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वर्चस्व की लड़ाई में उलझा संयुक्त किसान मोर्चा हुआ दो फाड़ - दिल्ली में SKM की बैठक में फैसला

संयुक्त किसान मोर्चा (samyukt Kisan morcha) में अब अंतर्कलह और दो फाड़ होने की खबरें सामने आ रही हैं. 21 मार्च को किसान मोर्चा ने रोष दिवस मनाने का आह्वान किया है. इसी दिन लखीमपुर खीरी में संयुक्त किसान मोर्चा की राष्ट्रीय बैठक बुलाई है. अभिजीत ठाकुर की रिपोर्ट.

SKM
गुरनाम चढूनी
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Published : Mar 17, 2022, 9:24 PM IST

नई दिल्ली : किसानों के हित और आंदोलन के साथ बना किसान संगठनों का साझा मंच संयुक्त किसान मोर्चा में अब अंतर्कलह और दो फाड़ होने की खबरें सामने आ रही हैं. किसान आंदोलन के स्थगित होने के बाद जब पंजाब के 24 किसान संगठनों ने राजनीतिक दल का गठन कर विधानसभा चुनाव लड़ने का निर्णय लिया तभी से किसान मोर्चा में मतभेद की बातें सामने आने लगी थी. चुनाव के नतीजों के बाद जब 14 मार्च को संयुक्त किसान मोर्चा ने दिल्ली में राष्ट्रीय बैठक बुलाई तो मतभेद खुल कर सामने आ गए.

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले संयुक्त किसान मोर्चा ने घोषणा की थी कि जो किसान संगठन राजनीतिक दल बनाकर चुनाव में उतर रहे हैं वह संयुक्त किसान मोर्चा का हिस्सा नहीं होंगे. साथ ही विधानसभा चुनाव तक उनके नेता भी किसान मोर्चा की किसी भी गतिविधियों से अलग रहेंगे. चुनाव के बाद ऐसे किसान नेताओं को फिर से मोर्चा में शामिल किया जाए या नहीं इस पर बैठक कर निर्णय किया जाना था. जब बैठक बुलाई गई तो बलबीर सिंह राजेवाल और गुरनाम चढूनी के नेतृत्व वाले किसान संगठनों ने बैठक स्थल पर ही कब्जा जमा लिया और अपनी समानांतर बैठक शुरू कर दी.

बलबीर सिंह राजेवाल और गुरनाम चडूनी के नेतृत्व में ही पंजाब में संयुक्त समाज मोर्चा और संयुक्त संघर्ष पार्टी का गठन कर किसान नेता चुनाव में उतरे थे. राजनीति में प्रवेश के बाद इन दो नेताओं को न केवल संयुक्त किसान मोर्चा के पांच सदस्यीय कमेटी से हटा दिया गया था बल्कि इन्हें बैठक में भी नहीं बुलाया गया था. इस बात से क्षुब्ध गुरनाम चढूनी और राजेवाल गुट के किसान बिन बुलाए ही मीटिंग में पहुंचे जिसके बाद तनाव का माहौल बन गया. हालांकि संयुक्त किसान मोर्चा के अन्य नेताओं ने परिस्थिति को संभालते हुए अपनी बैठक गांधी प्रतिष्ठान के मीटिंग हॉल की बजाय बाहर खुले में की.

इस तरह से संयुक्त किसान मोर्चा से जुड़े किसान संगठनों की दो अलग अलग बैठकें दिल्ली में हुईं. इसके बाद बुधवार को चंडीगढ़ में वरिष्ठ किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने बयान जारी कर कहा कि उन्होंने संयुक्त किसान मोर्चा की कोआर्डिनेशन कमेटी को भंग कर दिया है और उनके साथ जुड़े किसान संगठनों को ही संयुक्त किसान मोर्चा होने का दावा भी किया.

दूसरी तरफ बाकी किसान नेता जिसमें डॉ. दर्शन पाल, हन्नान मोल्लाह, जगजीत डल्लेवाल, युद्धवीर सिंह और योगेंद्र यादव शामिल हैं का दावा है कि संयुक्त किसान मोर्चा से राजेवाल और चढूनी गुट का अब कोई संबंध नहीं है. पूरे मामले पर 'ईटीवी भारत' ने वरिष्ठ किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल से भी संपर्क करने की कोशिश की लेकिन वह उपलब्ध नहीं हो सके.

