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खुलासा: नशीले पदार्थों की तस्करी के रूट में बदलाव, भारत और बांग्लादेश के लिए नई चुनौती

पूर्वोत्तर भारत और पड़ोसी देश बांग्लादेश में सक्रिय तस्करों ने नशीले पदार्थ याबा टैबलेट की तस्करी के लिए अब नया रूट बना लिया है. सुरक्षा और खुफिया संगठनों की एक रिपोर्ट की मानें तो इसकी तस्करी में इस्लामिक छात्र संगठन शामिल हैं.

International News, Drug Smuggling
नशीले पदार्थों की तस्करी
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Published : Jul 1, 2021, 9:47 PM IST

अगरतला. पूर्वोत्तर भारत और पड़ोसी देश बांग्लादेश के लिए एक नई चुनौती सामने आ गई है, क्योंकि तस्करों ने नशीले पदार्थ याबा टैबलेट की तस्करी के लिए अपने रास्ते बदल लिए हैं. परेशानी की वजह ये है कि इस्लामिक छात्र संगठनों (Islamic Student Organizations) की भी इसमें संलिप्तता पाई गई है. सुरक्षा और खुफिया संगठनों की एक रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है.

दरअसल, बांग्लादेश के सुरक्षा बलों के म्यांमार से मादक पदार्थों की तस्करी के पारंपरिक मार्ग पर अभियान चलाए जाने के कारण याबा टैबलेट (पागलपन की दवा) म्यांमा से त्रिपुरा, मिजोरम और असोम होते हुए बांग्लादेश पहुंचाए जा रहे हैं. बांग्लादेश में दबाव का सामना कर रहे इस्लामिक छात्र संगठन तस्करी से जुड़े हैं और सुरक्षा बलों को आशंका है कि तस्करी से अर्जित धन को वे आतंकी गतिविधियों में लगा सकते हैं.

सुरक्षा एजेंसियों (Security Agencies) की रिपोर्ट के मुताबिक बांग्लादेश-म्यांमार सीमा पर कार्रवाई के कारण मादक पदार्थ के गिरोह अब भारत-बांग्लादेश सीमा का इस्तेमाल कर रहे हैं. म्यांमार से तस्करी कर लाए ला जा रहे मादक पदाथों की खेप अब मणिपुर और वहां से सिल्चर और त्रिपुरा होते हुए बांग्लादेश पहुंच रही है. याबा टैबलेट (पागलपन की दवा) और अन्य मादक पदार्थों की तस्करी के लिए म्यांमार-मिजोरम-धर्मनगर-सोनापुरा-बांग्लादेश मार्ग का भी इस्तेमाल हो रहा है. पार्टी के दौरान नशा करने के लिए इस टैबलेट का दुरुपयोग होता है.

पढ़ें: ओडिशा से दिल्ली लाकर गांजा तस्करी करने वाले 3 गिरफ्तार

इस्लामिक छात्र संगठन की भूमिका

खुफिया सूचनाओं के अनुसार, संकेत मिले हैं कि कैलाशहर में तस्करी और राज्य में याबा टैबलेट पहुंचाने में इस्लामिक छात्र संगठन की संलिप्तता थी. खुफिया रिपोर्ट के अनुसार, कैलाशहर में खुबजार मस्जिद के आसपास इनकी गतिविधियां पाई गई. कैलाशहर, उनाकोटी का जिला मुख्यालय है और बांग्लादेश की सीमा से लगा हुआ है. रिपोर्ट में कहा गया है कि सुरक्षा एजेंसियां देश विरोधी गतिविधियों की फंडिग के साथ इनके जुड़ाव की जांच कर रही हैं. एजेंसियों ने फरवरी के महीने में असम-त्रिपुरा सीमा के पास एक इस्लामिक धार्मिक उत्सव के दौरान याबा टैबलेट के बड़े तस्कर दिवंगत सैफुल करीम के एक प्रमुख सहयोगी की उपस्थिति की भी बात कही है.

बीएसएफ की तैयारी तेज

सूत्रों ने बताया, कि याबा टैबलेट के लिए लक्षित बाजार अब भी बांग्लादेश बना हुआ है, वहीं याबा और ब्राउन शुगर जैसी अन्य नशीली दवाओं की पूर्वोत्तर भारत में खुदरा बिक्री के अलावा, इन्हें देश के बाकी इलाके में भी भेजा जा रहा हैं. हालांकि रिपोर्ट में कहा गया है कि मार्ग में बदलाव और कोविड-19 महामारी से उत्पन्न चुनौतियों के बावजूद, सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) त्रिपुरा फ्रंटियर खतरे से निपटने के लिए कदम उठा रहा है और वह 2021 में 25 जून तक भारी मात्रा में गांजा, याबा टैबलेट और अन्य प्रतिबंधित वस्तुओं को जब्त करने में कामयाब रहा. बीएसएफ त्रिपुरा फ्रंटियर ने इस वर्ष 25 जून तक 5,907.85 किलोग्राम गांजा, 34,674 याबा टैबलेट, फेंसडिल की 23,105 बोतलें, शराब की 2,883 बोतलें और भारी मात्रा में नशीली दवाएं जब्त की और गांजा के 8,65,839 पौधे नष्ट किए.

