग' प्रक्रिया पर प्रतिबंध लगाने वाला बाल-हितैषी विधेयक पिछले सात वर्षों से बिना किसी औचित्य तथा सार्वजनिक हित के खिलाफ और लोक नीति के खिलाफ केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच लटका हुआ है.

जनहित याचिका खारिज करते हुए उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने कहा था कि उच्च न्यायालय के लिए यह उचित नहीं है कि वह संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए एक संवैधानिक प्राधिकार राज्यपाल को ऐसे मामले में निर्देश दे जो पूरी तरह से उनके अधिकार क्षेत्र में आते हैं.

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