मंगला गौरी व्रत: हिंदू कैलेंडर के अनुसार इस समय सावन का महीना चल रहा है. वैसे तो सावन 30 दोनों का ही होता है लेकिन इस बार अधिक मास होने के कारण यह सावन 2 महीने का होगा. अधिक मास प्रत्येक 3 वर्ष में एक बार पड़ता है. सावन के महीने की अद्भुत महिमा है, वैसे तो भगवान वैसे तो सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित है लेकिन सावन के महीने में माता पार्वती की पूजा का भी अपना अलग ही महत्व है.
जैसे सावन के सोमवार में व्रत रखकर भगवान शिव की पूजा की जाती है, उसी प्रकार सावन के मंगलवार को मंगला गौरी व्रत रखकर माता पार्वती की पूजा का विधि विधान है. मंगला गौरी का व्रत रखने से दांपत्य सुख और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है.इसके साथ ही जिन कन्याओं का विवाह नहीं होता उन्हें जल्दी ही सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है, मंगला गौरी के व्रत की पूजा के दौरान कथा पढ़ने कथा पढ़ पढ़ी जाती है,आइए जानते हैं मंगला गौरी की व्रत कथा...
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार धर्मपाल नाम का एक धनी सेठ और उसकी एक बीवी थी, सेठ धर्मपाल की पत्नी काफी रूपवान थी. उनके जीवन में धन-धान्य, संपन्नता की कोई कमी नहीं थी किंतु उनकी कोई संतान न होने से धर्मपाल और उसकी पत्नी हमेशा दुखी रहते थे.बहुत वर्षों के बाद भगवान की पूजा-अनुष्ठान करने के बाद ईश्वर की कृपा से धर्मपाल और उसकी पत्नी को एक संतान की प्राप्ति हुई किंतु उसकी संतान को अल्पायु का श्राप था. इस श्राप के का कारण उसकी मृत्यु 16 वर्ष की आयु में ही हो जाती.
धर्मपाल की बहू को मिला अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद: ईश्वर की कृपा से धर्मपाल की संतान का विवाह 16 वर्ष से पहले ही हो गया. जिस कन्या से धर्मपाल के बेटे का विवाह हुआ था, वह कन्या सावन के महीने में मां गौरी की पूजा-आराधना करती थी. वह मंगला गौरी का व्रत रखकर मां गौरी की पूजा करती थी जिस कारण माता पार्वती ने उस कन्या को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद दिया था. माता पार्वती के आशीर्वाद से वह कन्या अखंड सौभाग्यवती हुई और उसका पति 100 वर्षों तक जीवित रहा. तब से ही मंगला गौरी व्रत की महिमा है और सभी विवाहित-अविवाहित स्त्रियां-कन्याएं माता पार्वती की प्रसन्नता के लिए इस व्रत को विधि विधान से रखती है.