21 को रोष दिवस मनाने का आह्वान
चुनाव के नतीजों में भाजपा की चार राज्यों की जीत से निराश संयुक्त किसान मोर्चा ने एक बार फिर किसानों को एकजुट कर नए सिरे से आंदोलन शुरू करने की घोषणा की है. अपनी लंबित मांगों के लिए 21 मार्च को किसान मोर्चा ने रोष दिवस मनाने का आह्वान किया है. दूसरी तरफ राजेवाल और चढूनी गुट ने इसी दिन लखीमपुर खीरी में संयुक्त किसान मोर्चा की राष्ट्रीय बैठक बुलाई है. दोनों गुट ने अपने अलग अलग कार्यक्रम तय किए हैं. हालांकि गैर राजनीतिक होने का दावा करने वाले गुट का कहना है कि लखीमपुर खीरी में बुलाई गई बैठक में जो भी किसान नेता या संगठन शामिल होंगे वह संयुक्त किसान मोर्चा के हिस्सा नहीं माने जाएंगे. अब देखने वाली बात होगी कि राजेवाल और चढूनी के गुट में बन रहे किसान मोर्चा में कौन से किसान संगठन शामिल होते हैं.

बहरहाल इस गुट के पास पंजाब के 24 और कुछ हरियाणा के किसान संगठनों का भी समर्थन बताया जा रहा है. ऐसे में किसानों के लिए आंदोलन चलाने की बात कर रहे किसान मोर्चा में वर्चस्व की लड़ाई आने वाले समय में और तेज हो सकती है.

पढ़ें- दिल्ली में SKM की बैठक में फैसला, 21 मार्च को करेंगे प्रदर्शन

सूत्रों की मानें तो सरकार की तरफ से लंबित मांगों पर बहरहाल कोई चर्चा नहीं हो रही है. एमएसपी को और प्रभावी बनाने के लिए कमेटी का गठन भी अभी ठंडे बस्ते में है. विधानसभा चुनाव में किसान आंदोलन का खास असर न होने के बाद अब सरकार पर भी दबाव कम है. ऐसे में आंदोलन के दौरान मृत किसानों के परिवार को मुआवजा देने से संबंधित भी कोई घोषणा हाल फिलहाल होती नहीं दिख रही. एक तरफ आंदोलन के दौरान दर्ज मुकदमे रद्द करने, दूसरी तरफ किसान मोर्चा अपने कुनबे में ही टूट से जूझ रहा है. ऐसे में एकजुट होकर नए सिरे से आंदोलन खड़ा कर सरकार पर फिर से दबाव बनाना किसान नेताओं के लिए बड़ी चुनौती साबित होगी.

पढ़ें- चुनाव परिणाम से मोर्चा का लेना-देना नहीं, आगे भी चलेगा किसान आंदोलन : योगेंद्र यादव

नई दिल्ली : किसानों के हित और आंदोलन के साथ बना किसान संगठनों का साझा मंच संयुक्त किसान मोर्चा में अब अंतर्कलह और दो फाड़ होने की खबरें सामने आ रही हैं. किसान आंदोलन के स्थगित होने के बाद जब पंजाब के 24 किसान संगठनों ने राजनीतिक दल का गठन कर विधानसभा चुनाव लड़ने का निर्णय लिया तभी से किसान मोर्चा में मतभेद की बातें सामने आने लगी थी. चुनाव के नतीजों के बाद जब 14 मार्च को संयुक्त किसान मोर्चा ने दिल्ली में राष्ट्रीय बैठक बुलाई तो मतभेद खुल कर सामने आ गए.

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले संयुक्त किसान मोर्चा ने घोषणा की थी कि जो किसान संगठन राजनीतिक दल बनाकर चुनाव में उतर रहे हैं वह संयुक्त किसान मोर्चा का हिस्सा नहीं होंगे. साथ ही विधानसभा चुनाव तक उनके नेता भी किसान मोर्चा की किसी भी गतिविधियों से अलग रहेंगे. चुनाव के बाद ऐसे किसान नेताओं को फिर से मोर्चा में शामिल किया जाए या नहीं इस पर बैठक कर निर्णय किया जाना था. जब बैठक बुलाई गई तो बलबीर सिंह राजेवाल और गुरनाम चढूनी के नेतृत्व वाले किसान संगठनों ने बैठक स्थल पर ही कब्जा जमा लिया और अपनी समानांतर बैठक शुरू कर दी.

