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50 Years of Chipko Movement: पहाड़ी महिलाओं ने हिलाई थी इंदिरा सरकार, इस आंदोलन के बाद बना वन संरक्षण अधिनियम

देश और दुनिया के लिए पर्यावरण को लेकर बने सबसे बड़े उदाहरण चिपको आंदोलन को इस साल 50 साल पूरे होने वाले हैं. ऐसे में इतिहास में चिपको आंदोलन का क्या महत्व है और क्यों इस आंदोलन को दुनिया के पर्यावरण संरक्षण को लेकर किए गए बड़े आंदोलनों में जगह दी जाती है, पेश है ये खास रिपोर्ट.

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Published : Jul 22, 2023, 2:00 PM IST

Updated : Jul 22, 2023, 10:14 PM IST

पहाड़ी महिलाओं ने हिलाई थी इंदिरा सरकार

चमोली: रैणी गांव में 50 साल पहले कुछ ऐसी तस्वीरें सामने आई, जिसे देखकर हर कोई हैरान था. महिलाओं का पेड़ों को सुरक्षित रखने के लिए किया गया ऐसा अनोखा विरोध दुनिया में पहली बार हुआ था. इस दौरान गांव की बिना पढ़ी लिखी महिलाएं वृक्षों के संरक्षण के लिए पेड़ों से लिपट गई थी. हजारों पेड़ों पर कुल्हाड़ी चलने का विरोध करने वाली इन महिलाओं ने पेड़ों से चिपककर इनका किसी भी हाल में संरक्षण करने का वचन ले लिया था. जिसे बाद में चिपको आंदोलन का नाम दिया गया.

दुनिया के लिए बड़ा उदाहरण बना चिपको आंदोलन: पर्यावरण संरक्षण को लेकर ठीक 50 साल पहले एक ऐसा ऐतिहासिक आंदोलन खड़ा हुआ. जिसकी गूंज दिल्ली हुकूमत से लेकर दुनिया भर में सुनाई दी. उत्तराखंड की धरती पर आंदोलन की रणभेरी ने पूरी दुनिया को अपनी ओर आकर्षित किया और पहली बार पर्यावरण प्रेम का ऐसा ऐतिहासिक उदाहरण सेट हुआ जो दुनिया ने पहले कभी नहीं देखा था. नतीजतन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी फैसला वापस लेकर कुछ ऐसे निर्णय लेने पड़े जो इतिहास में दर्ज हो गए.

Former Prime Minister Indira Gandhi
पहाड़ी महिलाओं ने हिलाई थी इंदिरा सरकार

गौरा देवी ने पेड़ों को बचाने का संभाला था मोर्चा: बात साल 1973 की है. जब उत्तराखंड भी उत्तर प्रदेश का ही हिस्सा हुआ करता था. इस दौरान उत्तर प्रदेश के चमोली के रैणी गांव में सरकार ने ठेकेदारों को हजारों पेड़ों को काटने की अनुमति दे दी थी. लिहाजा इस क्षेत्र में मौजूद पेड़ों को काटने की तैयारियां ठेकेदार की तरफ से पूरी कर ली गई और पेड़ों को काटने के लिए आरियां और कुल्हाड़ी लेकर मजदूर जंगलों का रुख करने लगे. सरकार के इस फैसले की जानकारी जंगल में आग की तरह आसपास के तमाम लोगों तक पहुंचने लगी. इसके बाद शुरू हुआ जंगलों को काटे जाने का विरोध. इस दौरान इसी गांव में रहने वाली गौरा देवी ने मोर्चा संभालते हुए करीब 27 महिलाओं के साथ जंगल में पहुंचकर चिन्हित गए किए गए पेड़ों से लिपटना शुरू कर दिया. इस दौरान महिलाओं ने पेड़ों से चिपक कर उनपर कुल्हाड़ी चलने से बचाने का प्रयास शुरू कर दिया.

First forest conservation act
पहाड़ी महिलाओं ने हिलाई थी इंदिरा सरकार

देश में लाया गया वन संरक्षण अधिनियम: नतीजा यह हुआ कि यहां पहुंचे मजदूर इन पेड़ों को काटे जाने की मंजूरी मिलने के बाद भी इन्हें न काट सके. ये बात अधिकारियों तक पहुंची, तो गांव वालों को मनाने की भी कोशिश होने लगी. लंबे समय तक चले इस आंदोलन के दौरान धीरे-धीरे इसकी चर्चा चमोली और उसके आसपास के जिलों तक भी होने लगी. आंदोलन जारी रहा और आंदोलन की खबर अब देश की राजधानी दिल्ली तक भी पहुंच गई. दरअसल गांव की बिना पढ़ी लिखी महिलाओं का पेड़ों को बचाने के लिए अनोखा आंदोलन सभी की जुबां पर आ चुका था. कुछ बुद्धिजीवियों और राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की मैगजीन और पत्रिकाओं में भी अब ये आंदोलन जगह लेने लगा था. फिर तो इस आंदोलन की चर्चा दुनिया भर के तमाम देशों में होने लगी. देश में वन संरक्षण अधिनियम लाया गया.

