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Tansen Shiv Bhakti: संगीत सम्राट तानसेन की अनोखी 'शिव भक्ति', छेड़ी सुर की ऐसी तान...मंदिर ही हो गया टेढ़ा

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Published : Jul 17, 2023, 8:01 PM IST

Updated : Jul 17, 2023, 8:25 PM IST

Crooked Shiva Temple in Gwalior: मध्य प्रदेश के ग्वालियर के बेहट गांव में भगवान भोलेनाथ का एक अनोखा मंदिर है. अनोखा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि मंदिर सालों से टेढ़ा होकर झुक गया है. मान्यता है कि भगवान भोलेनाथ के आशीर्वाद के बाद तानसेन ने अपनी संगीत साधना के दौरान ऐसा अलाप लगाया था कि यह मंदिर ही टेढ़ा हो गया. पढ़िए यह खास रिपोर्ट...

Crooked Shiva Temple in Gwalior
तानसेन की अनोखी शिव भक्ति
तानसेन की शिव भक्ति से टेढ़ा हुआ मंदिर

ग्वालियर। सावन के महीने में हर कोई भगवान भोलेनाथ की भक्ति में डूबा हुआ है. यही कारण है कि और भोलेनाथ के हर मंदिरों में श्रद्धालुओं की काफी भीड़ देखने को मिल रही है, लेकिन आज हम आपको भगवान भोलेनाथ के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे, जहां एक भक्त की भक्ति ने मंदिर को ही झुका दिया. भगवान भोलेनाथ का यह अनोखा मंदिर आज भी एक तरफ टेढ़ा है और वैसा का वैसा झुका हुआ है.

Crooked Shiva Temple in Gwalior
ग्वालियर में आज भी टेढ़ा में शिव मंदिर

तानसेन की साधना का गवाह भोलेनाथ मंदिर: बता दें कि मध्य प्रदेश के ग्वालियर से 45 किलोमीटर दूर बेहट गांव में झिलमिल नदी के किनारे भगवान भोलेनाथ का यह मंदिर है. इसी बेहट गांव में अकबर के नौ रत्नों में से एक सुर सम्राट तानसेन का जन्म हुआ था. भगवान भोलेनाथ का यही मंदिर तानसेन की साधना का गवाह भी कहा जाता है. कहा जाता है कि संगीत सम्राट तानसेन बचपन से ही भगवान भोलेनाथ के परम भक्त थे. वह रोज झिलमिल नदी के किनारे इसी मंदिर पर भगवान शिव की आराधना करने आते थे और एक दिन अपनी संगीत साधना के दौरान ऐसा आलाप लगाया कि यह शिव मंदिर ही टेढ़ा हो गया. शिवजी का मंदिर आज भी वैसा का वैसा है और एक तरफ झुका हुआ है.

Behat village birth place of Tansen
तानसेन की जन्म स्थली बेहट गांव

भोलेनाथ ने दिए तानसेन को दर्शन: बताया जाता है कि सुर सम्राट तानसेन का जन्म बैहट गांव में ही मकरंद पांडे के यहां हुआ था. तानसेन का असली नाम तनसुख उर्फ त्रिलोचन था, लेकिन गांव के साथी उन्हें तन्ना के नाम से बुलाते थे जो कालांतर में तानसेन के नाम से प्रचलित हो गया. तानसेन को बचपन से ही संगीत का बेहद शौक था. बताते हैं कि तानसेन बचपन से बकरियां चराते थे और रोज बकरी का दूध झिलमिल नदी के किनारे बने इस भगवान भोलेनाथ के मंदिर पर चढ़ाते थे और इसी मंदिर पर बैठकर वह स्वर साधना करते थे. इसके साथ ही वह ज्यादातर समय इसी मंदिर पर बिताते थे. एक बार तानसेन भगवान शिव पर दूध चढ़ाना भूल गए, लेकिन जब शाम को खाना खाते समय उन्हें याद आया तो अपना खाना छोड़कर सीधे दूध चढ़ाने के लिए मंदिर की ओर निकल पड़े. इस दौरान झमाझम बारिश में जब वह मंदिर पहुंचे तो प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ ने उन्हें दर्शन दिए.

