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पंजाब विस ने चंडीगढ़ को तत्काल राज्य को हस्तांतरित करने की मांग वाला प्रस्ताव पारित किया - Resolution in Punjab Assembly seeking immediate transfer of Chandigarh to state

पंजाब विधानसभा ने चंडीगढ़ को तत्काल राज्य को हस्तांतरित करने की मांग करने वाला प्रस्ताव शुक्रवार को पारित कर दिया.मुख्यमंत्री मान ने भारतीय जनता पार्टी के दो विधायकों की अनुपस्थिति में यह प्रस्ताव पेश किया.

पंजाब विधानसभा
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Published : Apr 1, 2022, 11:45 AM IST

Updated : Apr 1, 2022, 10:14 PM IST

चंडीगढ़ : पंजाब विधानसभा ने चंडीगढ़ को तत्काल राज्य को हस्तांतरित करने की मांग करने वाला प्रस्ताव शुक्रवार को पारित कर दिया. मुख्यमंत्री भगवंत मान ने केंद्र सरकार पर केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासन के साथ ही साझा संपत्तियों में संतुलन बिगाड़ने की कोशिश करने का भी आरोप लगाया. मुख्यमंत्री मान ने भारतीय जनता पार्टी के दो विधायकों की अनुपस्थिति में यह प्रस्ताव पेश किया. इन विधायकों ने सदन से बहिर्गमन कर दिया था.

भाजपा के अलावा आम आदमी पार्टी, कांग्रेस, शिरोमणि अकाली दल के सदस्य और बहुजन समाज पार्टी के इकलौते विधायक इस प्रस्ताव के समर्थन में आए और केंद्र के कदम को 'तानाशाही और निरंकुश' बताया. विधानसभा का यह एक दिवसीय विशेष सत्र केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की उस घोषणा के परिप्रेक्ष्य में आहूत किया गया जिसमें कहा गया है कि केंद्रीय सेवा नियम केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ के कर्मचारियों पर भी लागू होंगे.

नियमों के तहत चंडीगढ़ में कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की उम्र 58 साल से बढ़ा कर 60 साल कर दी गई है और महिला कर्मचारियों को बच्चे की देखभाल के लिए एक साल के बजाय दो साल की छुट्टी मिलेगी. केंद्र ने नियमों को अधिसूचित कर दिया है. चंडीगढ़, पंजाब और हरियाणा की संयुक्त राजधानी है. मान ने कहा कि आने वाले दिनों में वे इस मुद्दे पर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और गृह मंत्री से मुलाकात का वक्त मांगेंगे और सदन को आश्वस्त किया कि उनके समक्ष पंजाब का पक्ष मजबूती से रखा जाएगा.

उन्होंने सभी दलों से पंजाब के हितों की रक्षा के लिए एक साथ आने का भी अनुरोध किया. उन्होंने कहा, 'मैं पंजाब के लोगों को गारंटी देता हूं कि हम मजबूती से लड़ेंगे और राज्य के अधिकारों की रक्षा करेंगे, चाहे विधानसभा में हो या संसद या किसी अन्य मंच पर.' विधानसभा अध्यक्ष ने सदन में बार-बार मुख्यमंत्री के बयान में व्यवधान डालने के लिए निर्दलीय विधायक राणा इंदर प्रताप सिंह का नाम लिया.

सदन में प्रस्ताव पेश करते हुए मान ने केंद्र से संविधान में प्रदत्त संघवाद के सिद्धांतों का सम्मान करने और ऐसा कोई कदम न उठाने के लिए कहा, जिससे चंडीगढ़ का प्रशासन और साथ ही अन्य साझा संपत्तियों का संतुलन बिगड़ता हो. प्रस्ताव में कहा गया है, 'पंजाब पुनर्गठन कानून, 1966 के जरिये पंजाब का पुनर्गठन किया गया, जिसमें पंजाब राज्य का, हरियाणा राज्य, केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ में पुनर्गठन किया गया और पंजाब के कुछ हिस्से तत्कालीन केंद्र शासित प्रदेश हिमाचल प्रदेश को दे दिए गए.'

इसमें कहा गया है, 'तब से पंजाब और हरियाणा राज्य के उम्मीदवारों को कुछ अनुपात में प्रबंधन पदों को देकर साझा संपत्तियों जैसे कि भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) के प्रशासन, में संतुलन रखा गया। हाल के अपने कई कदमों से केंद्र सरकार इस संतुलन को बिगाड़ने की कोशिश कर रही है.' प्रस्ताव के अनुसार, केंद्र सरकार ने बीबीएमबी के सदस्यों के पद का विज्ञापन सभी राज्यों और केंद्र सरकार के अधिकारियों के लिए खोला, जबकि इन पदों पर पारंपरिक रूप से पंजाब और हरियाणा के अधिकारियों की भर्ती होती है. इसी तरह चंडीगढ़ का प्रशासन हमेशा पंजाब और हरियाणा के अधिकारियों ने 60:40 के अनुपात में किया है.

