जालंधर : आधुनिक युग में विरासत को सहेजने की पुरानी पंजाबी परंपरा लुप्त होती जा रही है. ऐसे में कुछ लोग हैं जो विरासत सहेजने में दिलचस्पी हैं. वे ना सिर्फ दिलचस्पी दिखा रहे हैं बल्कि इसके लिए जतन भी कर रहे हैं. चाहे वह पुराना इस्तेमाल किया हुआ सामान हो, सड़कों पर दौड़ने वाली कारें हों या पुरानी बेल्ट और बेड. ऐसे ही एक शख्स हैं कपूरथला जिले की फगवाड़ा तहसील के खजुरला गांव के सुरिंदर सिंह. सुरिंदर सिंह पेशे से किसान हैं और साथ ही एक प्रख्यात इतिहासकार भी हैं. सुरिंदर का कहना है कि पंजाब की विरासत से जुड़ी प्राचीन वस्तुएं और अन्य सामान इकट्ठा करना और उन्हें यादों के रूप में सजाना उनका शौक ही नहीं बल्कि उनकी परंपरा में भी है. सुरिंदर सिंह ने अपने घर का नाम संग्रहालय के नाम पर रखा है. सुरिंदर ने अपने घर में परिवार के लोगों, रिश्तेदारों, ग्रामीणों और राज्य और देश भर में घूम-घूम कर पूरानी चिजें जुटाई हैं.
उनके ही घर में बने इस संग्रहालय में उनके पूर्वजों की लकड़ी की पुरानी अलमारियां, लकड़ी के बक्से, कई पुराने तांबे के बर्तन और पुराने जमाने के गीजर हैं, जो आग से संचालित होते थे. सुरिंदर सिंह एक किसान हैं. इन घरेलू चिजों से उन्हें कितना लगाव है यह उनके संग्राहलय में दिखता है. राट, लकड़ी के हल, कृषि में उपयोग की जाने वाली पुरानी प्राचीन वस्तुएं भी सुरिंदर के संग्राहलय में दिख जाती हैं. सुरिंदर ने किसान आंदोलन में अपना पूरा योगदान दिया. इस आंदोलन का एक प्रमुख हिस्सा बने रहे. उन्होंने कहा कि आंदोलन की स्मृति आज भी उनके दिमाग में उन सभी पुरानी चीजों के रूप में है, जिनका इस्तेमाल उन्होंने आंदोलन के दौरान किया था.
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सुरिंदर सिंह बताते हैं कि उनके पास उनके दादा-दादी, परदादा आदि की उपयोग की गई वस्तुएं भी हैं. उनका कहना है कि उनके परिवार के कई बुजुर्ग विदेश जाकर बस गए. उनमें सबसे पहले बाबा बीर सिंह थे जिन्होंने सबसे पहले विदेशी धरती पर पैर रखा था. उन्होंने कहा कि इसके बाद उनके दादा जगतार सिंह, उनके छोटे भाई निरंजन सिंह, उनके चाचा दर्शन सिंह और महिंदर सिंह कनाडा, सिंगापुर, हांगकांग, अर्जेंटीना और फ्रांस जैसे देशों में गए लेकिन उनकी जड़ें हमेशा पंजाब और पंजाबियत से जुड़ी रहीं.
सिख विरासत, इतिहास और साहित्य से संबंधित वस्तुएं इस संग्रहालय का एक प्रमुख हिस्सा हैं. बुजुर्गों के चित्र से साथ-साथ गांव के इतिहास के बारे में भी जानकारी उपलब्ध है. बर्तन के अलावा बिस्तर, अलमारी, पुराने रेडियो, दूध पिलाने वाले गिलास की दो मुंह वाली बोतल, देसी वॉशबेसिन, हल, 1925 का एक लकड़ी का गेट, दादा-दादी द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली पुरानी लोहे की बाल्टियां, एक वॉटर हीटर भी उनके संग्राहलय में देखा जा सकता है. इन सब के साथ, पिछले एक साल के किसान आंदोलन के दौरान इस्तेमाल किए गए सामान भी उनके संग्राहलय में देखे जा सकते हैं. सुरिंदर सिंह का कहना है कि पंजाब और पंजाबी विरासत का संग्रह उनके लिए सिर्फ शौक नहीं है. यह उनकी पारिवारिक परंपरा का हिस्सा है.