मुंबई : शिवसेना के मुखपत्र सामान में केंद्र सरकार को निशाने पर लिया गया है. सामना में लिखा गया है कि गणतंत्र दिवस पर देश की राजधानी में जो कुछ हुआ, उसका समर्थन कोई नहीं करेगा. सिंघु बॉर्डर पर 60 दिनों से हजारों किसान आंदोलनरत हैं. वहीं किसान नेता कह रहे थे कि 26 जनवरी को वे ट्रैक्टर परेड करेंगे और आंदोलन शांति से होगा. लेकिन पुलिस द्वारा घेराबंदी के तहत लगाए गए बैरिकेड्स को तोड़कर आंदोलनकारियों के ट्रैक्टर्स दिल्ली की सीमा में घुस गए और सीधे लाल किला पहुंच गए. दिल्ली के राजपथ पर सुबह गणतंत्र दिवस की परेड हुई और दोपहर को किसानों की 'परेड' से पूरा देश हिल गया. इससे दिल्ली में खलबली मचने के साथ कानून-व्यवस्था की धज्जियां उड़ गईं.
सामना में कहा गया है कि गणतंत्र दिवस पर ऐसी घटना होने की पीड़ा सभी को है. लेकिन अब आंदोलनकारी किसानों पर भाजपा ने कार्रवाई शुरू कर दी है. दिल्ली में घुसकर उत्पात मचाने का कार्यक्रम पूर्व नियोजित था और किसानों का आंदोलन आतंकवादियों के हाथ में चला गया है, ऐसा भाजपा के खुफिया तंत्र का मानना है. अब यह है कि लाल किले में घुसकर जिस भीड़ ने हड़कंप मचाया, उस भीड़ का नेतृत्व दीप सिद्धू नाम का युवक कर रहा था.
ऐसा सामने आया है कि यह सिद्धू प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री अमित शाह के खेमे का है. भाजपा के पंजाब के सांसद सनी देओल का इस सिद्धू से करीबी संबंध है. राकेश टिकैत आदि किसान नेताओं का कहना है कि सिद्धू पिछले दो महीनों से किसानों की भीड़ में घुसकर बगावत और अलगाववाद की बात कर रहा था. जबकि पिछले 60 दिनों से किसानों का आंदोलन शांतिपूर्ण तरीके से चल रहा है.
सामना के संपादकीय में लिखा गया है कि किसान तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर दिल्ली की सीमा पर जमे हुए हैं. इसके बावजूद किसान आंदोलन में किसी भी प्रकार की फूट नहीं पड़ी और किसानों का धैर्य भी नहीं टूटा. इस कारण केंद्र सरकार को हाथ मलते हुए बैठना पड़ा. ऐसा भी कहा गया कि किसानों का आंदोलन खालिस्तानी है, लेकिन फिर भी किसान शांत रहे. सरकार की इच्छा थी कि किसानों को भड़का कर हिंसा के जरिए इस आंदोलन को बदनाम किया जाए.
26 जनवरी की उनकी इच्छा पूरी हो गई, तो इससे देश की बदनामी हुई, किसानों ने कानून अपने हाथ में ले लिया, ऐसा कहना आसान है. लेकिन कृषि कानून को रद्द करो, ऐसा आक्रोश 60 दिनों से चल रहा है. उस कानून को लेकर इतना लचर रवैया क्यों? किसान खुद की रोटी-सब्जी बनाकर दिल्ली की सीमा पर खा रहा है. पंजाब के किसानों का यही स्वाभिमानी तेवर सरकार को बेचैन कर रहा है. पंजाब के किसान खालिस्तानी आतंकवादी और देशद्रोही हैं, ऐसे आरोप लगाकर उन्हें पंजाब को फिर एक बार अशांत करना है. लेकिन पंजाब फिर से अस्थिर हुआ, तो यह देश के लिए अच्छा नहीं होगा.
किसानों से हाथ में लाठी लेने का आह्वान करते ही राकेश टिकैत देशद्रोही ठहरा दिए गए. लेकिन 'गोली मारो' और 'खत्म करो' जैसे भड़काऊ भाषण देने वाले संत आज मोदी मंत्रिमंडल में हैं. पश्चिम बंगाल में भाजपा नेताओं की भाषा हिंसा फैलाने वाली है. लेकिन टिकैत द्वारा हाथ में डंडा लेकर मोर्चे में शामिल होने की बात कहते ही सरकार बिफर पड़ी. किसानों के हाथ में हल, ट्रैक्टर और डंडे आदि नहीं होंगे तो और क्या होगा? दिल्ली के रास्ते पर जो लट्ठशाही हुई उसकी जिम्मेदारी सिर्फ किसान आंदोलनकारियों पर डालना ठीक नहीं है. सरकार को जो चाहिए था, वो करवा चुकी है. इसके शिकार किसान, अपना खून बहाने वाले पुलिसकर्मी और जवान हुए हैं. सरकार ने कानून लोगों के लिए बनाया. लेकिन जिसके लिए कानून बनाया वही कानून का विरोध कर रहे होंगे, तो सरकार अहंकार की अग्नि क्यों भड़का रही है? आंदोलन में शामिल किसान पंजाब के ही हैं और पूरे देश का उन्हें समर्थन प्राप्त नहीं है, सरकार का यह दावा भी गलत है.
पंजाब के साथ पूरा देश खड़ा है. लाल किला पर तिरंगा लहरा रहा है. भाजपा समर्थित मीडिया ने चिल्लाना शुरू किया कि आंदोलनरत किसानों ने तिरंगे का अपमान किया. लेकिन उनके झूठ का पर्दा हट गया. लाल किले पर उत्पात मचाने वालों का नेतृत्व जो सिद्धू नामक व्यक्ति कर रहा था, उसका संबंध भाजपा से है. तिरंगे को किसी ने हाथ नहीं लगाया. लाल किले के दूसरे गुंबद पर एक पीले रंग का धार्मिक झंडा फहराया गया, इस सच को दिखाने के लिए कोई तैयार नहीं है. जिन्होंने पुलिस पर हमला किया, उन्हें पकड़कर उन पर मुकदमा चलाना चाहिए.
सामना में लिखा गया है कि कानून हाथ में लेने वालों से सरकार सख्ती से निपटे. लेकिन 60 दिनों से दिल्ली की सीमा पर लड़ने वाले लाखों किसानों को देशद्रोही साबित करके हाशिए पर छोड़ देने वाली सरकार से जवाब मांगने वाला कोई है कि नहीं? तीन कृषि कानून ही देश का वर्तमान और भविष्य नहीं हैं. किसी न किसी का उसमें हित जुड़ा है, इसलिए किसानों का दमनचक्र चल रहा है! यह देशहित में नहीं है.