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पीएम केयर फंड के लाभार्थी बच्चों की शैक्षिक स्थिति का पता लगाएं सरकारें : SC

सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के जिलाधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे उन बच्चों की शैक्षिक स्थिति का पता लगाएं जो पीएम केयर्स फंड के तहत लाभ के पात्र हैं. न्यायालय ने कहा है कि राज्यों को केंद्र सरकार के पास नाम भेजना होगा. अदालत ने कहा कि यह राज्य सरकारों का कर्तव्य है कि, वे पीएम केयर्स के तहत लाभ के पात्रों की पहचान करनी होगी. राज्यों को केंद्र सरकार के पास नाम भेजना चाहिए ताकि धन और सहायता जारी की जा सके.

सुप्रीम को
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Published : Nov 15, 2021, 11:30 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बीआर गवई की पीठ बाल संरक्षण गृहों में कोविड 19 के संबंध में सुनवाई कर रही है. यह मामला उन बच्चों से संबंधित है, जिन्होंने कोविड 19 महामारी के दौरान अपने माता-पिता को खो दिया है. शीर्ष अदालत ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को NCPCR की बैठकों में भाग लेने और उन्हें सुझाव देने को भी कहा. एसओपी से जुड़े मामले की सुनवाई 13 दिसंबर को होगी.

स्वत: संज्ञान वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने अदालत को बताया कि उसे 4848 आवेदन मिले और 1719 को जिलाधिकारियों ने पीएम केयर्स योजना के तहत मंजूरी दे दी. बच्चों को मिलने वाले लाभों के बारे में पूछे जाने पर, केंद्र ने कहा कि 18 वर्ष से ऊपर के लोगों के मामले में प्रगति हुई है.

केंद्र की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसीटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कुछ समय मांगा और अदालत ने मामले को 2 सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया. सरकार ने कोर्ट को बताया कि तीन व्यापक स्थितियों में बच्चों की पहचान कर स्थिति से निपटने के लिए मानक प्रक्रिया (एसओपी) तैयार की गई है. पहला, बिना किसी सहारे के अकेले सड़कों पर रहने वाले बच्चे, दूसरे, दिन में सड़कों पर रहने वाले और रात में घर वापस आने वाले बच्चे और तीसरे अपने परिवार के साथ सड़कों पर रहने वाले बच्चे.

सरकार ने बताया कि एसओपी में सड़क पर उनके जीवन में मुद्दों और चुनौतियों की पहचान, सड़क की स्थिति में बच्चों को पहचानना और वर्गीकृत करना, उचित उपाय करना और बच्चों की देखभाल के लिए अधिकारियों द्वारा पालन की जाने वाली प्रक्रिया और प्रक्रिया शामिल है.

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि 'सेव द चिल्ड्रन' संस्था ने लखनऊ, प्रयागराज, चंदौली, पुणे, नासिक, कलकत्ता और हावड़ा के शहरों में लगभग 2 लाख बच्चों की मैपिंग की है. इनके शिक्षा, स्वच्छता, पानी, संरक्षण और कल्याण के अधिकार पर ध्यान नहीं दिया गया है.

जिन राज्यों में इन 2 लाख बच्चों की पहचान की गई है, उनमें से किसी ने भी बचाव और पुनर्वास के संबंध में रिपोर्ट नहीं दी है. सुनवाई के दौरान एनसीपीसीआर ने कहा कि बच्चों के संगठन द्वारा 2 लाख की पहचान के अनुसार सड़कों पर लगभग 15-20 लाख बच्चे हो सकते हैं. 70,000 बच्चे अकेले दिल्ली में हैं.

सुनवाई के बाद शीर्ष अदालत ने आदेश दिया, 'देखभाल की जरूरत वाले बच्चों की समस्याओं की भयावहता को देखते हुए, हम सभी डीएम / डीसी को आयोग द्वारा तैयार किए गए एसओपी के अनुसार कदम उठाने का निर्देश देते हैं.'

अदालत ने निर्देश दिया कि प्रत्येक राज्य में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सचिव यह सुनिश्चित करने के लिए नोडल अधिकारी होंगे कि सभी डीएम राष्ट्रीय आयोग के एसओपी के कार्यान्वयन के लिए त्वरित कार्रवाई करें.

