मुंबई: महाराष्ट्र में शिवसेना ने अपने मुखपत्र 'सामना' में तालिबान को लेकर संपादकीय लिखा है. इस संपादकीय में शिवसेना ने तालिबान को लेकर लिखा है कि आजकल हमारे देश में कोई भी किसी को तालिबानी कह रहा है क्योंकि अफगानिस्तान का तालिबानी शासन मतलब समाज व मानव जाति के लिए सबसे बड़ा खतरा है. पाकिस्तान, चीन जैसे राष्ट्रों ने तालिबानी शासन का समर्थन किया है, क्योंकि इन दोनों देशों में मानवाधिकार, लोकतंत्र, व्यक्तिगत स्वतंत्रता का कोई मोल नहीं बचा है.
हिंदुस्तान की मानसिकता वैसी नहीं दिख रही है. हम हर तरह से जबरदस्त सहिष्णु हैं. लोकतंत्र के बुरखे की आड़ में कुछ लोग तानाशाही लाने का प्रयास कर रहे होंगे फिर भी उनकी सीमा है इसलिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तुलना तालिबान से करना उचित नहीं है. 'तालिबान का कृत्य बर्बर होने के कारण निंदनीय है.' उसी तरह से आरएसएस, विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल का समर्थन करनेवालों की मानसिकता तालिबानी प्रवृत्तिवाली है. इस विचारधारा का समर्थन करनेवाले लोगों को आत्मपरीक्षण करने की जरूरत है. ऐसा मत वरिष्ठ कवि-लेखक जावेद अख्तर ने व्यक्त किया है और इसे लेकर कुछ लोग हंगामा करने लगे हैं.
जावेद अख्तर अपने मुखर बयानों के लिए जाने जाते हैं. इस देश की धर्मांधता, मुस्लिम समाज के चरमपंथी विचार, राष्ट्र की मुख्य धारा से कटे रहने की उसकी नीति पर जावेद ने सख्त प्रहार किए हैं. देश में जब-जब धर्मांध, राष्ट्रद्रोही विकृतियां उफान पर आईं, उन प्रत्येक मौकों पर जावेद अख्तर ने उन धर्मांध लोगों के मुखौटे फाड़े हैं. कट्टरपंथियों की परवाह किए बगैर उन्होंने ‘वंदे मातरम्’ गाया है. फिर भी संघ की तालिबान से की गई तुलना हमें स्वीकार नहीं है. संघ और तालिबान जैसे संगठनों के ध्येय में कोई अंतर नहीं होने की उनकी बात पूरी तरह से गलत है.
संघ की भूमिका व उनके विचारों से मतभेद हो सकते हैं और ये मतभेद जावेद अख्तर बार-बार व्यक्त करते हैं. उनकी विचारधारा धर्मनिरपेक्ष है इसलिए 'हिंदू राष्ट्र' की संकल्पना का समर्थन करनेवाले तालिबानी मानसिकता वाले हैं, ऐसा वैसे कहा जा सकता है? बर्बर तालिबानियों ने अफगानिस्तान में जो रक्तपात, हिंसाचार किया है व जो मानव जाति का पतन कर रहे हैं, वह दिल दहलाने वाला है. तालिबान के डर से लाखों लोगों ने देश छोड़ दिया है. महिलाओं पर जुल्म हो रहे हैं. अफगानिस्तान नर्क बन गया है. तालिबानियों को वहां सिर्फ धर्म अर्थात शरीयत की ही सत्ता लानी है. हमारे देश को हिंदू राष्ट्र बनाने का प्रयास करनेवाले जो-जो लोग व संगठन हैं, उनकी हिंदू राष्ट्र निर्माण की अवधारणा सौम्य है.