बलबीर सिंह राजेवाल और गुरनाम चडूनी के नेतृत्व में ही पंजाब में संयुक्त समाज मोर्चा और संयुक्त संघर्ष पार्टी का गठन कर किसान नेता चुनाव में उतरे थे. राजनीति में प्रवेश के बाद इन दो नेताओं को न केवल संयुक्त किसान मोर्चा के पांच सदस्यीय कमेटी से हटा दिया गया था बल्कि इन्हें बैठक में भी नहीं बुलाया गया था. इस बात से क्षुब्ध गुरनाम चढूनी और राजेवाल गुट के किसान बिन बुलाए ही मीटिंग में पहुंचे जिसके बाद तनाव का माहौल बन गया. हालांकि संयुक्त किसान मोर्चा के अन्य नेताओं ने परिस्थिति को संभालते हुए अपनी बैठक गांधी प्रतिष्ठान के मीटिंग हॉल की बजाय बाहर खुले में की.

इस तरह से संयुक्त किसान मोर्चा से जुड़े किसान संगठनों की दो अलग अलग बैठकें दिल्ली में हुईं. इसके बाद बुधवार को चंडीगढ़ में वरिष्ठ किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने बयान जारी कर कहा कि उन्होंने संयुक्त किसान मोर्चा की कोआर्डिनेशन कमेटी को भंग कर दिया है और उनके साथ जुड़े किसान संगठनों को ही संयुक्त किसान मोर्चा होने का दावा भी किया.

दूसरी तरफ बाकी किसान नेता जिसमें डॉ. दर्शन पाल, हन्नान मोल्लाह, जगजीत डल्लेवाल, युद्धवीर सिंह और योगेंद्र यादव शामिल हैं का दावा है कि संयुक्त किसान मोर्चा से राजेवाल और चढूनी गुट का अब कोई संबंध नहीं है. पूरे मामले पर 'ईटीवी भारत' ने वरिष्ठ किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल से भी संपर्क करने की कोशिश की लेकिन वह उपलब्ध नहीं हो सके.

21 को रोष दिवस मनाने का आह्वान
चुनाव के नतीजों में भाजपा की चार राज्यों की जीत से निराश संयुक्त किसान मोर्चा ने एक बार फिर किसानों को एकजुट कर नए सिरे से आंदोलन शुरू करने की घोषणा की है. अपनी लंबित मांगों के लिए 21 मार्च को किसान मोर्चा ने रोष दिवस मनाने का आह्वान किया है. दूसरी तरफ राजेवाल और चढूनी गुट ने इसी दिन लखीमपुर खीरी में संयुक्त किसान मोर्चा की राष्ट्रीय बैठक बुलाई है. दोनों गुट ने अपने अलग अलग कार्यक्रम तय किए हैं. हालांकि गैर राजनीतिक होने का दावा करने वाले गुट का कहना है कि लखीमपुर खीरी में बुलाई गई बैठक में जो भी किसान नेता या संगठन शामिल होंगे वह संयुक्त किसान मोर्चा के हिस्सा नहीं माने जाएंगे. अब देखने वाली बात होगी कि राजेवाल और चढूनी के गुट में बन रहे किसान मोर्चा में कौन से किसान संगठन शामिल होते हैं.

बहरहाल इस गुट के पास पंजाब के 24 और कुछ हरियाणा के किसान संगठनों का भी समर्थन बताया जा रहा है. ऐसे में किसानों के लिए आंदोलन चलाने की बात कर रहे किसान मोर्चा में वर्चस्व की लड़ाई आने वाले समय में और तेज हो सकती है.

पढ़ें- दिल्ली में SKM की बैठक में फैसला, 21 मार्च को करेंगे प्रदर्शन

सूत्रों की मानें तो सरकार की तरफ से लंबित मांगों पर बहरहाल कोई चर्चा नहीं हो रही है. एमएसपी को और प्रभावी बनाने के लिए कमेटी का गठन भी अभी ठंडे बस्ते में है. विधानसभा चुनाव में किसान आंदोलन का खास असर न होने के बाद अब सरकार पर भी दबाव कम है. ऐसे में आंदोलन के दौरान मृत किसानों के परिवार को मुआवजा देने से संबंधित भी कोई घोषणा हाल फिलहाल होती नहीं दिख रही. एक तरफ आंदोलन के दौरान दर्ज मुकदमे रद्द करने, दूसरी तरफ किसान मोर्चा अपने कुनबे में ही टूट से जूझ रहा है. ऐसे में एकजुट होकर नए सिरे से आंदोलन खड़ा कर सरकार पर फिर से दबाव बनाना किसान नेताओं के लिए बड़ी चुनौती साबित होगी.

पढ़ें- चुनाव परिणाम से मोर्चा का लेना-देना नहीं, आगे भी चलेगा किसान आंदोलन : योगेंद्र यादव

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