मुंबई : दक्षिण मुंबई का ऐसा एक भवन जिसने इतिहास में अपनी एक विशेष पहचान बनाई है. यह वह जगह है जहां देश की आजादी की लड़ाई को लेकर कई अहम फैसले लिए जाते थे. हम बात कर रहे हैं 'खिलाफत हाउस' की जहां मौलाना मोहम्मद अली जौहर और शौकत अली जौहर के साथ मिलकर महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोला था.
अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन की शुरुआत किसी बड़े युद्ध से कम नहीं था. इसी आंदोलन से आगे चलकर देश का भविष्य तय हुआ. आजादी की लड़ाई से जुड़े सभी आपसी विचार-विमर्श और योजनाएं इसी भवन में तैयार हुए और यहां कई बड़े नेताओं ने भी देश की आजादी के लिए बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया.
आजादी की लड़ाई के दो अहम कार्यों की नींव रखी, जिसने देश के हिंदूओं और मुसलमानों को एक होकर सोचने को मजबूर कर दिया. मुसलमानों ने महसूस किया कि प्रथम विश्व युद्ध में तुर्की की हार के बाद, अंग्रेज उनके सभी धार्मिक स्थलों पर कब्जा कर सकते हैं, जो मुसलमानों के लिए भी एक बड़ा खतरा बन सकता है. वहीं, हिंदुओं ने अमृतसर में जलियांवाला बाग नरसंहार को याद किया, जिसमें अंग्रेजों ने कई लोगों को मौत के घाट उतारा था. इससे पूरे देश में लोगों के बीच एकता और सद्भाव कायम हुआ और दोनों समुदाय देश को अंग्रेजों से मुक्त करने के लिए एकजुट हुए.
इस आजादी की लड़ाई में देश के कोने-कोने से लोगों ने हिस्सा लिया, जिसमें कइयों को जेल भी हुई. वहीं, कई लोगों ने अंग्रेज सरकार द्वारा मिले सम्मान और नौकरी तक को त्याग दिया.
जहां से अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई की नींव रखी गई थी, उस जगह को आज खिलाफत हाउस के रूप में जाना जाता है. केवल यही नहीं, महात्मा गांधी, पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल जैसी बड़ी हस्तियों का केंद्र बन गया था. देश की आजादी की लड़ाई का इतिहास तब तक अधूरा है, जब तक उसमें खिलाफत आंदोलन और खिलाफत हाउस का उल्लेख न हों.
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