Unique Shiva Temple in Gwalior
ग्वालियर में भोलेबाबा का अनोखा मंदिर

तानसेन के संगीत से गर्मी में होने लगती थी बारिश: मान्यता है कि भगवान भोलेनाथ के आशीर्वाद के बाद तानसेन ने अपनी संगीत साधना के दौरान ऐसा अलाप लगाया कि यह मंदिर ही टेढ़ा हो गया. इसके बाद उनकी संगीत की ख्याति लगातार बढ़ती गई और उनके पिता तानसेन को लेकर ग्वालियर में मोहम्मद गौस के पास पहुंचे, उन्हें पूरा हाल बताया तो उन्होंने उसे वहीं रखकर संगीत की शिक्षा देना शुरू कर दी. बाद में उन्होंने वृंदावन में हरिदास महाराज से शास्त्रीय संगीत के गुर सीखे. इसके बाद तानसेन ने मानसिंह के दरबार के मुख्य संगीतज्ञ बैजू बावरा से भी शिक्षा ली और धीरे-धीरे तानसेन पूरी दुनिया में स्वर के सम्राट बन गए. कहते हैं कि जब तानसेन संगीत की अलाप लगाते थे उस दौरान भरी गर्मी में भी बारिश होने लगती थी और जंगल में सभी पशु और पक्षी उनके संगीत को सुनने के लिए उनके पास बैठ जाया करते थे.

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अनोखा मंदिर देखने दूर-दूर से पहुंचते हैं भक्त: संगीत सम्राट तानसेन की जन्म स्थली बेहट में बना शिव मंदिर आज भी वैसा का वैसा टेढ़ा है. यह मंदिर स्वर के सम्राट तानसेन की अनोखी साधना का एक ऐसा प्रतीत है जो आज भी गवाह बना हुआ है. भगवान भोलेनाथ के इस अनोखे मंदिर को देखने के लिए दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं. इसके साथ ही शिव जी यह टेड़ी मढिया आज भी देश के संगीतज्ञ के लिए न केवल कोतूहल बल्कि श्रद्धा का विषय भी है. बड़ी संख्या में लोग इसे देखने के लिए आते हैं. वही सावन के महीने में यहां पर काफी दूर-दूर से लोग भगवान भोलेनाथ के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं.

तानसेन के तीन राग हुए मशहूर: बताते हैं संगीत सम्राट तानसेन के तीन राग बहुत ही प्रसिद्ध हैं. पहली 'मियां की मल्हार..' किदवंती है कि इसके गायन से बारिश होने लगती थी. यह अत्यंत प्राचीन राग है जिसे बारिश का राग भी कहा जाता है. तानसेन इसे भगवान शिव को बारिश के मौसम में खुश करने के लिए गाया करते थे. वही दूसरी राग 'दरबारी कान्हड़ा' है, जब ग्वालियर राजघराने की प्रस्तुति होती है तो पहली प्रस्तुति इसी की होती है. तानसेन ने इसकी रचना करने के बाद पहली बार अकबर के दरबार में सुनाया था. तभी से इसका नाम दरबारी कन्हड़ा पड़ गया. तीसरा राग 'ध्रुपद' है.

तानसेन की शिव भक्ति से टेढ़ा हुआ मंदिर

ग्वालियर। सावन के महीने में हर कोई भगवान भोलेनाथ की भक्ति में डूबा हुआ है. यही कारण है कि और भोलेनाथ के हर मंदिरों में श्रद्धालुओं की काफी भीड़ देखने को मिल रही है, लेकिन आज हम आपको भगवान भोलेनाथ के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे, जहां एक भक्त की भक्ति ने मंदिर को ही झुका दिया. भगवान भोलेनाथ का यह अनोखा मंदिर आज भी एक तरफ टेढ़ा है और वैसा का वैसा झुका हुआ है.

Crooked Shiva Temple in Gwalior
ग्वालियर में आज भी टेढ़ा में शिव मंदिर

तानसेन की साधना का गवाह भोलेनाथ मंदिर: बता दें कि मध्य प्रदेश के ग्वालियर से 45 किलोमीटर दूर बेहट गांव में झिलमिल नदी के किनारे भगवान भोलेनाथ का यह मंदिर है. इसी बेहट गांव में अकबर के नौ रत्नों में से एक सुर सम्राट तानसेन का जन्म हुआ था. भगवान भोलेनाथ का यही मंदिर तानसेन की साधना का गवाह भी कहा जाता है. कहा जाता है कि संगीत सम्राट तानसेन बचपन से ही भगवान भोलेनाथ के परम भक्त थे. वह रोज झिलमिल नदी के किनारे इसी मंदिर पर भगवान शिव की आराधना करने आते थे और एक दिन अपनी संगीत साधना के दौरान ऐसा आलाप लगाया कि यह शिव मंदिर ही टेढ़ा हो गया. शिवजी का मंदिर आज भी वैसा का वैसा है और एक तरफ झुका हुआ है.