यह भी पढ़ें-पंजाब में विधायकों की पेंशन पॉलिसी में बदलाव, वन एमएलए-वन पेंशन का फार्मूला लागू

इसमें कहा गया है, 'बहरहाल, हाल में केंद्र सरकार ने बाहर के अधिकारियों को चंडीगढ़ में तैनात किया और चंडीगढ़ प्रशासन के कर्मचारियों के लिए केंद्रीय सिविल सेवा नियम लागू किए जो पूर्व में बनी सहमति के बिल्कुल खिलाफ है. चंडीगढ़ शहर को पंजाब की राजधानी के तौर पर बनाया गया. पूर्व में जब भी किसी राज्य को विभाजित किया गया तो राजधानी मूल राज्य के पास रही है. इसलिए पंजाब चंडीगढ़ को पूरी तरह पंजाब को हस्तांतरित करने के लिए अपना दावा पेश कर रहा है.'

मान ने कहा कि पहले भी इस सदन में चंडीगढ़ को पंजाब को हस्तांतरित करने का केंद्र सरकार से अनुरोध करते हुए कई प्रस्ताव पारित हुए हैं. सदन में मुख्यमंत्री मान द्वारा लाये गये प्रस्ताव के अनुसार, 'सौहार्द बनाए रखने और लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए यह सदन एक बार फिर चंडीगढ़ को तत्काल पंजाब को हस्तांतरित करने के मामले को केंद्र सरकार के समक्ष उठाने की सिफारिश करता है.'

इसमें कहा गया है, 'यह सदन केंद्र सरकार से भी हमारे संविधान में प्रदत्त संघवाद के सिद्धांतों का सम्मान करने और ऐसा कोई कदम न उठाने का अनुरोध करता है जिससे चंडीगढ़ का प्रशासन और बीबीएमबी जैसी उसकी साझा संपत्तियों का संतुलन बिगड़ता हो.' प्रस्ताव पेश होने के बाद चर्चा में भाग लेते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रताप सिंह बाजवा ने कहा कि यह अत्यधिक महत्वपूर्ण मामला है और उन्होंने मान से पंजाब के महाधिवक्ता से विचार-विमर्श करने तथा राज्य के पास उपलब्ध सभी कानूनी विकल्पों को तलाशने का अनुरोध किया.

उन्होंने राज्य सरकार से इस मुद्दे को प्रधानमंत्री तथा केंद्रीय गृह मंत्री के समक्ष उठाने का भी अनुरोध किया. बाजवा ने वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा के पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारों पर राज्य के हितों को नजरअंदाज करने के आरोप पर कड़ी आपत्ति जतायी. कांग्रेस विधायक तृप्त राजिंदर सिंह बाजवा ने भगवंत मान की अगुवाई वाली सरकार से इस लड़ाई को आगे ले जाने का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि पूरा सदन सत्तारूढ़ दल के साथ है. उन्होंने डर जताया कि अब केंद्र राज्य के पानी को छीनने की कोशिश करेगा.

उन्होंने कहा, 'पंजाब के लोगों ने आपको (आप) भारी जनादेश दिया है. आपको यह लड़ाई आगे ले जानी होगी. पंजाब के हितों की रक्षा के लिए जो भी जरूरी होगा, उसके लिए हम आपके साथ हैं.' आम आदमी पार्टी के विधायक अमन अरोड़ा ने कृषि कानून लागू करने और बीएसएफ मुद्दे (सीमा सुरक्षा बल का अधिकार क्षेत्र बढ़ाने) के केंद्र के पूर्व के फैसलों का जिक्र करते हुए उस पर पंजाब के साथ सौतेला व्यवहार करने का आरोप लगाया. अरोड़ा ने राज्य में अपने 24 साल के शासन के दौरान इस प्रस्ताव को न लाने के लिए कांग्रेस पर भी निशाना साधा. शिअद विधायक मनप्रीत सिंह अयाली ने कहा कि वह इस मुद्दे पर सरकार का समर्थन करते हैं.

कांग्रेस विधायक सुखपाल सिंह खैड़ा ने केंद्र के हाल के कदम को 'पूरी तरह गलत, एकतरफा, निरंकुश, अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक' बताया. प्रस्ताव का विरोध करते हुए भाजपा विधायक अश्विनी शर्मा ने कहा कि पंजाब पुनर्गठन कानून के नियमों का कोई उल्लंघन नहीं हुआ. वह बोलने की अनुमति न मिलने के बाद भाजपा के अन्य विधायक जांगी लाल महाजन के साथ सदन से बाहर चले गए. आप विधायक जीवन ज्योत कौर ने केंद्र के कदम को 'निरंकुश फैसला' बताया.

