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रूस और अमेरिका के बीच वैक्सीन कूटनीति को लेकर हो सकती है प्रतिस्पर्धा : विशेषज्ञ

वैक्सीन कूटनीति दुनिया भर के देशों के लिए भू-राजनीति के प्रमुख कारकों में से एक बन गई है. रूस, चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत जैसे देशों में वैक्सीन कूटनीति को लेकर एक होड़ मची हुई है. विशेषज्ञों का मानना है कि आगे चलकर रूस और अमेरिका के बीच वैक्सीन कूटनीति को लेकर प्रतिस्पर्धा हो सकती है.

रूस और अमेरिका
रूस और अमेरिका
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Published : May 17, 2021, 10:40 PM IST

नई दिल्ली : जब से कोविड-19 महामारी ने दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है, दुनिया भर के देश तत्काल आधार पर टीकाकरण के लिए दौड़ रहे हैं. इसके बीच वैक्सीन कूटनीति दुनिया भर के देशों के लिए भू-राजनीति के प्रमुख कारकों में से एक बन गई है. रूस, चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत जैसे देशों को अपनी विदेश नीति के एजेंडा में वैक्सीन को एक उपकरण के रूप में वैक्सीन कूटनीति का उपयोग करते देखा जा रहा है.

हाल ही में, रूस अपने टीके स्पुतनिक वी से लाभ उठाने का कोशिश कर रहा है. भारत ने रूसी निर्मित कोविड-19 वैक्सीन के उपयोग को मंजूरी दे दी है, क्योंकि देश अभी भी महामारी के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा है. इसके साथ ही स्पुतनिक वी भारत में इस्तेमाल होने वाली पहली विदेशी निर्मित वैक्सीन बन गई है और दुनिया के सबसे बड़े कोविड-19 टीकाकरण अभियान में योगदान दे रहा है.इसने इस क्षेत्र में रूस की वैक्सीन कूटनीति को बढ़ाया है.

रविवार को भारत में रूसी राजदूत एन कुदाशेव ने घोषणा की कि भारत में रूसी कोविड-19 वैक्सीन स्पुतनिक वी का उत्पादन प्रति वर्ष 850 मिलियन खुराक तक बढ़ने की उम्मीद है.उन्होंने यह भी कहा कि रूस की सिंगल डोज कोविड वैक्सीन स्पुतनिक वी लाइट जल्द ही भारत में पेश करने की योजना है.

इस बारे में ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के निदेशक प्रोफेसर हर्ष वी पंत से पूछा गया कि क्या उपयोग के लिए स्पुतनिक वी वैक्सीन को प्रशासित करने का भारत का निर्णय रूस की सॉफ्ट कूटनीति की जीत है, तो उन्होंने कहा 'भारत का निर्णय वैक्सीन आपूर्ति बढ़ाने के भारत के प्रयास का एक कार्य है. जब से रूस वैक्सीन पर भारत के साथ साझेदारी करने में सक्षम रहा है, इसलिए भारत ने इसका विकल्प चुना है. मुझे नहीं लगता कि इसे रूस के लिए सॉफ्ट पावर डिप्लोमेसी के मामले में एक बड़े कारक के रूप में देखा जा सकता है, लेकिन रूस भारत का ऐतिहासिक साझेदार है और इस मामले में उसने मदद की पेशकश की और भारत ने मदद ली, लेकिन जहां तक भारत-रूस संबंधों का सवाल है, तो निश्चित रूप से वैक्सीन कूटनीति महत्वपूर्ण है.'

उन्होंने कहा कि क्या रूस-चीन वैक्सीन सहयोग गति प्राप्त कर रहा है? हाल ही में, उत्पादन को गति देने के लिए रूस को कई चीनी फर्मों को स्पुतनिक वी कोरोना वायरस वैक्सीन बनाते हुए देखा जा रहा है, क्योंकि इसके डोज की मांग बढ़ रही है. इसके अलावा रूस ने हाल के हफ्तों में चीनी वैक्सीन कंपनियों के साथ कुल 260 मिलियन खुराक के तीन सौदों की घोषणा की है.

इस बीच भारत की वैक्सीन कूटनीति ने देश में ऑक्सीजन, चिकित्सा सहायता, वैक्सीन आदि की कमी से महामारी की दूसरी लहर से जूझवे के साथ कमजोर हो गई और चीन ने अपनी विफल वैक्सीन नीति का लाभ उठाने के लिए कदम यह उठाया.