(पीटीआई, भाषा)

अगरतला. पूर्वोत्तर भारत और पड़ोसी देश बांग्लादेश के लिए एक नई चुनौती सामने आ गई है, क्योंकि तस्करों ने नशीले पदार्थ याबा टैबलेट की तस्करी के लिए अपने रास्ते बदल लिए हैं. परेशानी की वजह ये है कि इस्लामिक छात्र संगठनों (Islamic Student Organizations) की भी इसमें संलिप्तता पाई गई है. सुरक्षा और खुफिया संगठनों की एक रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है.

दरअसल, बांग्लादेश के सुरक्षा बलों के म्यांमार से मादक पदार्थों की तस्करी के पारंपरिक मार्ग पर अभियान चलाए जाने के कारण याबा टैबलेट (पागलपन की दवा) म्यांमा से त्रिपुरा, मिजोरम और असोम होते हुए बांग्लादेश पहुंचाए जा रहे हैं. बांग्लादेश में दबाव का सामना कर रहे इस्लामिक छात्र संगठन तस्करी से जुड़े हैं और सुरक्षा बलों को आशंका है कि तस्करी से अर्जित धन को वे आतंकी गतिविधियों में लगा सकते हैं.

सुरक्षा एजेंसियों (Security Agencies) की रिपोर्ट के मुताबिक बांग्लादेश-म्यांमार सीमा पर कार्रवाई के कारण मादक पदार्थ के गिरोह अब भारत-बांग्लादेश सीमा का इस्तेमाल कर रहे हैं. म्यांमार से तस्करी कर लाए ला जा रहे मादक पदाथों की खेप अब मणिपुर और वहां से सिल्चर और त्रिपुरा होते हुए बांग्लादेश पहुंच रही है. याबा टैबलेट (पागलपन की दवा) और अन्य मादक पदार्थों की तस्करी के लिए म्यांमार-मिजोरम-धर्मनगर-सोनापुरा-बांग्लादेश मार्ग का भी इस्तेमाल हो रहा है. पार्टी के दौरान नशा करने के लिए इस टैबलेट का दुरुपयोग होता है.

पढ़ें: ओडिशा से दिल्ली लाकर गांजा तस्करी करने वाले 3 गिरफ्तार

इस्लामिक छात्र संगठन की भूमिका

खुफिया सूचनाओं के अनुसार, संकेत मिले हैं कि कैलाशहर में तस्करी और राज्य में याबा टैबलेट पहुंचाने में इस्लामिक छात्र संगठन की संलिप्तता थी. खुफिया रिपोर्ट के अनुसार, कैलाशहर में खुबजार मस्जिद के आसपास इनकी गतिविधियां पाई गई. कैलाशहर, उनाकोटी का जिला मुख्यालय है और बांग्लादेश की सीमा से लगा हुआ है. रिपोर्ट में कहा गया है कि सुरक्षा एजेंसियां देश विरोधी गतिविधियों की फंडिग के साथ इनके जुड़ाव की जांच कर रही हैं. एजेंसियों ने फरवरी के महीने में असम-त्रिपुरा सीमा के पास एक इस्लामिक धार्मिक उत्सव के दौरान याबा टैबलेट के बड़े तस्कर दिवंगत सैफुल करीम के एक प्रमुख सहयोगी की उपस्थिति की भी बात कही है.

बीएसएफ की तैयारी तेज

सूत्रों ने बताया, कि याबा टैबलेट के लिए लक्षित बाजार अब भी बांग्लादेश बना हुआ है, वहीं याबा और ब्राउन शुगर जैसी अन्य नशीली दवाओं की पूर्वोत्तर भारत में खुदरा बिक्री के अलावा, इन्हें देश के बाकी इलाके में भी भेजा जा रहा हैं. हालांकि रिपोर्ट में कहा गया है कि मार्ग में बदलाव और कोविड-19 महामारी से उत्पन्न चुनौतियों के बावजूद, सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) त्रिपुरा फ्रंटियर खतरे से निपटने के लिए कदम उठा रहा है और वह 2021 में 25 जून तक भारी मात्रा में गांजा, याबा टैबलेट और अन्य प्रतिबंधित वस्तुओं को जब्त करने में कामयाब रहा. बीएसएफ त्रिपुरा फ्रंटियर ने इस वर्ष 25 जून तक 5,907.85 किलोग्राम गांजा, 34,674 याबा टैबलेट, फेंसडिल की 23,105 बोतलें, शराब की 2,883 बोतलें और भारी मात्रा में नशीली दवाएं जब्त की और गांजा के 8,65,839 पौधे नष्ट किए.

(पीटीआई, भाषा)

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