चंडीगढ़ : पंजाब विधानसभा ने चंडीगढ़ को तत्काल राज्य को हस्तांतरित करने की मांग करने वाला प्रस्ताव शुक्रवार को पारित कर दिया. मुख्यमंत्री भगवंत मान ने केंद्र सरकार पर केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासन के साथ ही साझा संपत्तियों में संतुलन बिगाड़ने की कोशिश करने का भी आरोप लगाया. मुख्यमंत्री मान ने भारतीय जनता पार्टी के दो विधायकों की अनुपस्थिति में यह प्रस्ताव पेश किया. इन विधायकों ने सदन से बहिर्गमन कर दिया था.

भाजपा के अलावा आम आदमी पार्टी, कांग्रेस, शिरोमणि अकाली दल के सदस्य और बहुजन समाज पार्टी के इकलौते विधायक इस प्रस्ताव के समर्थन में आए और केंद्र के कदम को 'तानाशाही और निरंकुश' बताया. विधानसभा का यह एक दिवसीय विशेष सत्र केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की उस घोषणा के परिप्रेक्ष्य में आहूत किया गया जिसमें कहा गया है कि केंद्रीय सेवा नियम केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ के कर्मचारियों पर भी लागू होंगे.

नियमों के तहत चंडीगढ़ में कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की उम्र 58 साल से बढ़ा कर 60 साल कर दी गई है और महिला कर्मचारियों को बच्चे की देखभाल के लिए एक साल के बजाय दो साल की छुट्टी मिलेगी. केंद्र ने नियमों को अधिसूचित कर दिया है. चंडीगढ़, पंजाब और हरियाणा की संयुक्त राजधानी है. मान ने कहा कि आने वाले दिनों में वे इस मुद्दे पर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और गृह मंत्री से मुलाकात का वक्त मांगेंगे और सदन को आश्वस्त किया कि उनके समक्ष पंजाब का पक्ष मजबूती से रखा जाएगा.

उन्होंने सभी दलों से पंजाब के हितों की रक्षा के लिए एक साथ आने का भी अनुरोध किया. उन्होंने कहा, 'मैं पंजाब के लोगों को गारंटी देता हूं कि हम मजबूती से लड़ेंगे और राज्य के अधिकारों की रक्षा करेंगे, चाहे विधानसभा में हो या संसद या किसी अन्य मंच पर.' विधानसभा अध्यक्ष ने सदन में बार-बार मुख्यमंत्री के बयान में व्यवधान डालने के लिए निर्दलीय विधायक राणा इंदर प्रताप सिंह का नाम लिया.

सदन में प्रस्ताव पेश करते हुए मान ने केंद्र से संविधान में प्रदत्त संघवाद के सिद्धांतों का सम्मान करने और ऐसा कोई कदम न उठाने के लिए कहा, जिससे चंडीगढ़ का प्रशासन और साथ ही अन्य साझा संपत्तियों का संतुलन बिगड़ता हो. प्रस्ताव में कहा गया है, 'पंजाब पुनर्गठन कानून, 1966 के जरिये पंजाब का पुनर्गठन किया गया, जिसमें पंजाब राज्य का, हरियाणा राज्य, केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ में पुनर्गठन किया गया और पंजाब के कुछ हिस्से तत्कालीन केंद्र शासित प्रदेश हिमाचल प्रदेश को दे दिए गए.'

इसमें कहा गया है, 'तब से पंजाब और हरियाणा राज्य के उम्मीदवारों को कुछ अनुपात में प्रबंधन पदों को देकर साझा संपत्तियों जैसे कि भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) के प्रशासन, में संतुलन रखा गया। हाल के अपने कई कदमों से केंद्र सरकार इस संतुलन को बिगाड़ने की कोशिश कर रही है.' प्रस्ताव के अनुसार, केंद्र सरकार ने बीबीएमबी के सदस्यों के पद का विज्ञापन सभी राज्यों और केंद्र सरकार के अधिकारियों के लिए खोला, जबकि इन पदों पर पारंपरिक रूप से पंजाब और हरियाणा के अधिकारियों की भर्ती होती है. इसी तरह चंडीगढ़ का प्रशासन हमेशा पंजाब और हरियाणा के अधिकारियों ने 60:40 के अनुपात में किया है.

