नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुरुवार को दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (Delhi Urban Shelter Improvement Board) को उन 268 लोगों के आवेदनों पर विचार करने का निर्देश दिया, जिन्हें 2004 और 2017 की नीति के तहत पुनर्वास के लिए उनके घरों से बेदखल किया गया था.
मामले की न्यायमूर्ति एलएन राव (Justice LN Rao), न्यायमूर्ति बीआर गवई (Justice BR Gavai) और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना (Justice AS Bopanna) की पीठ दिल्ली में झुग्गी निवासियों के पुनर्वास के संबंध में सुनवाई कर रही थी. इस संबंध में झुग्गी वासियों को ओर से पेश हुए अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने तर्क दिया कि उनके राशन कार्ड पेश किए. साथ ही उन्होंने बताया कि उनका नाम मतदाता सूची में है और अन्य मांगे गए दस्तावेज भी पेश किए गए थे, फिर भी सरकार ने कहा कि कोई रिकॉर्ड नहीं है. इस पर आयुक्त ने कहा कि यह उनके लिए व्यवहार्य नहीं है क्योंकि 1998 से पहले कोई डेटा नहीं है.
वहीं सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि जब उन्होंने दस्तावेज भी पेश किए तो उन्हें क्यों मना किया जा रहा है. वहीं जस्टिस एलएन राव ने कहा, हम नहीं जानते कि ये लोग पिछले 14-15 सालों से कहां हैं. इस पर राज्य की ओर से पेश अधिवक्ता ने तर्क दिया कि वास्तविक लोग होना चाहिए, इस पर जस्टिस राव ने यह कहते हुए उन्हें फटकार लगाई कि इतने सालों से इसकी जांच क्यों नहीं की गई.
ये भी पढ़ें - क्रिश्चियन मिशेल की जमानत याचिका, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय एजेंसियों से मांगा जवाब
जस्टिस ने कहा, आप इतने वर्षों में क्या कर रहे थे, हम यह नहीं कह रहे हैं कि पुनर्वास बिना किसी आधार के किया जाना चाहिए. आप जांच और आदेश क्यों नहीं देते? मामला इतने सालों से लंबित है. अधिवक्ता भूषण ने कहा कि ये लोग अब हर जगह बिखरे हुए हैं और गरीबी रेखा से नीचे हैं. अदालत ने बेदखल किए गए लोगों को यह दिखाने के लिए सबूत पेश करने की अनुमति दी कि वे पुनर्वास के हकदार हैं. अधिकारियों को इस पर विचार करने और आज से चार सप्ताह के भीतर आदेश पारित करने के लिए कहा गया है.