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प्राकृतिक आपदा आने से पहले ही पशु-पक्षियों को हो जाता है आभास

आपदा आने से पहले पशु-पक्षियों को आभास हो जाता है. इस बारे में गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने शोध किया है. जिसमें पता चला है कि अपनी इंद्रियों के कारण कुछ पशु-पक्षी ऐसा कर पाते हैं.

प्राकृतिक आपदा
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Published : Feb 19, 2021, 9:30 PM IST

हरिद्वार : प्राकृतिक आपदा आने से पहले पशु-पक्षियों को इसका आभास हो जाता है. वे उस स्थान को छोड़कर वहां से चले जाते हैं जहां आपदा आने वाली होती है. प्राकृतिक आपदा के कारणों पर शोध करने वाले हरिद्वार गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय ने इस पर एक शोध किया है कि कैसे पशु-पक्षियों को पहले ही प्राकृतिक आपदा का आभास हो जाता है.

गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के पशु वैज्ञानिक डॉक्टर दिनेश भट्ट कहते हैं कि पशु-पक्षियों के व्यवहार को भांपकर बड़ी प्राकृतिक आपदा से बचा जा सकता है. इसके लिए आपदा प्रभावित क्षेत्र में तैनात आर्मी, एनडीआरएफ को व्यवहार और पक्षी विज्ञान की जानकारी दी जानी चाहिए.

डॉक्टर दिनेश भट्ट

दिनेश भट्ट बताते है कि एक शोध में पता चला है कि जब धरती के अंदर हलचल होने से कंपन होता है तो आपदा आने का अंदेशा होता है. उससे पहले ही कुछ पशु-पक्षी उसे भांप लेते हैं, क्योंकि उनकी इंद्रियां काफी तेज होती हैं.

वे बताते हैं कि कुत्ते की सूंघने की शक्ति मनुष्य से कई गुना अधिक होती है. कुत्तों को उस जगह पर प्रयोग किया जाता है जहां विस्फोटक का अंदेशा होता है. आपदा के बाद रेस्क्यू कार्य में भी कुत्ते महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

डॉक्टर दिनेश भट्ट का कहना है जो प्रवासी पक्षी होते हैं वो अपना रास्ता खुद बनाते हैं. उनके अंदर आकाशीय मार्ग का पता लगाने का सिक्स्थ सेंस होता है. उसी प्रकार से बिलों में रहने वाले कुछ पशु-पक्षी बहुत पहले ही कंपन को महसूस कर लेते हैं. पशु-पक्षियों के व्यवहार से सीखकर हम बड़ी आपदाओं से बच सकते हैं.

पशु-पक्षी करते हैं असामान्य व्यवहार

हमारे अध्ययन बतलाते हैं कि भूकंप से पूर्व पशु-पक्षी असामान्य व्यवहार करते हैं. घरेलू पशु-पक्षी अपने स्थान से आजाद होने की कोशिश करते हैं. कुत्ते जोर-जोर से भौंकने लगते हैं. बिल्लियाँ रोने लगती हैं. कौए अपने घोंसले छोड़ कर हवा में उड़ने लगते हैं. सांप और चूहे अपने अपने बिलों से बाहर आ जाते हैं.

पढ़ें- विश्व धरोहर में शामिल हुआ बारां का रामगढ़ क्रेटर, 200वें क्रेटर के रूप में मिली मान्यता

डॉक्टर दिनेश भट्ट का कहना है कि अगर हम सतर्क रहें तो हिमालयी क्षेत्र में किसी भी तरह की आपदा से होने वाले नुकसान को हम कम कर सकते हैं. उन्होंने हिमालयी क्षेत्र में अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों की लापरवाही और सरकारों को इस हादसे का कारण बताया.

हरिद्वार : प्राकृतिक आपदा आने से पहले पशु-पक्षियों को इसका आभास हो जाता है. वे उस स्थान को छोड़कर वहां से चले जाते हैं जहां आपदा आने वाली होती है. प्राकृतिक आपदा के कारणों पर शोध करने वाले हरिद्वार गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय ने इस पर एक शोध किया है कि कैसे पशु-पक्षियों को पहले ही प्राकृतिक आपदा का आभास हो जाता है.

गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के पशु वैज्ञानिक डॉक्टर दिनेश भट्ट कहते हैं कि पशु-पक्षियों के व्यवहार को भांपकर बड़ी प्राकृतिक आपदा से बचा जा सकता है. इसके लिए आपदा प्रभावित क्षेत्र में तैनात आर्मी, एनडीआरएफ को व्यवहार और पक्षी विज्ञान की जानकारी दी जानी चाहिए.

डॉक्टर दिनेश भट्ट

दिनेश भट्ट बताते है कि एक शोध में पता चला है कि जब धरती के अंदर हलचल होने से कंपन होता है तो आपदा आने का अंदेशा होता है. उससे पहले ही कुछ पशु-पक्षी उसे भांप लेते हैं, क्योंकि उनकी इंद्रियां काफी तेज होती हैं.

वे बताते हैं कि कुत्ते की सूंघने की शक्ति मनुष्य से कई गुना अधिक होती है. कुत्तों को उस जगह पर प्रयोग किया जाता है जहां विस्फोटक का अंदेशा होता है. आपदा के बाद रेस्क्यू कार्य में भी कुत्ते महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

डॉक्टर दिनेश भट्ट का कहना है जो प्रवासी पक्षी होते हैं वो अपना रास्ता खुद बनाते हैं. उनके अंदर आकाशीय मार्ग का पता लगाने का सिक्स्थ सेंस होता है. उसी प्रकार से बिलों में रहने वाले कुछ पशु-पक्षी बहुत पहले ही कंपन को महसूस कर लेते हैं. पशु-पक्षियों के व्यवहार से सीखकर हम बड़ी आपदाओं से बच सकते हैं.

पशु-पक्षी करते हैं असामान्य व्यवहार

हमारे अध्ययन बतलाते हैं कि भूकंप से पूर्व पशु-पक्षी असामान्य व्यवहार करते हैं. घरेलू पशु-पक्षी अपने स्थान से आजाद होने की कोशिश करते हैं. कुत्ते जोर-जोर से भौंकने लगते हैं. बिल्लियाँ रोने लगती हैं. कौए अपने घोंसले छोड़ कर हवा में उड़ने लगते हैं. सांप और चूहे अपने अपने बिलों से बाहर आ जाते हैं.

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डॉक्टर दिनेश भट्ट का कहना है कि अगर हम सतर्क रहें तो हिमालयी क्षेत्र में किसी भी तरह की आपदा से होने वाले नुकसान को हम कम कर सकते हैं. उन्होंने हिमालयी क्षेत्र में अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों की लापरवाही और सरकारों को इस हादसे का कारण बताया.

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