धर्म के नाम पर पाकिस्तान व हिंदुस्तान इन दो राष्ट्रों के निर्माण के बाद हिंदुओं को उनके हिंदुस्थान में लगातार दबाया न जाए. हिंदुत्व मतलब एक संस्कृति है, उस पर हमला करनेवालों को रोकने का अधिकार वे मांग रहे हैं. अयोध्या में बाबरी ढहाई गई व वहां राम मंदिर बननेवाला है, लेकिन आज भी बाबरी के लिए जो हिजड़ेगिरी कर रहे हैं, उनका इंतजाम करो और ऐसा कानूनी तौर पर करो, ऐसा कोई कह रहा होगा तो वे तालिबानी वैसे? कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटा दिया. इससे कश्मीर की घोंटी गई सांस मुक्त हो गई. इन सांसों को फिर से रोक दो, ऐसी मांग करनेवाले लोग ही तालिबानी हैं. कश्मीरी पंडितों की घर वापसी जरूरी है. इस पर किसी के भी बीच मतभेद नहीं होना चाहिए.
बीते दौर में 'बीफ' प्रकरण को लेकर जो धार्मिक उन्माद भड़का और इस पूरे प्रकरण के कारण जो लोग भीड़ की हिंसा का शिकार बने, उसका समर्थन शिवसेना ही क्या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी नहीं किया है. हिंदुत्व के नाम पर किसी तरह का उन्माद यहां स्वीकार नहीं है. ईरान में खुमैनी का शासन था और अब अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता आई है. इन दोनों शासनों से हिंदुत्व का संबंध जोड़ना हिंदू संस्कृति का अपमान है. 'मुझे इस देश का खुमैैनी नहीं बनना है.' ऐसा सीधा बयान उस समय हिंदू हृदयसम्राट बालासाहेब ठाकरे ने दिया था. शिवसेना अथवा संघ का हिंदुत्व व्यापक है. वह सर्वसमावेशक है. उसमें मानवाधिकार, व्यक्तिगत स्वतंत्रता, महिलाओं के अधिकार, ऐसे प्रगतिशील विचार शामिल हैं.
संघ अथवा शिवसेना तालिबानी विचारोंवाली होती तो इस देश में तीन तलाक के खिलाफ कानून नहीं बना होता व लाखों मुस्लिम महिलाओं को आजादी की किरण नहीं दिखी होती. संघ की स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अपनाई गई भूमिका संदिग्ध होने का आरोप कुछ विरोधी लगाते हैं. इस मुद्दे को एक तरफ रख दें लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक राष्ट्रीय स्वाभिमान वाला संगठन है. इस बारे में दो मत होने की संभावना नहीं है. देश की ज्यादातर जनसंख्या धर्मनिरपेक्ष है. वह सभ्य होने के साथ-साथ एक-दूसरे का आदर करती है इसलिए उन्हें तालिबानी विचार आकर्षित नहीं कर सकते, जावेद अख्तर का ऐसा कहना सही है. हिंदुस्थान में हिंदुत्ववादी विचार अति प्राचीन है. वजह ये है कि रामायण, महाभारत हिंदुत्व का आधार है.
बाहरी हमलावरों ने हिंदू संस्कृति पर तलवार के दम पर हमला किया. अंग्रेजों के शासन में धर्मांतरण हुए. उन सभी के खिलाफ हिंदू समाज लड़ता रहा, लेकिन वह कभी भी तालिबानी नहीं बना. हिंदुओं के मंदिर तोड़े गए, जबरन धर्मांतरण कराए गए, परंतु हिंदू समाज ने संयम नहीं छोड़ा. इसी अति संयम का यह समाज शिकार बनता रहा है. दुनिया के हर राष्ट्र आज धर्म की बुनियाद पर खड़े हैं. चीन, श्रीलंका जैसे राष्ट्रों का अधिकृत धर्म बौद्ध, अमेरिका-यूरोपीय देश ईसाई तो शेष सभी राष्ट्र 'इस्लामिक रिपब्लिक' के रूप में अपने धर्म की शेखी बघारते हैं परंतु विश्व पटल पर एक भी हिंदू राष्ट्र है क्या? हिंदुस्तान में बहुसंख्यक हिंदू होने के बावजूद भी यह राष्ट्र आज भी धर्म निरपेक्षता का झंडा लहराता हुआ खड़ा है. बहुसंख्यक हिंदुओं को लगातार दबाया न जाए, यही उनकी एक वाजिब अपेक्षा है. जावेद अख्तर हम जो कह रहे हैं, वो सही है न?