यह भी पढ़ें-ईडी, सीबीआई निदेशक को सेवा विस्तार देने वाले अध्यादेश पर क्यों घिरी मोदी सरकार ?

अदालत ने आदेश दिया, 'प्रक्रिया को अधिकारियों द्वारा तत्काल कार्रवाई से शुरू करना होगा, सड़क की स्थितियों में बच्चों की पहचान करके और उसके बाद एनसीपीसीआर को बाद के चरणों के लिए भी जानकारी प्रदान करनी होगी.'

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बीआर गवई की पीठ बाल संरक्षण गृहों में कोविड 19 के संबंध में सुनवाई कर रही है. यह मामला उन बच्चों से संबंधित है, जिन्होंने कोविड 19 महामारी के दौरान अपने माता-पिता को खो दिया है. शीर्ष अदालत ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को NCPCR की बैठकों में भाग लेने और उन्हें सुझाव देने को भी कहा. एसओपी से जुड़े मामले की सुनवाई 13 दिसंबर को होगी.

स्वत: संज्ञान वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने अदालत को बताया कि उसे 4848 आवेदन मिले और 1719 को जिलाधिकारियों ने पीएम केयर्स योजना के तहत मंजूरी दे दी. बच्चों को मिलने वाले लाभों के बारे में पूछे जाने पर, केंद्र ने कहा कि 18 वर्ष से ऊपर के लोगों के मामले में प्रगति हुई है.

केंद्र की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसीटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कुछ समय मांगा और अदालत ने मामले को 2 सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया. सरकार ने कोर्ट को बताया कि तीन व्यापक स्थितियों में बच्चों की पहचान कर स्थिति से निपटने के लिए मानक प्रक्रिया (एसओपी) तैयार की गई है. पहला, बिना किसी सहारे के अकेले सड़कों पर रहने वाले बच्चे, दूसरे, दिन में सड़कों पर रहने वाले और रात में घर वापस आने वाले बच्चे और तीसरे अपने परिवार के साथ सड़कों पर रहने वाले बच्चे.

सरकार ने बताया कि एसओपी में सड़क पर उनके जीवन में मुद्दों और चुनौतियों की पहचान, सड़क की स्थिति में बच्चों को पहचानना और वर्गीकृत करना, उचित उपाय करना और बच्चों की देखभाल के लिए अधिकारियों द्वारा पालन की जाने वाली प्रक्रिया और प्रक्रिया शामिल है.

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि 'सेव द चिल्ड्रन' संस्था ने लखनऊ, प्रयागराज, चंदौली, पुणे, नासिक, कलकत्ता और हावड़ा के शहरों में लगभग 2 लाख बच्चों की मैपिंग की है. इनके शिक्षा, स्वच्छता, पानी, संरक्षण और कल्याण के अधिकार पर ध्यान नहीं दिया गया है.

जिन राज्यों में इन 2 लाख बच्चों की पहचान की गई है, उनमें से किसी ने भी बचाव और पुनर्वास के संबंध में रिपोर्ट नहीं दी है. सुनवाई के दौरान एनसीपीसीआर ने कहा कि बच्चों के संगठन द्वारा 2 लाख की पहचान के अनुसार सड़कों पर लगभग 15-20 लाख बच्चे हो सकते हैं. 70,000 बच्चे अकेले दिल्ली में हैं.

सुनवाई के बाद शीर्ष अदालत ने आदेश दिया, 'देखभाल की जरूरत वाले बच्चों की समस्याओं की भयावहता को देखते हुए, हम सभी डीएम / डीसी को आयोग द्वारा तैयार किए गए एसओपी के अनुसार कदम उठाने का निर्देश देते हैं.'

अदालत ने निर्देश दिया कि प्रत्येक राज्य में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सचिव यह सुनिश्चित करने के लिए नोडल अधिकारी होंगे कि सभी डीएम राष्ट्रीय आयोग के एसओपी के कार्यान्वयन के लिए त्वरित कार्रवाई करें.

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अदालत ने आदेश दिया, 'प्रक्रिया को अधिकारियों द्वारा तत्काल कार्रवाई से शुरू करना होगा, सड़क की स्थितियों में बच्चों की पहचान करके और उसके बाद एनसीपीसीआर को बाद के चरणों के लिए भी जानकारी प्रदान करनी होगी.'

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