चीन टीकाकरण के मामले में वैश्विक समुदाय में अपनी पहचान बनाने के लिए मुकाबला कर रहा है और अब बांग्लादेश जैसे छोटे देशों का हाथ मिला रहा है, पिछले हफ्ते, चीन ने बांग्लादेश को आधा मिलियन सिनोफार्म वैक्सीन वितरित की, ताकि भारत द्वारा छोड़ी गई खाई को भरा जा सके क्योंकि बंग्लादेश वैक्सीन की गंभीर कमी से जूझ रहा है.

पढ़ें - इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष : यूएस सचिव की कतर, सऊदी अरब, मिस्र और फ्रांस के साथ चर्चा

प्रोफेसर हर्ष वी पंत ने आगे कहा कि निश्चित रूप से रूस चीन की ओर रुख कर रहा है और उनके संबंध आगे बढ़ रहे हैं. पश्चिमी शत्रुता को प्रबंधित करने के अपने प्रयास में रूस चीन को एक बहुत महत्वपूर्ण भागीदार के रूप में देखता है, लेकिन रूस भी चीन से अपनी स्वतंत्रता बनाए रखना चाहता है, इसलिए, भारत के साथ रूस का संबंध महत्वपूर्ण है. यह देखते हुए कि चीन का टीका वैश्विक बाजार में बहुत सफल नहीं रहा है और चीन के प्रवेश से बड़ी दक्षता नहीं है. ऐसे में बड़े पैमाने पर रूस द्वारा अपनी वैक्सीन को आगे बढ़ाने के लिए चीन के विनिर्माण भार का उपयोग करने की संभावना है.

इसका मतलब है कि रूस और चीन संभावित रूप से सहयोग कर सकते हैं, जहां अधिक से अधिक चीनी इकाइयां रूसी वैक्सीन का उत्पादन कर रही हैं, जो प्रभावी है और दोनों दुनिया भर में अपने राजनयिकों के साथ सहयोग कर रहे हैं.

विशेष रूप से,बाइडेन के नेतृत्व में अमेरिकी प्रशासन अमेरिका को वैक्सीन कूटनीति की दौड़ में शामिल कर रहा है, क्योंकि विभिन्न देशों से आपूर्ति में वृद्धि हो रही है.

इस महीने की शुरुआत में, व्हाइट हाउस ने घोषणा की कि संयुक्त राज्य अमेरिका जून 2021 से एस्ट्राजेनेका वैक्सीन की 60 मिलियन खुराक अन्य देशों को भेजेगा.

नई दिल्ली : जब से कोविड-19 महामारी ने दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है, दुनिया भर के देश तत्काल आधार पर टीकाकरण के लिए दौड़ रहे हैं. इसके बीच वैक्सीन कूटनीति दुनिया भर के देशों के लिए भू-राजनीति के प्रमुख कारकों में से एक बन गई है. रूस, चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत जैसे देशों को अपनी विदेश नीति के एजेंडा में वैक्सीन को एक उपकरण के रूप में वैक्सीन कूटनीति का उपयोग करते देखा जा रहा है.

हाल ही में, रूस अपने टीके स्पुतनिक वी से लाभ उठाने का कोशिश कर रहा है. भारत ने रूसी निर्मित कोविड-19 वैक्सीन के उपयोग को मंजूरी दे दी है, क्योंकि देश अभी भी महामारी के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा है. इसके साथ ही स्पुतनिक वी भारत में इस्तेमाल होने वाली पहली विदेशी निर्मित वैक्सीन बन गई है और दुनिया के सबसे बड़े कोविड-19 टीकाकरण अभियान में योगदान दे रहा है.इसने इस क्षेत्र में रूस की वैक्सीन कूटनीति को बढ़ाया है.

रविवार को भारत में रूसी राजदूत एन कुदाशेव ने घोषणा की कि भारत में रूसी कोविड-19 वैक्सीन स्पुतनिक वी का उत्पादन प्रति वर्ष 850 मिलियन खुराक तक बढ़ने की उम्मीद है.उन्होंने यह भी कहा कि रूस की सिंगल डोज कोविड वैक्सीन स्पुतनिक वी लाइट जल्द ही भारत में पेश करने की योजना है.

