हैदराबाद : कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में रोजाना 3 लाख से ज्यादा नए मामले सामने आ रहे हैं. मौत का आंकड़ा भी रोज बढ़ रहा है. इस बीच कहीं ऑक्सीजन की कमी से मरीजों की मौत, तो कहीं श्मशान की तस्वीरें झकझोर रही हैं. किसी को इलाज नहीं मिल रहा, तो किसी को दफन होने के लिए ज़मीन और किसी को श्मशान पहुंचने के लिए एंबुलेंस नहीं मिल रही. इन दिनों हर ओर से मातम की खबरें ही सामने आ रही हैं. लेकिन इस दौर में भी कुछ लोग ऐसे हैं जो अपने जज्बे और इंसानियत की बदौलत ऐसी मिसाल पेश कर रहे हैं कि उन्हें हर कोई सलाम कर रहा है.
कोरोना वॉरियर नंबर 1 प्रवीण बुतड़ा
मरीजों तक 'सांसें' पहुंचा रहे हैं
छत्तीसगढ़ में कोरोना की दूसरी लहर कहर बरपा रही है. नए मरीजों और मौत का आंकड़े में रोज़ इजाफा हो रहा है. छत्तीसगढ़ का दुर्ग जिला देश के सबसे प्रभावित जिलों में शामिल है. यही वजह है कि सरकार द्वारा लगाई गई पाबंदियां भी सबसे पहले दुर्ग में लगाई गईं. कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के बीच दुर्ग के प्रवीण बुतड़ा संजीवनी दे रहे हैं. प्रवीण ने ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर खरीदकर जरूरतमंद लोगों तक 'सांसें' पहुंचा रहे हैं.
प्रवीण के मुताबिक पिछले साल कोरोना काल के दौरान भी प्रवीण ने 5 ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर खरीदे थे और उसे मरीजों की सेवा के लिए लगा दिया. लेकिन इस साल कोरोना की दूसरी लहर में ऑक्सीजन की कमी हुई, तो 20 नए ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर खरीदे और जरूरतमंद मरीजों तक ऑक्सीजन पहुंचाई.
प्रवीण कुमार टैंट की दुकान चलाते हैं. शादी, पार्टी या अन्य समारोह में उनके टैंट रंग भरते हैं, लेकिन कोरोना काल में वो ऑक्सीजन की कमी से जूझते लोगों के लिए सांसों का जुगाड़ कर रहे हैं. कोरोना काल में टैंट का धंधा भले मंदा हो, लेकिन प्रवीण का ये जज्बा कइयों को इंसानियत सिखा रहा है.
तीन एंबुलेंस भी संचालित करते हैं प्रवीण
मौजूदा कोरोना संक्रमण के दौर में लोगों को ऑक्सीजन के अलावा एंबुलेंस की कमी से भी जूझना पड़ रहा है. प्रवीण ने जरूरमंद लोगों के लिए निशुल्क एंबुलेस सेवा भी चला रहे हैं. उनकी 3 एंबुलेंस जरूरतमंदों के घर पहुंचती हैं और मरीज को अस्पताल पहुंचाती हैं. अपने दोस्तों की मदद से दो गाड़ियां मंगवाई और फिर एक गाड़ी को किराए पर लेकर तीनों को एंबुलेंस में तब्दील कर दिया.
प्रवीण ने दो साल पहले ही वेडिंग कार्पोरेशन के नाम से नया ऑफिस शुरू किया था, लेकिन कोरोना काल में काम बंद पड़ा है. ऐसे में जब कोरोना के जरूरतमंद मरीजों को ऑक्सीजन और एंबुलेंस मुहैया करवाने की सोची, तो ऑफिस का नाम बदलकर मिशन सेव दुर्ग रख लिया. प्रवीण के मुताबिक रोजाना उनके पास 200 से 250 लोगों के फोन एंबुलेंस या ऑक्सीजन के लिए आते हैं, लेकिन संसाधन की कमी के कारण वो सिर्फ 50 लोगों की मदद ही कर पाते हैं.
कोरोना नंबर दो रविंद्र और अरविंद
दोस्त की कार बना ली एंबुलेंस
छत्तीसगढ़ के रायपुर में दो दोस्तों की जोड़ी एक मिसाल पेश कर रही है. रायपुर में भी कोरोना संक्रमण के हालात बहुत ही भयावह हैं. लेकिन इस स्थिति के बीच दो दोस्त अपनी जान जोखिम में डालकर संक्रमित लोगों को अपनी कार से ही अस्पताल पहुंचा रहे हैं.