Behat village birth place of Tansen
तानसेन की जन्म स्थली बेहट गांव

भोलेनाथ ने दिए तानसेन को दर्शन: बताया जाता है कि सुर सम्राट तानसेन का जन्म बैहट गांव में ही मकरंद पांडे के यहां हुआ था. तानसेन का असली नाम तनसुख उर्फ त्रिलोचन था, लेकिन गांव के साथी उन्हें तन्ना के नाम से बुलाते थे जो कालांतर में तानसेन के नाम से प्रचलित हो गया. तानसेन को बचपन से ही संगीत का बेहद शौक था. बताते हैं कि तानसेन बचपन से बकरियां चराते थे और रोज बकरी का दूध झिलमिल नदी के किनारे बने इस भगवान भोलेनाथ के मंदिर पर चढ़ाते थे और इसी मंदिर पर बैठकर वह स्वर साधना करते थे. इसके साथ ही वह ज्यादातर समय इसी मंदिर पर बिताते थे. एक बार तानसेन भगवान शिव पर दूध चढ़ाना भूल गए, लेकिन जब शाम को खाना खाते समय उन्हें याद आया तो अपना खाना छोड़कर सीधे दूध चढ़ाने के लिए मंदिर की ओर निकल पड़े. इस दौरान झमाझम बारिश में जब वह मंदिर पहुंचे तो प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ ने उन्हें दर्शन दिए.

Unique Shiva Temple in Gwalior
ग्वालियर में भोलेबाबा का अनोखा मंदिर

तानसेन के संगीत से गर्मी में होने लगती थी बारिश: मान्यता है कि भगवान भोलेनाथ के आशीर्वाद के बाद तानसेन ने अपनी संगीत साधना के दौरान ऐसा अलाप लगाया कि यह मंदिर ही टेढ़ा हो गया. इसके बाद उनकी संगीत की ख्याति लगातार बढ़ती गई और उनके पिता तानसेन को लेकर ग्वालियर में मोहम्मद गौस के पास पहुंचे, उन्हें पूरा हाल बताया तो उन्होंने उसे वहीं रखकर संगीत की शिक्षा देना शुरू कर दी. बाद में उन्होंने वृंदावन में हरिदास महाराज से शास्त्रीय संगीत के गुर सीखे. इसके बाद तानसेन ने मानसिंह के दरबार के मुख्य संगीतज्ञ बैजू बावरा से भी शिक्षा ली और धीरे-धीरे तानसेन पूरी दुनिया में स्वर के सम्राट बन गए. कहते हैं कि जब तानसेन संगीत की अलाप लगाते थे उस दौरान भरी गर्मी में भी बारिश होने लगती थी और जंगल में सभी पशु और पक्षी उनके संगीत को सुनने के लिए उनके पास बैठ जाया करते थे.

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अनोखा मंदिर देखने दूर-दूर से पहुंचते हैं भक्त: संगीत सम्राट तानसेन की जन्म स्थली बेहट में बना शिव मंदिर आज भी वैसा का वैसा टेढ़ा है. यह मंदिर स्वर के सम्राट तानसेन की अनोखी साधना का एक ऐसा प्रतीत है जो आज भी गवाह बना हुआ है. भगवान भोलेनाथ के इस अनोखे मंदिर को देखने के लिए दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं. इसके साथ ही शिव जी यह टेड़ी मढिया आज भी देश के संगीतज्ञ के लिए न केवल कोतूहल बल्कि श्रद्धा का विषय भी है. बड़ी संख्या में लोग इसे देखने के लिए आते हैं. वही सावन के महीने में यहां पर काफी दूर-दूर से लोग भगवान भोलेनाथ के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं.

तानसेन के तीन राग हुए मशहूर: बताते हैं संगीत सम्राट तानसेन के तीन राग बहुत ही प्रसिद्ध हैं. पहली 'मियां की मल्हार..' किदवंती है कि इसके गायन से बारिश होने लगती थी. यह अत्यंत प्राचीन राग है जिसे बारिश का राग भी कहा जाता है. तानसेन इसे भगवान शिव को बारिश के मौसम में खुश करने के लिए गाया करते थे. वही दूसरी राग 'दरबारी कान्हड़ा' है, जब ग्वालियर राजघराने की प्रस्तुति होती है तो पहली प्रस्तुति इसी की होती है. तानसेन ने इसकी रचना करने के बाद पहली बार अकबर के दरबार में सुनाया था. तभी से इसका नाम दरबारी कन्हड़ा पड़ गया. तीसरा राग 'ध्रुपद' है.

Last Updated : Jul 17, 2023, 8:25 PM IST
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