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दिल्ली हिंसा मामला : सुप्रीम कोर्ट का आदेश, फेसबुक की भूमिका की जांच जरूरी

फरवरी 2020 में दिल्ली में हुए दंगों के दौरान सोशल मीडिया दिग्गज फेसबुक की भूमिका को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाए हैं. कोर्ट ने कहा कि इनकी जांच होनी चाहिए. अगर फेसबुक इससे बचना चाहता है, तो यह संभव नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि दिल्ली फरवरी के सांप्रदायिक दंगों की पुनरावृत्ति को बर्दाश्त नहीं कर सकती है, इसलिए उसके संबंध में फेसबुक की भूमिका की जांच जरूरी है.

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Published : Jul 8, 2021, 7:24 PM IST

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सुप्रीम कोर्ट

हैदराबाद : सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि फेसबुक को दिल्ली विधानसभा द्वारा बनाई गई समिति के सामने पेश होना होगा. कोर्ट ने कहा कि राजधानी दिल्ली फिर से फरवरी 2020 जैसे दंगों का सामना नहीं कर सकती है, बल्कि वैसी परिस्थिति ही नहीं बननी चाहिए. इस तरह के हालात में सोशल मीडिया की भूमिका की जांच होनी चाहिए और फेसबुक इससे बच नहीं सकता है.

आपको बता दें कि दिल्ली विधानसभा ने इस बाबत शांति एवं सौहार्द समिति का गठन किया है. इस समिति ने फेसबुक को समन भेजा था. फेसबुक ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी.

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय की पीठ ने फेसबुक उपाध्यक्ष अजित मोहन की याचिका को अपरिपक्व बताया.

दरअसल, विधानसभा ने पिछले साल अजित मोहन को गवाह के तौर पर पेश होने के लिए कहा था, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. इसके बाद उन्हें समन भेजा गया था.

कोर्ट ने निर्णय सुनाते हुए कहा कि तकनीक के इस युग में डिजिटल प्लेटफॉर्म पैदा हुए हैं, जो कई बार बेकाबू हो सकते हैं. और दिल्ली ऐसी किसी भी घटना की पुनरावृत्ति को बर्दाश्त नहीं कर सकती है. इसलिए विधानसभा ने जिस परिप्रेक्ष्य में कमेटी बनाई है, वह जायज है. हां, विधानसभा के पास विधायी शक्ति है या नहीं, यह एक ऐसा सवाल है, जिसके बारे में विचार किया जाएगा. लेकिन इसको आधार बनाकर फेसबुक यह नहीं कह सकता है कि वह गलत या नाजायज है.

कोर्ट ने कहा कि दिल्ली में शक्ति को लेकर केंद्र और राज्य सरकार के बीच विवाद है. दोनों सरकारें दिल्ली में शासन के मुद्दों पर परस्पर विरोधी रूख सकती हैं. यह मुकदमेबाजी के लिए जिम्मेदार है और बार-बार न्यायिक सलाह के बावजूद दोनों साथ नहीं आते हैं. इसलिए ऐसा प्रयास सफल नहीं होता है. यहां पर कानून और व्यवस्था राज्य के तहत नहीं है. लेकिन शांति और सौहार्द का उद्देश्य कानून एवं व्यवस्था से कहीं अधिक व्यापक होता है.

पीठ ने मोहन, फेसबुक इंडिया ऑनलाइन सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड और फेसबुक इंक की याचिका पर यह निर्णय सुनाया है.

हालांकि कोर्ट ने कहा कि समिति के समक्ष जवाब नहीं देने के विकल्प पर विवाद नहीं हो सकता और याचिकाकर्ता के प्रतिनिधि सवाल का जवाब देने से इनकार कर सकते हैं, यदि यह तय दायरे में आता है.

क्या था फेसबुक का पक्ष

विधानसभा की समिति के पास यह शक्ति नहीं है कि वह अपने विशेषाधिकारों का उल्लंघन होने पर याचिकाकर्ताओं को तलब करे. यह उसकी संवैधानिक सीमाओं से बाहर है. विधानसभा के पास शांति और सद्भाव के मुद्दे की जांच के लिए एक समिति गठित करने की कोई विधायी शक्ति नहीं है.

फेसबुक अधिकारी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा था कि शांति समिति का गठन दिल्ली विधानसभा का मुख्य कार्य नहीं है, क्योंकि कानून - व्यवस्था का मुद्दा राष्ट्रीय राजधानी में केंद्र के अधिकार क्षेत्र में आता है.

केंद्र सरकार का पक्ष

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने विधानसभा के समन विरोध करते हुए कहा था कि कानून-व्यवस्था पूरी तरह से दिल्ली पुलिस के अधिकार क्षेत्र में आती है, जो केंद्र सरकार के प्रति जवाबदेह है.

केंद्र ने शीर्ष अदालत को बताया था कि शांति और सद्भाव समिति की कार्यवाही उसके क्षेत्राधिकार के दायरे में नहीं आती, क्योंकि यह मुद्दा कानून और व्यवस्था से संबंधित है.

