नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने सरकार की 'सेंट्रल विस्टा परियोजना' का विरोध करने वाली लंबित याचिकाओं पर कोई फैसला आने तक निर्माण कार्य या इमारतों को गिराने जैसा कोई काम ना करने का आश्वासन मिलने के बाद केन्द्र को इसकी आधारशिला रखने का कार्यक्रम आयोजित करने की सोमवार को मंजूरी दे दी.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायमूर्ति एएम. खानविलकर के नेतृत्व वाली एक पीठ को कहा कि केवल आधारशिला रखने का कार्यक्रम किया जाएगा, वहां कोई निर्माण कार्य, इमारतों को गिराने या पेड़ काटने जैसा कोई काम नहीं होगा.
इस परियोजना की घोषणा पिछले वर्ष सितम्बर में हुई थी, जिसमें एक नये त्रिकोणाकार संसद भवन का निर्माण किया जाना है. इसमें 900 से 1200 सांसदों के बैठने की क्षमता होगी. इसके निर्माण का लक्ष्य अगस्त 2022 तक है, जब देश स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ मनाएगा.
साझा केन्द्रीय सचिवालय के 2024 तक बनने का अनुमान है.
याचिकाएं भूमि उपयोग बदलाव सहित विभिन्न मंजूरियों के खिलाफ दायर की गई हैं. ये सभी अभी शीर्ष अदालत में विचाराधीन हैं.
मामले में सोमवार को वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए की गई सुनवाई में पीठ ने मेहता को परियोजना के निर्माण को लेकर सरकार के विचारों की जानकारी देने के लिए पांच मिनट का समय दिया.
उच्चतम न्यायालय ने पांच नवम्बर को उन याचिकाओं पर सुनवाई पूरी कर ली थी, जिनमें केन्द्र की महत्वाकांक्षी ‘सेंट्रल विस्टा’ परियोजना पर सवाल उठाए गए हैं. यह योजना लुटियंस दिल्ली में राष्ट्रपति भवन से लेकर इंडिया गेट तक तीन किलोमीटर लंबे दायरे में फैली हुई है.
सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पहले शीर्ष अदालत में तर्क दिया था कि परियोजना से उस ‘‘धन की बचत’’ होगी, जिसका भुगतान राष्ट्रीय राजधानी में केन्द्र सरकार के मंत्रालयों के लिए किराये पर घर लेने के लिए किया जाता है.
मेहता ने यह भी कहा था कि नए संसद भवन का निर्णय जल्दबाजी में नहीं लिया गया और परियोजन के लिए किसी भी तरह से किसी भी नियम या कानून का कोई उल्लंघन नहीं किया गया.
केन्द्र ने यह भी कहा था कि परियोजना के लिए सलाहकार का चयन करने में कोई मनमानी या पक्षपात नहीं किया गया और इस दलील के आधार पर परियोजना को रद्द नहीं किया जा सकता कि सरकार इसके लिए बेहतर प्रक्रिया अपना सकती थी.
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गुजरात स्थित आर्किटेक्चर कम्पनी ‘एचसीपी डिज़ाइन्स’ ने ‘सेंट्रल विस्टा’ के पुनर्विकास के लिए परियोजना के लिए परामर्शी बोली जीती है.
अदालत इस मुद्दे पर कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें से एक याचिका कार्यकर्ता राजीव सूरी ने परियोजना को भूमि उपयोग बदलाव सहित विभिन्न मंजूरियों के खिलाफ दायर की है.