सागर। मध्यप्रदेश के पशुपालन और पशु चिकित्सा विभाग सागर का अमला देसी नस्ल की ऐसी गायों की तलाश में जुटा है, जो आईवीएफ तकनीक के जरिए उन्नत नस्ल के बछिया को जन्म दे सके. दरअसल मध्यप्रदेश का पशु चिकित्सा विभाग ने प्रयोगशाला स्तर पर सफल प्रयोग के बाद अब जमीनी स्तर पर सफल प्रयोग के लिए सागर सहित दस जिलों का चयन किया गया. जहां उन्नत किस्म की बछिया के लिए देसी नस्ल की गाय में भ्रूण प्रत्यारोपण किया जाएगा. मैदानी अमला गायों और भैसों की तलाश में जुटा हुआ है और चयन के बाद विशेषज्ञों का दल आकर भ्रूण प्रत्यारोपण करेगा.
केंद्र सरकार के गोकुल मिशन के अंतर्गत योजना: केंद्र सरकार के पशुपालन और पशु चिकित्सा विभाग के गोकुल मिशन के अंतर्गत गाय और भैंसों की उन्नत नस्ल के लिए पहली बार आईवीएफ तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा. इसके जरिए देसी नस्ल की अच्छी गाय और बैल तैयार किए जा सकेंगे. प्रयोगशााला स्तर पर इसका सफल प्रयोग हो चुका है. अहमदाबाद के अलावा रुड़की और भोपाल के राज्य पशु चिकित्सालय में आईवीएफ तकनीक का प्रयोग सफल होने के बाद अब इसे जमीनी स्तर पर करने की तैयारी की जा रही है.
सागर के लिए मिलाा 375 भ्रूण प्रत्यारोपण का लक्ष्य: प्रयोगशाला स्तर पर प्रयोग सफल होने के बाद मिशन के तहत मध्यप्रदेश के 10 जिले सागर, दमोह, रायसेन, सीहोर, विदिशा, छिंदवाड़ा, खरगोन, नरसिंहपुर, मुरैना और खंडवा जिले शामिल किए गए हैं. देश के अलग-अलग स्थानों पर हुए आईवीएफ तकनीक के माध्यम से गायों में प्रजनन का प्रयोग अब जमीनी स्तर पर उतारने की प्रक्रिया शुरू की गयी है. मध्यप्रदेश में सागर जिले के लिए आईवीएफ तकनीक के जरिए 375 भ्रूण प्रत्यारोपण का लक्ष्य दिया गया है. इसके लिए देशी गाय और भैसों के चयन के लिए ग्रामीण स्तर पर सर्वे का काम चल रहा है.
देशी नस्ल की गायों के चयन में सावधानियां:
- योजना के अंतर्गत सागर जिले में भ्रूण प्रत्यारोपण के लिए गाय और भैसों का चयन किया जा रहा है. पशु के चयन में खास सावधानियां रखी जा रही है.
- गाय या भैंस ने एक या दो बार ही बछडे या बछिया को जन्म दिया हो.
- गाय या भैंस को प्रजनन संबंधी कोई रोग ना हो.
- भ्रूण प्रत्यारोपण के लिए गर्भाशय में किसी तरह का संक्रमण ना हो.
- इस आधार पर पशुपालन और पशु चिकित्सा विभाग के लोग गाय और भैंसों की तलाश कर रहे हैं. इसके बाद अहमदाबाद और भोपाल के विशेषज्ञों की टीम आकर तय करेगी कि स्थानीय स्तर पर चयनित पशुओं में से किस पशु में आईवीएफ तकनीक का इस्तेमाल किया जाए.
पशु पालकों को मिलेगा अनुदान: जिन पशु पालकों की गाय या भैंस का चयन सरकारी स्तर पर हो रहा है, तो प्रयोग के लिहाज से उनसे कोई शुल्क नहीं लिया जा रहा है, लेकिन भविष्य में किसानों को योजना के अंतर्गत अनुदान दिया जाएगा. आईवीएफ तकनीक से होने वाले भ्रूण प्रत्यारोपण में 21 हजार का खर्च आएगा. जिसमें पशुपालक को सिर्फ 15 सौ रुपए देने होंगे और बाकी सरकार की तरफ से अनुदान दिया जाएगा.
किसानों का क्या फायदा: सागर संभागीय पशु चिकित्सालय के पशु प्रजनन प्रभारी डाॅ जगदीश जायसवाल बताते हैं कि पशु पालकों को इस तकनीक से सबसे बड़ा लाभ ये है कि पशुओं को उन्नत किस्म के बछिया या बछडे़ तो मिलेंगे ही. इसके अलावा उन्हें बछिया या बछडे़ का व्यस्क होने के लिए 3 या 4 साल का इंतजार नहीं करना होगा, बल्कि एक साल के भीतर बछिया या बछड़ा व्यस्क हो जाएगा.
भारत में पहला प्रयोग: हमारे देश में आईवीएफ तकनीक का पहला प्रयोग गुजरात में किया गया है. जिस भैंस पर ये प्रयोग किया गया था, वो बन्नी नस्ल की थी. जिसने आईवीएफ तकनीक से बछडे को जन्म दिया था, हालांकि ये प्रयोग पांच प्रयासों की असफलता के बाद सफल हुआ था.