विधानसभा समिति का पक्ष

विधानसभा समिति का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंघवी ने कहा था कि विधानसभा को समन जारी करने का अधिकार है.

कब मिला था नोटिस

विधानसभा समिति ने पिछले साल 10 और 18 सितंबर को नोटिस दिया था.

हैदराबाद : सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि फेसबुक को दिल्ली विधानसभा द्वारा बनाई गई समिति के सामने पेश होना होगा. कोर्ट ने कहा कि राजधानी दिल्ली फिर से फरवरी 2020 जैसे दंगों का सामना नहीं कर सकती है, बल्कि वैसी परिस्थिति ही नहीं बननी चाहिए. इस तरह के हालात में सोशल मीडिया की भूमिका की जांच होनी चाहिए और फेसबुक इससे बच नहीं सकता है.

आपको बता दें कि दिल्ली विधानसभा ने इस बाबत शांति एवं सौहार्द समिति का गठन किया है. इस समिति ने फेसबुक को समन भेजा था. फेसबुक ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी.

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय की पीठ ने फेसबुक उपाध्यक्ष अजित मोहन की याचिका को अपरिपक्व बताया.

दरअसल, विधानसभा ने पिछले साल अजित मोहन को गवाह के तौर पर पेश होने के लिए कहा था, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. इसके बाद उन्हें समन भेजा गया था.

कोर्ट ने निर्णय सुनाते हुए कहा कि तकनीक के इस युग में डिजिटल प्लेटफॉर्म पैदा हुए हैं, जो कई बार बेकाबू हो सकते हैं. और दिल्ली ऐसी किसी भी घटना की पुनरावृत्ति को बर्दाश्त नहीं कर सकती है. इसलिए विधानसभा ने जिस परिप्रेक्ष्य में कमेटी बनाई है, वह जायज है. हां, विधानसभा के पास विधायी शक्ति है या नहीं, यह एक ऐसा सवाल है, जिसके बारे में विचार किया जाएगा. लेकिन इसको आधार बनाकर फेसबुक यह नहीं कह सकता है कि वह गलत या नाजायज है.

कोर्ट ने कहा कि दिल्ली में शक्ति को लेकर केंद्र और राज्य सरकार के बीच विवाद है. दोनों सरकारें दिल्ली में शासन के मुद्दों पर परस्पर विरोधी रूख सकती हैं. यह मुकदमेबाजी के लिए जिम्मेदार है और बार-बार न्यायिक सलाह के बावजूद दोनों साथ नहीं आते हैं. इसलिए ऐसा प्रयास सफल नहीं होता है. यहां पर कानून और व्यवस्था राज्य के तहत नहीं है. लेकिन शांति और सौहार्द का उद्देश्य कानून एवं व्यवस्था से कहीं अधिक व्यापक होता है.

पीठ ने मोहन, फेसबुक इंडिया ऑनलाइन सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड और फेसबुक इंक की याचिका पर यह निर्णय सुनाया है.

हालांकि कोर्ट ने कहा कि समिति के समक्ष जवाब नहीं देने के विकल्प पर विवाद नहीं हो सकता और याचिकाकर्ता के प्रतिनिधि सवाल का जवाब देने से इनकार कर सकते हैं, यदि यह तय दायरे में आता है.

क्या था फेसबुक का पक्ष

विधानसभा की समिति के पास यह शक्ति नहीं है कि वह अपने विशेषाधिकारों का उल्लंघन होने पर याचिकाकर्ताओं को तलब करे. यह उसकी संवैधानिक सीमाओं से बाहर है. विधानसभा के पास शांति और सद्भाव के मुद्दे की जांच के लिए एक समिति गठित करने की कोई विधायी शक्ति नहीं है.

फेसबुक अधिकारी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा था कि शांति समिति का गठन दिल्ली विधानसभा का मुख्य कार्य नहीं है, क्योंकि कानून - व्यवस्था का मुद्दा राष्ट्रीय राजधानी में केंद्र के अधिकार क्षेत्र में आता है.

केंद्र सरकार का पक्ष

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने विधानसभा के समन विरोध करते हुए कहा था कि कानून-व्यवस्था पूरी तरह से दिल्ली पुलिस के अधिकार क्षेत्र में आती है, जो केंद्र सरकार के प्रति जवाबदेह है.

केंद्र ने शीर्ष अदालत को बताया था कि शांति और सद्भाव समिति की कार्यवाही उसके क्षेत्राधिकार के दायरे में नहीं आती, क्योंकि यह मुद्दा कानून और व्यवस्था से संबंधित है.

विधानसभा समिति का पक्ष

विधानसभा समिति का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंघवी ने कहा था कि विधानसभा को समन जारी करने का अधिकार है.

कब मिला था नोटिस

विधानसभा समिति ने पिछले साल 10 और 18 सितंबर को नोटिस दिया था.

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