इस बारे में ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के निदेशक प्रोफेसर हर्ष वी पंत से पूछा गया कि क्या उपयोग के लिए स्पुतनिक वी वैक्सीन को प्रशासित करने का भारत का निर्णय रूस की सॉफ्ट कूटनीति की जीत है, तो उन्होंने कहा 'भारत का निर्णय वैक्सीन आपूर्ति बढ़ाने के भारत के प्रयास का एक कार्य है. जब से रूस वैक्सीन पर भारत के साथ साझेदारी करने में सक्षम रहा है, इसलिए भारत ने इसका विकल्प चुना है. मुझे नहीं लगता कि इसे रूस के लिए सॉफ्ट पावर डिप्लोमेसी के मामले में एक बड़े कारक के रूप में देखा जा सकता है, लेकिन रूस भारत का ऐतिहासिक साझेदार है और इस मामले में उसने मदद की पेशकश की और भारत ने मदद ली, लेकिन जहां तक भारत-रूस संबंधों का सवाल है, तो निश्चित रूप से वैक्सीन कूटनीति महत्वपूर्ण है.'

उन्होंने कहा कि क्या रूस-चीन वैक्सीन सहयोग गति प्राप्त कर रहा है? हाल ही में, उत्पादन को गति देने के लिए रूस को कई चीनी फर्मों को स्पुतनिक वी कोरोना वायरस वैक्सीन बनाते हुए देखा जा रहा है, क्योंकि इसके डोज की मांग बढ़ रही है. इसके अलावा रूस ने हाल के हफ्तों में चीनी वैक्सीन कंपनियों के साथ कुल 260 मिलियन खुराक के तीन सौदों की घोषणा की है.

इस बीच भारत की वैक्सीन कूटनीति ने देश में ऑक्सीजन, चिकित्सा सहायता, वैक्सीन आदि की कमी से महामारी की दूसरी लहर से जूझवे के साथ कमजोर हो गई और चीन ने अपनी विफल वैक्सीन नीति का लाभ उठाने के लिए कदम यह उठाया.

चीन टीकाकरण के मामले में वैश्विक समुदाय में अपनी पहचान बनाने के लिए मुकाबला कर रहा है और अब बांग्लादेश जैसे छोटे देशों का हाथ मिला रहा है, पिछले हफ्ते, चीन ने बांग्लादेश को आधा मिलियन सिनोफार्म वैक्सीन वितरित की, ताकि भारत द्वारा छोड़ी गई खाई को भरा जा सके क्योंकि बंग्लादेश वैक्सीन की गंभीर कमी से जूझ रहा है.

पढ़ें - इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष : यूएस सचिव की कतर, सऊदी अरब, मिस्र और फ्रांस के साथ चर्चा

प्रोफेसर हर्ष वी पंत ने आगे कहा कि निश्चित रूप से रूस चीन की ओर रुख कर रहा है और उनके संबंध आगे बढ़ रहे हैं. पश्चिमी शत्रुता को प्रबंधित करने के अपने प्रयास में रूस चीन को एक बहुत महत्वपूर्ण भागीदार के रूप में देखता है, लेकिन रूस भी चीन से अपनी स्वतंत्रता बनाए रखना चाहता है, इसलिए, भारत के साथ रूस का संबंध महत्वपूर्ण है. यह देखते हुए कि चीन का टीका वैश्विक बाजार में बहुत सफल नहीं रहा है और चीन के प्रवेश से बड़ी दक्षता नहीं है. ऐसे में बड़े पैमाने पर रूस द्वारा अपनी वैक्सीन को आगे बढ़ाने के लिए चीन के विनिर्माण भार का उपयोग करने की संभावना है.

इसका मतलब है कि रूस और चीन संभावित रूप से सहयोग कर सकते हैं, जहां अधिक से अधिक चीनी इकाइयां रूसी वैक्सीन का उत्पादन कर रही हैं, जो प्रभावी है और दोनों दुनिया भर में अपने राजनयिकों के साथ सहयोग कर रहे हैं.

विशेष रूप से,बाइडेन के नेतृत्व में अमेरिकी प्रशासन अमेरिका को वैक्सीन कूटनीति की दौड़ में शामिल कर रहा है, क्योंकि विभिन्न देशों से आपूर्ति में वृद्धि हो रही है.

इस महीने की शुरुआत में, व्हाइट हाउस ने घोषणा की कि संयुक्त राज्य अमेरिका जून 2021 से एस्ट्राजेनेका वैक्सीन की 60 मिलियन खुराक अन्य देशों को भेजेगा.

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