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ओडिशा: कलाहांडी में धूमधाम से मनाया गया 'सप्तपुरी अमावस्या'

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Published : Sep 7, 2021, 4:52 PM IST

Updated : Sep 7, 2021, 5:20 PM IST

ओडिशा के कलाहांडी जिले में सप्तपुरी अमावस्या त्योहार धूमधाम से मनाया गया. यह पर्व दो दिनों तक चलता है, जिसमें बच्चों को नए पोशाक दिये जाते हैं और उनके लिए परंपरागत मिठाइयां बनती हैं.

'सप्तपुरी अमावस्या'
'सप्तपुरी अमावस्या'

भवानीपटना : ओडिशा के कलाहांडी जिले (Kalahandi dist of Odisha) में सप्तपुरी अमावस्या (saptpuri amavasya) का पर्व धूमधाम से मनाया गया. दो दिन तक चलने वाला यह त्योहार सोमवार से शुरू हुआ. पहले इस त्योहार को पूरे कलाहांडी में मनाया जाता था और इसे पारंपरिक बाल दिवस माना जाता था. लेकिन, अब यह पर्व ग्रामीण इलाकों तक ही सीमित है.

इस दिन घरों में बच्चों के लिए परंपरागत मिठाइयां, 'खाजा' जैसे पकवान बनाए जाते हैं. इसमें कुल देवी-देवताओं की पूजा की जाती है और बच्चों को सजाधजा कर खेलने भेजा जाता है.

पढ़ें : इनकी अनूठी शिक्षण शैली ने बच्चों के स्कूल छोड़ने की दर को किया कम

इस दिन बच्चे टेराकोटा (terracotta) और लकड़ी से बने बैल, घोड़े और हाथी को खींचते हैं, जो सूखे मेवों और फूलों से लदे होते हैं. ऐसी मान्यता है कि पुराने जमाने में क्षेत्र के व्यवसायी बैल, हाथी आदि पर अपना सामान लादकर इस दिन दूर-दराज की यात्रा पर रवाना होते थे.

सप्तपुरी अमावास्या का महत्व

भाद्रव माह के अमावास्या को सप्तपुरी अमावास्या या कुशग्रहणी अमावास्या के रूप में मनाया जाता है. इस दिन ओडिशा के आराध्या देवता श्रीजगन्नाथ के निकट सप्तपुरी भोग चढ़ाया जाता है.

इस दिन महाप्रभु के निकट विशेष नीति होती है. इसके साथ ही सेवायत विशेष मिठाई सप्तपुरी का भोग चढ़ाते हैं. इस मिठाई को 'सप्तपुरी ताड़' कहा जाता है. सुबह की आरती के बाद महाप्रभु के निकट यह भोग चढ़ाया जाता है.

टेराकोटा के खिलौने
टेराकोटा के खिलौने

वहीं, सुवर्णपुर, कलाहांडी, बलांगीर आदि जिलों में सप्तपुरी अमावास्या को अनोखे ढंग से मनाया जाता है. यहां सप्तपुरी अमावास्या को पश्चिम लंका के नाम से मनाया जाता है. यहां की ईष्ट देवी मां लंकेश्वरी हैं. इस दिन टेराकोटा और लकड़ी से बने हाथी, घोड़े आदि की मांग रहती है. इन खिलौनों को बच्चे लेकर नगर परिक्रमा करते हैं.

(पीटीआई-भाषा)

भवानीपटना : ओडिशा के कलाहांडी जिले (Kalahandi dist of Odisha) में सप्तपुरी अमावस्या (saptpuri amavasya) का पर्व धूमधाम से मनाया गया. दो दिन तक चलने वाला यह त्योहार सोमवार से शुरू हुआ. पहले इस त्योहार को पूरे कलाहांडी में मनाया जाता था और इसे पारंपरिक बाल दिवस माना जाता था. लेकिन, अब यह पर्व ग्रामीण इलाकों तक ही सीमित है.

इस दिन घरों में बच्चों के लिए परंपरागत मिठाइयां, 'खाजा' जैसे पकवान बनाए जाते हैं. इसमें कुल देवी-देवताओं की पूजा की जाती है और बच्चों को सजाधजा कर खेलने भेजा जाता है.

पढ़ें : इनकी अनूठी शिक्षण शैली ने बच्चों के स्कूल छोड़ने की दर को किया कम

इस दिन बच्चे टेराकोटा (terracotta) और लकड़ी से बने बैल, घोड़े और हाथी को खींचते हैं, जो सूखे मेवों और फूलों से लदे होते हैं. ऐसी मान्यता है कि पुराने जमाने में क्षेत्र के व्यवसायी बैल, हाथी आदि पर अपना सामान लादकर इस दिन दूर-दराज की यात्रा पर रवाना होते थे.

सप्तपुरी अमावास्या का महत्व

भाद्रव माह के अमावास्या को सप्तपुरी अमावास्या या कुशग्रहणी अमावास्या के रूप में मनाया जाता है. इस दिन ओडिशा के आराध्या देवता श्रीजगन्नाथ के निकट सप्तपुरी भोग चढ़ाया जाता है.

इस दिन महाप्रभु के निकट विशेष नीति होती है. इसके साथ ही सेवायत विशेष मिठाई सप्तपुरी का भोग चढ़ाते हैं. इस मिठाई को 'सप्तपुरी ताड़' कहा जाता है. सुबह की आरती के बाद महाप्रभु के निकट यह भोग चढ़ाया जाता है.

टेराकोटा के खिलौने
टेराकोटा के खिलौने

वहीं, सुवर्णपुर, कलाहांडी, बलांगीर आदि जिलों में सप्तपुरी अमावास्या को अनोखे ढंग से मनाया जाता है. यहां सप्तपुरी अमावास्या को पश्चिम लंका के नाम से मनाया जाता है. यहां की ईष्ट देवी मां लंकेश्वरी हैं. इस दिन टेराकोटा और लकड़ी से बने हाथी, घोड़े आदि की मांग रहती है. इन खिलौनों को बच्चे लेकर नगर परिक्रमा करते हैं.

(पीटीआई-भाषा)

Last Updated : Sep 7, 2021, 5:20 PM IST
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