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सेवानिवृत्त कश्मीरी अधिकारियों को सरकारी आवास में रहने का हक नहीं : हाईकोर्ट

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Published : Mar 23, 2022, 5:14 PM IST

Updated : Mar 23, 2022, 8:31 PM IST

तीन सेवानिवृत कश्मीरी अधिकारियों (Three Retired Kashmiri Officers) ने याचिका दायर की थी, उनमें सुशील कुमार धर, सुरेंद्र कुमार रैना और प्रिदमान कृषण कौल शामिल हैं. तीनों ने केंद्र सरकार के आवास (House Given By Central Government) खाली करने के आदेश को चुनौती दी थी. याचिका में कहा गया था कि याचिकाकर्ता कश्मीरी विस्थापित (Kashmiri Migrants) हैं.

Three Retired Kashmiri Officers
सेवानिवृत्त कश्मीरी अधिकारियों को सरकारी आवास में रहने का हक नहीं

नई दिल्ली : दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) की डिवीजन बेंच ने सेवानिवृत्त कश्मीरी अधिकारियों (Three Retired Kashmiri Officers) को सरकारी आवास खाली करने के सिंगल बेंच के आदेश के खिलाफ दायर याचिका खारिज कर दी है. कार्यकारी चीफ जस्टिस विपिन सांघी की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि जो कश्मीरी विस्थापित सेवानिवृत्त हो चुके हैं, उन्हें सरकारी आवास (House Given By Central Government) में रहने का हक नहीं है. कोर्ट ने कहा कि सरकार कश्मीरी सेवानिवृत्त अधिकारियों के साथ कोई भेदभाव नहीं कर रहा है. अगर हम उन्हें सरकारी आवास में रहने की छूट देंगे तो उनका क्या होगा जो सरकारी आवास के इंतजार में खड़े हैं.

पढ़ें: कश्मीरी पंडितों के पलायन पर बोले फारूक अब्दुल्ला- मैं नहीं, दिल्ली की तत्कालीन हुकूमत जिम्मेदार

सरकार के पास असीमित आवास नहीं है. दरअसल 16 फरवरी को जस्टिस वी कामेश्वर राव की सिंगल बेंच ने तीन सेवानिवृत कश्मीरी अधिकारियों को 31 मार्च तक सरकारी आवास खाली करने का आदेश दिया था. सिंगल बेंच ने इन पूर्व अधिकारियों की इस दलील को खारिज कर दिया कि वे कश्मीर से विस्थापित किए जा चुके हैं. सिंगल बेंच के इस फैसले के खिलाफ याचिकाकर्ता सुशील कुमार धर ने डिवीजन बेंच में चुनौती दी थी. सिंगल बेंच के समक्ष जिन तीन सेवानिवृत कश्मीरी अधिकारियों ने याचिका दायर की थी, उनमें सुशील कुमार धर, सुरेंद्र कुमार रैना और प्रिदमान कृषण कौल शामिल हैं. तीनों ने केंद्र सरकार के आवास खाली करने के आदेश को चुनौती दी थी. याचिका में कहा गया था कि याचिकाकर्ता कश्मीरी विस्थापित हैं.

पढ़ें: 'द कश्मीर फाइल्स' देख फूट-फूटकर रोई महिला, डायरेक्टर के पैर छूकर किया धन्यवाद

याचिका में मांग की गई थी कि सुप्रीम कोर्ट के केंद्र बनाम ओंकार नाथ धर के फैसले के मुताबिक, उन्हें तीन साल तक और सरकारी आवास में रहने की अनुमति दी जाए. सिंगल बेंच ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला जिस स्कीम के लिए था, उस स्कीम के तहत याचिकाकर्ता नहीं आते हैं. कोर्ट ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला 1989 में श्रीनगर से दिल्ली में ट्रांसफर हुए केंद्रीय कर्मचारियों के लिए था और उन्हें सुरक्षा के आधार पर रिटायर होने के बाद भी आवास उपलब्ध कराया गया था. ऐसे में याचिकाकर्ता रिटायर होने के बाद भी सरकारी आवास के हकदार नहीं हो सकते.

नई दिल्ली : दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) की डिवीजन बेंच ने सेवानिवृत्त कश्मीरी अधिकारियों (Three Retired Kashmiri Officers) को सरकारी आवास खाली करने के सिंगल बेंच के आदेश के खिलाफ दायर याचिका खारिज कर दी है. कार्यकारी चीफ जस्टिस विपिन सांघी की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि जो कश्मीरी विस्थापित सेवानिवृत्त हो चुके हैं, उन्हें सरकारी आवास (House Given By Central Government) में रहने का हक नहीं है. कोर्ट ने कहा कि सरकार कश्मीरी सेवानिवृत्त अधिकारियों के साथ कोई भेदभाव नहीं कर रहा है. अगर हम उन्हें सरकारी आवास में रहने की छूट देंगे तो उनका क्या होगा जो सरकारी आवास के इंतजार में खड़े हैं.

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सरकार के पास असीमित आवास नहीं है. दरअसल 16 फरवरी को जस्टिस वी कामेश्वर राव की सिंगल बेंच ने तीन सेवानिवृत कश्मीरी अधिकारियों को 31 मार्च तक सरकारी आवास खाली करने का आदेश दिया था. सिंगल बेंच ने इन पूर्व अधिकारियों की इस दलील को खारिज कर दिया कि वे कश्मीर से विस्थापित किए जा चुके हैं. सिंगल बेंच के इस फैसले के खिलाफ याचिकाकर्ता सुशील कुमार धर ने डिवीजन बेंच में चुनौती दी थी. सिंगल बेंच के समक्ष जिन तीन सेवानिवृत कश्मीरी अधिकारियों ने याचिका दायर की थी, उनमें सुशील कुमार धर, सुरेंद्र कुमार रैना और प्रिदमान कृषण कौल शामिल हैं. तीनों ने केंद्र सरकार के आवास खाली करने के आदेश को चुनौती दी थी. याचिका में कहा गया था कि याचिकाकर्ता कश्मीरी विस्थापित हैं.

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याचिका में मांग की गई थी कि सुप्रीम कोर्ट के केंद्र बनाम ओंकार नाथ धर के फैसले के मुताबिक, उन्हें तीन साल तक और सरकारी आवास में रहने की अनुमति दी जाए. सिंगल बेंच ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला जिस स्कीम के लिए था, उस स्कीम के तहत याचिकाकर्ता नहीं आते हैं. कोर्ट ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला 1989 में श्रीनगर से दिल्ली में ट्रांसफर हुए केंद्रीय कर्मचारियों के लिए था और उन्हें सुरक्षा के आधार पर रिटायर होने के बाद भी आवास उपलब्ध कराया गया था. ऐसे में याचिकाकर्ता रिटायर होने के बाद भी सरकारी आवास के हकदार नहीं हो सकते.

Last Updated : Mar 23, 2022, 8:31 PM IST
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