यह भी पढ़ें-पंजाब में विधायकों की पेंशन पॉलिसी में बदलाव, वन एमएलए-वन पेंशन का फार्मूला लागू

इसमें कहा गया है, 'बहरहाल, हाल में केंद्र सरकार ने बाहर के अधिकारियों को चंडीगढ़ में तैनात किया और चंडीगढ़ प्रशासन के कर्मचारियों के लिए केंद्रीय सिविल सेवा नियम लागू किए जो पूर्व में बनी सहमति के बिल्कुल खिलाफ है. चंडीगढ़ शहर को पंजाब की राजधानी के तौर पर बनाया गया. पूर्व में जब भी किसी राज्य को विभाजित किया गया तो राजधानी मूल राज्य के पास रही है. इसलिए पंजाब चंडीगढ़ को पूरी तरह पंजाब को हस्तांतरित करने के लिए अपना दावा पेश कर रहा है.'

मान ने कहा कि पहले भी इस सदन में चंडीगढ़ को पंजाब को हस्तांतरित करने का केंद्र सरकार से अनुरोध करते हुए कई प्रस्ताव पारित हुए हैं. सदन में मुख्यमंत्री मान द्वारा लाये गये प्रस्ताव के अनुसार, 'सौहार्द बनाए रखने और लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए यह सदन एक बार फिर चंडीगढ़ को तत्काल पंजाब को हस्तांतरित करने के मामले को केंद्र सरकार के समक्ष उठाने की सिफारिश करता है.'

इसमें कहा गया है, 'यह सदन केंद्र सरकार से भी हमारे संविधान में प्रदत्त संघवाद के सिद्धांतों का सम्मान करने और ऐसा कोई कदम न उठाने का अनुरोध करता है जिससे चंडीगढ़ का प्रशासन और बीबीएमबी जैसी उसकी साझा संपत्तियों का संतुलन बिगड़ता हो.' प्रस्ताव पेश होने के बाद चर्चा में भाग लेते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रताप सिंह बाजवा ने कहा कि यह अत्यधिक महत्वपूर्ण मामला है और उन्होंने मान से पंजाब के महाधिवक्ता से विचार-विमर्श करने तथा राज्य के पास उपलब्ध सभी कानूनी विकल्पों को तलाशने का अनुरोध किया.

उन्होंने राज्य सरकार से इस मुद्दे को प्रधानमंत्री तथा केंद्रीय गृह मंत्री के समक्ष उठाने का भी अनुरोध किया. बाजवा ने वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा के पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारों पर राज्य के हितों को नजरअंदाज करने के आरोप पर कड़ी आपत्ति जतायी. कांग्रेस विधायक तृप्त राजिंदर सिंह बाजवा ने भगवंत मान की अगुवाई वाली सरकार से इस लड़ाई को आगे ले जाने का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि पूरा सदन सत्तारूढ़ दल के साथ है. उन्होंने डर जताया कि अब केंद्र राज्य के पानी को छीनने की कोशिश करेगा.

उन्होंने कहा, 'पंजाब के लोगों ने आपको (आप) भारी जनादेश दिया है. आपको यह लड़ाई आगे ले जानी होगी. पंजाब के हितों की रक्षा के लिए जो भी जरूरी होगा, उसके लिए हम आपके साथ हैं.' आम आदमी पार्टी के विधायक अमन अरोड़ा ने कृषि कानून लागू करने और बीएसएफ मुद्दे (सीमा सुरक्षा बल का अधिकार क्षेत्र बढ़ाने) के केंद्र के पूर्व के फैसलों का जिक्र करते हुए उस पर पंजाब के साथ सौतेला व्यवहार करने का आरोप लगाया. अरोड़ा ने राज्य में अपने 24 साल के शासन के दौरान इस प्रस्ताव को न लाने के लिए कांग्रेस पर भी निशाना साधा. शिअद विधायक मनप्रीत सिंह अयाली ने कहा कि वह इस मुद्दे पर सरकार का समर्थन करते हैं.

कांग्रेस विधायक सुखपाल सिंह खैड़ा ने केंद्र के हाल के कदम को 'पूरी तरह गलत, एकतरफा, निरंकुश, अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक' बताया. प्रस्ताव का विरोध करते हुए भाजपा विधायक अश्विनी शर्मा ने कहा कि पंजाब पुनर्गठन कानून के नियमों का कोई उल्लंघन नहीं हुआ. वह बोलने की अनुमति न मिलने के बाद भाजपा के अन्य विधायक जांगी लाल महाजन के साथ सदन से बाहर चले गए. आप विधायक जीवन ज्योत कौर ने केंद्र के कदम को 'निरंकुश फैसला' बताया.

Last Updated : Apr 1, 2022, 10:14 PM IST
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