रविंद्र सिंह क्षत्री बताते हैं कि शहर में लॉकडाउन लगने के बाद वो सोशल मीडिया के जरिये लोगों की मदद कर रहे थे, लेकिन फिर बिना इलाज और एंबुलेंस की कमी से मरीजों की मौत के मामले सामने आने लगे. लॉकडाउन के कारण परिवहन सेवाएं बंद थी, ऐसे में कार को एंबुलेंस बनाने का आइडिया सूझ गया. रविंद्र के दोस्त प्रमोद साहू ने मदद का हाथ बढ़ाया और अपनी गाड़ी दे दी. लेकिन समस्या ये थी कि रविंद्र को गाड़ी चलानी नहीं आती थी. जिसके बाद उनके दोस्त अरविंद सोनवानी आगे आए और आज दोनों मिलकर दोस्त की गाड़ी से जरूरतमंद मरीजों को अस्पताल पहुंचा रहे हैं. गाड़ी में बकायदा ऑक्सीजन सिलेंडर की भी व्यवस्था की गई है.
रविंद्र और अरविंद ने अपना नंबर सोशल मीडिया पर शेयर किया है. लोग फोन करते हैं और फिर रायपुर या रायपुर के 100 किलोमीटर के दायरे में वो फ्री एंबुलेंस सेवा देते हैं. अरविंद बताते हैं कि उनकी मां का देहांत इस बार लॉकडाउन में हो गया था. वो कोरोना से संक्रमित नहीं थी इसके बावजूद भी उन्हें अस्पताल ले जाने की व्यवस्था नहीं हो पाई. इस बात का मलाल तो उन्हें हमेशा रहेगा, लेकिन अब जरूरतमंदों को अस्पताल पहुंचाकर कई लोगों को इंसानियत की सीख दे रहे हैं. रविंद्र और अरविंद फिलहाल कार से लोगों को अस्पताल पहुंचा रहे हैं, लेकिन एंबुलेंस के लिए वो लोगों से चंदा इकट्ठा कर रहे हैं और अब तक दो लाख रुपये इकट्ठा कर चुके हैं. दोनों जनता से इस काम में बढ़ चढ़कर मदद करने की गुजारिश करते हैं.
कोरोना वॉरियर नंबर तीन भगत राघव
ये कहानी है आंध्र प्रदेश के एमबीए छात्र भरत राघव की. 27 साल के भरत वो कोरोना वॉरियर्स हैं जो कोरोना पीड़ितों की मौत के बाद शवों को अस्पताल और घरों से श्मशान घाट तक ले जाते हैं. कोरोना संक्रमण के मौजूदा दौर में जहां संक्रमित मरीज की मौत के बाद परिजन भी शव को हाथ नहीं लगा रहे हैं, वहां भरत राघव उन शवों को वैन में लेकर अंतिम संस्कार के लिए ले जाते हैं. राघव अब तक 100 से अधिक शवों को अपने वाहन से अंतिम संस्कार के लिए ले जा चुके हैं.
बोम्मुरु के रहने वाले एमबीए छात्र राघव की मां आंगनबाड़ी कार्यकर्ता हैं. राघव के पिता की गंभीर बीमारी के कारण चार साल पहले मौत हो गई थी. एंबुलेंस के अभाव में पिता की जान ना बचा पाने का दुख राघव को आज भी है, लेकिन मौजूदा कोरोना संक्रमण के दौर में वो इंसानियत की मिसाल पेश कर रहे हैं.
कोरोना हीरो नंबर चार सुरभि सोनी
हिमाचल प्रदेश के पालमपुर की सुरभि सोनी कोविड पॉजीटिव मरीजों के लिए भोजन की व्यवस्था करती हैं. सुरभि उन लोगों तक खाना पहुंचाती है, जो कोरोना पॉजीटिव हैं और होम आइसोलेशन की वजह से खान बनाने में असमर्थ हैं.
जिस परिवार में खाना बनाने वाला संक्रमित हो जाए, तो उनकी समस्या को समझते हुए सुरभि ने ऐसे लोगों की मदद करने की सोची और घरवालों की परमिशन लेकर इस काम को शुरू किया. सुरभि ने सोशल मीडिया के सहारे जरूरतमंदों से संपर्क साधना शुरू किया और उनके घर खान पहुंचाना शुरू कर दिया. पहले दिन दो लोगों के घर खाना पहुंचाने से शुरुआत हुई थी और फिलहाल सुरभि 6 से 8 लोगों तक दो वक्त का खाना पहुंचा रही हैं. खाना बनाने में उनकी मां मदद करती हैं. सुरभि ने कहा कि पालमपुर की सात से आठ किलोमीटर इलाके में जो भी जरूरतमंद उनसे संपर्क करेगा उस तक दो वक्त का खाना पहुंचाया जाएगा.
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