मुंबई : महाराष्ट्र की शिवसेना सरकार ने अपने मुखपत्र सामना में मोदी सरकार पर हमला बोला है. सामना के संपादकीय पेज पर छपे संपादकीय लेख में शिवसेना ने लिखा किो मोदी सरकार ने लोकतंत्र और आजादी का गला घोंटने का निर्णय कर ही लिया है. जहां-जहां भाजपा की सत्ता नहीं है, वहां-वहां राज्यपाल के मार्फत उस राज्य की सरकार की नब्ज दबाई जाए, ऐसी नीति मोदी सरकार ने तय कर ही ली है.
केंद्र सरकार राजधानी में दिल्ली सरकार संशोधन विधेयक लाई और जबरदस्ती उसे पारित भी करवा लिया. इससे दिल्ली की विधानसभा, दिल्ली के मुख्यमंत्री और पूरा मंत्रिमंडल का अधिकार शून्य हो गया है. दिल्ली केंद्रशासित प्रदेश है इसलिए वहां तमाम अधिकार नायब राज्यपाल के पास होते हैं. यह नायब राज्यपाल लोगों द्वारा चुने हुए मुख्यमंत्री को प्रताड़ित करने का एक भी मौका छोड़ता नहीं है.
विधानसभा और बहुमत का मोल नहीं रखा जाता है. अब नए संशोधन विधेयक से नायब राज्यपाल को ही दिल्ली प्रदेश का 'सरकार' बना दिया है. राज्यपाल मतलब ही सरकार, ऐसा संशोधन करके केंद्र ने दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल से प्रतिशोध लिया है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अब बहुमत होने के बाद भी कोई निर्णय नहीं ले सकेंगे. हर फाइल नायब राज्यपाल के पास मंजूरी के लिए भेजनी होगी. राज्यपाल केंद्र के प्रत्यक्ष एजेंट होने के कारण वे ऊपरवालों के हुक्म के अनुसार मुख्यमंत्री को उठक-बैठक करने को मजबूर करेंगे. ये सब करने की केंद्र सरकार को आवश्यकता थी क्या? दिल्ली की केजरीवाल सरकार लोकहित में बेहतरीन काम कर रही है. स्वास्थ्य, शिक्षा आदि विभागों में उनका काम प्रशंसा योग्य है.
मुख्य बात ये है कि हाल के दिनों में श्री केजरीवाल धार्मिक, आध्यात्मिक मार्ग पर चलने लगे हैं. वे काफी हद तक रामभक्त भी बन गए हैं. केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले और चुनाव जीतने के बाद परिवार सहित हनुमान मंदिर में जाकर पूजा-अर्चना की थी. केजरीवाल ने ऐसा भी घोषित किया था कि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण कार्य पूरा होने पर दिल्लीवासियों को अयोध्या मुफ्त में ले जाकर रामलला के दर्शन कराएंगे. केंद्र में मोदी की रामभक्त सरकार है. कई राज्यों में भाजपा की धार्मिक सरकारें हैं, परंतु एक को भी केजरीवाल की तरह मुफ्त अयोध्या दर्शन की कल्पना नहीं सूझी, ये विशेष बात है.
केजरीवाल रामभक्त बन गए, हनुमान भक्त बन गए. मोदी से ज्यादा देशभक्त बन गए, लेकिन वहां उनकी सरकार के अधिकार नष्ट कर दिए गए. दिल्ली विधानसभा में केजरीवाल की 'आप' पार्टी के 63 विधायक हैं. विधानसभा के लगातार तीन चुनाव केजरीवाल ने बहुमत से जीते हैं. मोदी और शाह की प्रतिष्ठा को दांव पर लगाकर भी केजरीवाल को वे पराजित नहीं कर सके. पिछले चुनाव में शाह दिल्ली में घर-घर घूमकर भाजपा का प्रचार कर रहे थे. फिर भी लोगों ने केजरीवाल को ही विजयी बनाया. यह खंजर किसी के सीने में घुसा ही होगा और उसी वेदना से कोई मुख्यमंत्री केजरीवाल के अधिकारों पर कुल्हाड़ी चला रहा होगा तो सीधे-सीधे लोकतंत्र का खून है.
राज्यपाल ही सरकार चलाएंगे, ऐसा नया राजधानी संशोधन विधेयक कहता होगा तो फिर दिल्ली की विधानसभा और मुख्यमंत्री किसलिए चाहिए? चुनाव वगैरह का खिलवाड़ करके लोकतंत्र का उत्सव मनाने से क्या हासिल होगा? किसलिए चाहिए विधायक और मंत्रिमंडल? दिल्ली में विधानसभा है, परंतु राजधानी क्षेत्र होने के कारण वह एक केंद्रशासित प्रदेश भी है. विधानसभा को पहले ही सीमित अधिकार होते हैं. दिल्ली की कानून-व्यवस्था पुलिस-प्रशासन केंद्र के हाथ में है। फिर ये होने के बाद भी विधानसभा के बचे-खुचे अधिकार भी छीन लेने की भूख किसलिए? लोगों द्वारा चुनी गई सरकार का यह अपमान है.
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केजरीवाल की जगह भाजपा के मुख्यमंत्री होते तो ऐसा विधेयक मोदी सरकार लाई ही नहीं होती, परंतु महाराष्ट्र हो या दिल्ली राज्यपाल के मार्फत भाजपा सत्ता पर काबिज होना चाहती है. इसके लिए लोकतंत्र का खून करना पड़ा तो भी चलेगा, यही उनकी नीति है. दिल्ली विधानसभा और मुख्यमंत्री का अधिकारों की तौहीन करके केंद्र सरकार एकाधिकारशाही के युग का भोंपू बजा रही है. यह देश के लिए घातक है.