कोलकाता: पश्चिम बंगाल में कई तृणमूल कांग्रेस (Trinamool Congress) नेताओं ने भारतीय जनता पार्टी(Bhartiya Janta Party) का दामन थामा है. इनमें से कुछ के भाग्य ने साथ दिया और वे लोग सांसद और विधायक बन गए. वहीं, कुछ को निराशा हाथ लगी. इससे इतर भारतीय जनता पार्टी (Bhartiya Janta Party) और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) को ऐसा लगता है कि अभी भी इन नेताओं की आत्मा टीएमसी के साथ है. इन तृणमूल नेताओं को पूरी तरह से भगवा विचारधारा के साथ जोड़ने के लिए बीजेपी और आरएसएस विशेष कार्यशालाएं आयोजित करने की कवायद में जुट गई हैं.
आरएसएस ने पहले ही ऐसे सांसदों, विधायकों और संगठन के नेताओं की सूची तैयार कर ली है, जिन्हें इन विशेष कार्यशालाओं में शामिल करना है. इस लिस्ट को आरएसएस के क्षेत्रीय प्रचारकों को भेज दिया गया है, जो मुख्य रूप से तृणमूल कांग्रेस से आने वाले इन नेताओं के लिए विभिन्न कार्यशाला सत्र आयोजित करेंगे.
अब सवाल यह है कि इन कार्यशाला सत्रों का पाठ्यक्रम क्या होगा. परंपरागत रूप से, आरएसएस साल भर में केवल छह त्योहार मनाता है. भाजपा में नवागंतुकों को इन त्योहारों के महत्व और कार्यशालाओं में इनका पालन करने के लिए अनुष्ठानों का पाठ पढ़ाया जाएगा. साथ ही उन्हें हर सुबह आरएसएस की किसी भी शाखा में जाने, कुछ शारीरिक व्यायाम करने और आरएसएस के मंत्रों का जाप करने की भी सलाह दी जाएगी.
हाल ही में आरएसएस नेतृत्व ने संगठन के ट्विटर हैंडल के माध्यम से छत्रपति शिवाजी के राज्याभिषेक दिवस को मनाने के लिए एक संदेश भेजा था. पश्चिम बंगाल में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष खुद आरएसएस के प्रचारक हैं. तो उन्होंने इसी मुद्दे पर एक ट्विटर संदेश भी भेजा, लेकिन तृणमूल से बीजेपी में आए सुवेंदु अधिकारी, अर्जुन सिंह, सौमित्र खान या निशीथ अधिकारी जैसे नेताओं ने भी यही प्रथा नहीं अपनाई है इसलिए आरएसएस ने कार्यशालाओं का संचालन करने का फैसला किया है ताकि भविष्य में ऐसे नेता इन प्रथाओं का पालन करें.
आरएसएस नेतृत्व और भाजपा नेताओं का एक वर्ग भी महसूस करता है कि तृणमूल से आने वाले नेताओं का एक बड़ा वर्ग अभी तक संघ की मूल विचारधारा के अनुकूल नहीं है. पता चला है कि ऐसे नेता जो तृणमूल से भाजपा में शामिल हुए हैं, वे ऐसी प्रथाओं का पालन करने से हिचकते हैं जिनका पालन भाजपा के पुराने लोग करते हैं. आरएसएस के अनुयायियों को कुछ रीति-रिवाजों का पालन करना पड़ता है और चूंकि तृणमूल से आने वाले लोगों को इस तरह के अनुष्ठानों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होती है, इसलिए अक्सर अंतर बना रहता है.
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आरएसएस नेता और आरएसएस के मुखपत्र स्वास्तिका के पूर्व संपादक रंतीदेब सेनगुप्ता ने कहा कि वैचारिक रूप से आरएसएस और तृणमूल कांग्रेस दो विपरीत ध्रुवों में हैं. तो जो नेता तृणमूल से भाजपा में शामिल हुए हैं, वे खुद को पारंपरिक आरएसएस संस्कृति से जोड़ने के लिए समय ले रहे हैं, लेकिन धीरे-धीरे उन्हें उन्हें आरएसएस की संस्कृति से परिचित कराना होगा और प्रेरित होना होगा. हम हिंदू राष्ट्रवाद का हिस्सा हैं और सेनगुप्ता ने कहा कि नवागंतुकों को अपनी आत्मा से उस विचारधारा को अपनाना होगा.