पटनाः हर साल 20 मार्च को गौरैया दिवस के रूप में मनाया जाता है. आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि गौरैया हमारे पृथ्वी से क्यों लुप्त हो रही है. गौरैया दिवस का क्या संदेश है. बता दें कि गौरैया घरेलू पक्षियों में शामिल है. गौरैया पक्षी इंसानों के बीच में रहती है. लेकिन अब इंसानों से दूर होते जा रही है पहले घरों के आंगन में छतों पर या मुंडेर पर दिखाई देती थी. घर आंगन में फुदकने वाली ये गौरैया ना तो अब दिखाई देती है और ना ही इसकी आवाज सुनने को मिलती है. लेकिन राजधानी पटना में एक परिवार अपने स्तर से इस पंछी की चहचहाहट को बढ़ाने में दिन रात लगा हुआ है .
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घर में घोसला बनाकर गौरैया का संरक्षणः पटना के कंकड़बाग के रहने वाले संजय 1997 से ही गौरैया पक्षी के संरक्षण के लिए काम कर रहे हैं. अपने घरों की बालकनी में गौरैया के रहने के लिए घोसला बनाए हुए हैं और उसमें टाइम टाइम पर दाना पानी रखते हैं. जहां पर गौरैया झुंड में पहुंच करके अपनी प्यास बुझाती है और पेट भरती है. उनका मानना है कि जिस हिसाब से पेड़ों की कटाई की जा रही है शहर से लेकर के गांवों में घरों का भी ढांचा बदल गया है, यही वजह हे कि संजय सोशल मीडिया के माध्यम से गौरैया संरक्षण के लिए अभियान चलाते है.
"सभी लोग अपने घर की बालकनी या छत पर गर्मी के दिनों में अगर पानी रखें तो उसे पक्षियों का प्यास बुझाया जा सकता है. बिहार सरकार गोरैया संरक्षण को लेकर 2013 में गोरैया पक्षी को राजकीय पक्षी घोषित कर चुकी है. आज गोरैया दिवस पर शहर में लोगों को जागरूक करने के लिए कार्यक्रम किया जा रहा है. सरकार का भी प्रयास है कि लोगों को जन जागरूक कार्यक्रम के माध्यम से गौरैया पक्षी का संरक्षण किया जा सके, जिससे कि लोगों के घरों में फिर से गौरैया पक्षी का चहचहाट सुनाई दे"- संजय कुमार, उपनिदेशक, पीआईबी पटना
क्या है पृथ्वी पर गौरैया पक्षी का महत्वः आपको बता दें कि गौरैया पक्षी को पृथ्वी पर प्रकृति का संतुलन बनाए रखने में भी बड़ा योगदान है, बदलते परिवेश में गौरैया पक्षी अब ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर शहर तक देखने को नहीं मिल रही है. दुर्भाग्य की बात है कि इनकी तदादा धीरे-धीरे कम हो गई है. ऐसे में गौरैया दिवस पर संरक्षण को लेकर के लिए कार्यक्रम कराया जाता है. गौरैया संरक्षण को लेकर लोगों को जन जागरूक करने के लिए हर साल 20 मार्च को गौरैया दिवस मनाया जाता है. जिस तरह से हवा प्रदूषित हो रही है, प्रदूषण बढ़ता जा रहा है और अन्य कारणों से गौरैया पक्षी की संख्या कम होती जा रही है. लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत की बात है कि इस पक्षी की याद गौरैया दिवस के मौके पर एक दिन ही आती है, उसी दिन सभी लोग सचेत होते हैं और फिर भूल जाते है.
लोगों की जागरूकता बढ़ाने की जरूरतः गौरैया पक्षी का विकास मानव विकास के साथ-साथ माना जाता है. यह पक्षी इंसान की आबादी के आस-पास ही रहती है, लेकिन बदलते परिवेश और शहरीकरण से इस पक्षी को इंसान से दूर कर दिया है. यही वजह है कि राजधानी पटना समेत कई शहरों में ये देखने को नहीं मिलती है. एक जमाना था जब गौरैया घरों में अपना घोंसला बना कर भी रहती थी, जिसे लोग देख कर शुभ मानकर घोसला नहीं तोड़ते थे, क्योंकि इसे धन का प्रतीक भी माना जाता है. छतों पर कोई अनाज सुखाने के लिए रखता था तो वह दाना खाया करती थी ये लोगों को खूब पसंद आता था, लेकिन अब ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर शहरों तक दूर-दूर तक नजर दौड़ाने पर भी ये नजर नहीं आती है. विश्व गौरैया दिवस का मेन उद्देश्य है कि पक्षियों के बारे में लोगों की जागरूकता बढ़ाने के साथ-साथ उसके संरक्षण के लिए कार्यक्रम किए जाए.