गोरखपुरः विवाद में आने के बाद रामचारितमानस की डिमांड बढ़ गई है. गीता प्रेस गोरखपुर उत्पाद प्रबंधक लाल मणि तिवारी ने बताया कि इस तरह के बयानबाजी के बाद धार्मिक ग्रंथों सहित रामचरितमानस की बिक्री में वृद्धि निश्चित रूप से हुई है. वह तो डिमांड की सप्लाई नहीं दे पाते. एक वर्ष में करीब 5 लाख रामचरितमानस की छपाई वह 9 भाषाओं में करते हैं. धार्मिक पुस्तक रामचरितमानस को लेकर चल रहे विवादित बयानों पर गीता प्रेस के प्रबंधन ने कहा कि ऐसे बयान सिर्फ सस्ती लोकप्रियता पाने के अलावा कुछ नहीं. ऐसा बयान देने से न तो बयान देने वाले का कोई फायदा होता है और न ही उसके राजनीतिक दल का. ऐसी बयानबाजी पर ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है. इस तरह की बयानबाजी से नेता खुद अपना और अपनी पार्टी का ही नुकसान करते हैं.
प्रबंधक लाल मणि तिवारी ने बताया कि इस पुस्तक का महत्व इतना है कि ऐसी बयानबाजी के बाद पुस्तक की बिक्री में बढ़ोतरी हो जाती है. रामचरितमानस कंठाधार है. इसमें लोगों के प्राण बसता है. लोग स्नान, ध्यान, पूजा पाठ मे तो इसको महत्व देते ही हैं. लोगों के घरों में पूजा स्थलों पर यह प्रमुख धार्मिक पुस्तक के रूप में स्थान पाती है. अज्ञानी लोग सिर्फ टिप्पणी करना जानते हैं. ज्ञानी लोग इसे ढूंढ-ढूंढकर पढ़ते हैं. इसके भाव, शब्द, व्याकरण, व्याख्या में डूब जाना चाहते हैं. बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर द्वारा धार्मिक पुस्तक रामचरितमानस पर दिए गए विवादित बयान के बाद सपा के कद्दावर और बड़बोले नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान से फिलहाल बवाल मचा है. यही वजह है कि धार्मिक पुस्तकों के छपाई के विश्व प्रसिद्ध सबसे प्रमुख स्थान गीता प्रेस से यह आवाज उठी है. स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामचरितमानस को लेकर एक विवादित बयान दिया, जिसमें उन्होंने रामचरितमानस को बैन कर दिए जाने की बात कही थी. इसके बाद प्रदेश में भी राजनीति गरमा गई है.
गीता प्रेस उत्पाद प्रबंधक डॉ. लाल मणि तिवारी ने कहा कि 'रामचरितमानस तो समाज को जोड़ने का ग्रंथ है, तोड़ने का नहीं. जो लोग इस तरह की बयान बाजी कर रहे हैं, मैं उनके विषय में ज्यादा कुछ तो नहीं कहना चाहता पर इतना जरूर कहूंगा कि यह सस्ती लोकप्रियता पाने और राजनीतिक बयानबाजी के सिवा कुछ नहीं है. मुझे यह भी पता नहीं कि ऐसी बयानबाजी से इन नेताओं को कोई लोकप्रियता मिलती है या नहीं, लेकिन यह जरूर कह सकता हूं कि ऐसी बयानबाजी के बाद लोग स्वयं का नुकसान तो करते ही हैं वहीं अपनी पार्टी का भी. लाल मणि तिवारी कहते है कि इस तरह के बयानबाजी के बाद धार्मिक ग्रंथों सहित रामचरितमानस की बिक्री में वृद्धि निश्चित रूप से होती है. वह तो डिमांड की सप्लाई नहीं दे पाते. एक वर्ष में करीब 5 लाख रामचरितमानस की छपाई वह 9 भाषाओं में करते हैं'.
लालमणि तिवारी ने बताया कि 'रामचरितमानस जैसा ग्रंथ जिससे सभी की आस्था जुड़ी हुई है. यह ऐसा ग्रंथ है, जिसमें सबसे बड़े त्याग का वर्णन किया गया है. इसमें अयोध्या नगरी एक फुटबॉल की तरह नजर आती है. जब श्रीराम अयोध्या राज्य अपने अनुज भरत को सौंपना चाहते हैं, वहीं भरत अपने बड़े भाई श्रीराम प्रभु को ही राज्य सौंपने की बात कहते हैं और सारा जीवन उनकी सेवा और उनके चरणों में बिताने की बात कहते हैं. यह ग्रंथ अटूट प्रेम, सौहार्द और मित्रता की भी मिसाल है, जहां श्रीराम प्रभु ने कोल, भीलों और सबरी को गले लगाया है. वहीं, निषादराज और श्रीराम प्रभु की मित्रता का सबसे बड़ा यह प्रमाण भी है. करोड़ों लोग घर घर में रामचरितमानस का पाठ करते हैं और उसे अपने घर के मंदिरों में रखते हैं. देश-विदेश तक इस पुस्तक की डिमांड है. यह इस बात को प्रमाणित करता है कि रामचरितमानस घर-घर में लोकप्रिय है और लोगों की आस्था इसके प्रति अगाध है'.
लालमणि तिवारी ने बताया कि 'बावजूद इसके यदि कोई रामचरितमानस पर इस तरह की टिप्पणी करता है, तो यह हास्यास्पद है. विश्व में सबसे ज्यादा धार्मिक पुस्तकों का प्रकाशन करने वाले गीता प्रेस मैनेजमेंट के अनुसार प्रतिवर्ष सवा दो करोड़ से ज्यादा धार्मिक पुस्तकें यहां प्रकाशित की जाती है, जिसमें 9 भाषाओं में 5 लाख से ज्यादा रामचरितमानस का प्रकाशन होता है. रामचरितमानस कि कुछ पंक्तियों पर हमेशा विवाद होता रहा है'.
इसमें प्रमुख रूप से 'ढोल, गंवार, शुद्र, पशु और नारी सकल ताड़ना के अधिकारी' के संदर्भ में गीता प्रेस के प्रबंधक लालमणि तिवारी का कहना है कि रामचरितमानस को तुलसीदास ने अवधी भाषा में लिखा है, चूंकि अवधी भाषा और हिंदी भाषा के बहुत से शब्दों में और शब्दों के अर्थ में अंतर है. जैसे ताड़ना का मतलब सिर्फ मारना-पीटना ही नहीं होता. ताड़ना का मतलब भोजपुरी में भी ताड़ना यानी देखने को कहा जाता है. यानी उन पर वाच किया जाए. कहने का तात्पर्य है कि इन सारी चीजों पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है. लोग अपनी-अपनी समझ के अनुसार इन चौपाइयों का अर्थ निकाल लेते हैं और विवाद को जन्म देते हैं. यदि उन्हें इसकी सही और सटीक जानकारी प्राप्त करनी है और इन ग्रंथों को पढ़ना होगा सिर्फ एक चौपाई का अपने हिसाब से अर्थ निकालकर उस पर टिप्पणी करना उचित नहीं है'.
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