Former Prime Minister Indira Gandhi
गूगल ने बनाया था चिपको आंदोलन का डूडल

अनपढ़ महिलाओं ने वृक्षों को लेकर दिखाया अपनत्व: बताया जाता है कि इस दौरान क्षेत्र में करीब 2400 पेड़ों को काटा जाना था, लेकिन गौरा देवी और उनके साथ जंगल में पहुंची महिलाओं के विरोध ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तमाम लोगों को इस कदर आकर्षित किया कि इसने पर्यावरण संरक्षण को लेकर पूरी दुनिया को ही विचार करने पर मजबूर कर दिया. गौरा देवी चंडी प्रसाद भट्ट और गोविंद सिंह जैसे कई पर्यावरण प्रेमियों के नेतृत्व में अब आंदोलन और गति पकड़ने लगा था. जिसके बाद भारत में वृक्षों के संरक्षण को लेकर कुछ महत्वपूर्ण फैसले भारत सरकार की तरफ से लिए गए. दुनिया चिपको आंदोलन को लेकर इसलिए भी स्तब्ध थी कि, क्योंकि गांव की अनपढ़ महिलाओं द्वारा वृक्षों के संरक्षण को लेकर अपनत्व दिखाया गया था. आंदोलन में महिलाओं ने जंगलों पर अपना अधिकार जाहिर किया और इसके जरिए ग्रामीणों की रोजी-रोटी चलने को लेकर अपना पक्ष भी रखा. इस तरह गांव की महिलाओं की तरफ से पेड़ों पर चिपक कर चिपको आंदोलन शुरू करने से दुनिया भर में एक बड़ा संदेश जा रहा था. चिपको आंदोलन 1973 में शुरू हुआ और 2023 यानी इसी साल इस आंदोलन को 50 वर्ष पूरे हो रहे हैं. जाहिर है कि इस आंदोलन ने पर्यावरण को लेकर देश और दुनिया को एक सोच दी, लेकिन वक्त के साथ बनाए गए तमाम नियमों के लिए नए रास्ते भी तलाशे गए.

Former Prime Minister Indira Gandhi
पेड़ों से चिपक कर महिलाओं ने किया आंदोलन

हरेला पर्व के दौरान लाखों पेड़ लगाने का लक्ष्य: पर्यावरणविद प्रोफेसर एसपी सती कहते हैं कि पहाड़ों पर परियोजनाओं के नाम पर हो रहे प्रकृति के दोहन और विकास की अंधी दौड़ में पर्यावरण के साथ होते खिलवाड़ ने 50 साल पहले हुए इस चिपको आंदोलन की जरूरत को एक बार फिर जरूरी बना दिया है. वैसे तो देश में इसके बाद वह वन मंत्रालय भी बना और वनों के संरक्षण के लिए कठोर कानून भी बनाए गए. शायद यही वजह है कि आज पेड़ों के कटान को लेकर स्थितियां इतनी आसान नहीं रह गई हैं. राज्य सरकार की तरफ से भी पर्यावरण संरक्षण और इसके लिए लोगों को जागरूक करने के प्रयास किए जाते रहे हैं. हाल ही में हरेला पर्व के दौरान लाखों पेड़ लगाने का लक्ष्य भी रखा गया है और गौरा देवी के नाम पर मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण की तरफ से 50 साल पूरे होने पर राजधानी में 1 लाख पौधे लगाए जाने का लक्ष्य रखा गया है. इसके अलावा सरकार भी चिपको आंदोलन के संदेश को एक बार फिर लोगों के जेहन में डालने के लिए एक बड़े कार्यक्रम के जरिए पर्यावरण संरक्षण का संदेश देने जा रही है.
ये भी पढ़ें: Harela 2023: उत्तराखंड में आज से हरेला पर्व का आगाज, जानें क्यों मनाया जाता है यह त्योहार

पहाड़ी महिलाओं ने हिलाई थी इंदिरा सरकार

चमोली: रैणी गांव में 50 साल पहले कुछ ऐसी तस्वीरें सामने आई, जिसे देखकर हर कोई हैरान था. महिलाओं का पेड़ों को सुरक्षित रखने के लिए किया गया ऐसा अनोखा विरोध दुनिया में पहली बार हुआ था. इस दौरान गांव की बिना पढ़ी लिखी महिलाएं वृक्षों के संरक्षण के लिए पेड़ों से लिपट गई थी. हजारों पेड़ों पर कुल्हाड़ी चलने का विरोध करने वाली इन महिलाओं ने पेड़ों से चिपककर इनका किसी भी हाल में संरक्षण करने का वचन ले लिया था. जिसे बाद में चिपको आंदोलन का नाम दिया गया.

दुनिया के लिए बड़ा उदाहरण बना चिपको आंदोलन: पर्यावरण संरक्षण को लेकर ठीक 50 साल पहले एक ऐसा ऐतिहासिक आंदोलन खड़ा हुआ. जिसकी गूंज दिल्ली हुकूमत से लेकर दुनिया भर में सुनाई दी. उत्तराखंड की धरती पर आंदोलन की रणभेरी ने पूरी दुनिया को अपनी ओर आकर्षित किया और पहली बार पर्यावरण प्रेम का ऐसा ऐतिहासिक उदाहरण सेट हुआ जो दुनिया ने पहले कभी नहीं देखा था. नतीजतन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी फैसला वापस लेकर कुछ ऐसे निर्णय लेने पड़े जो इतिहास में दर्ज हो गए.

Former Prime Minister Indira Gandhi
पहाड़ी महिलाओं ने हिलाई थी इंदिरा सरकार

गौरा देवी ने पेड़ों को बचाने का संभाला था मोर्चा: बात साल 1973 की है. जब उत्तराखंड भी उत्तर प्रदेश का ही हिस्सा हुआ करता था. इस दौरान उत्तर प्रदेश के चमोली के रैणी गांव में सरकार ने ठेकेदारों को हजारों पेड़ों को काटने की अनुमति दे दी थी. लिहाजा इस क्षेत्र में मौजूद पेड़ों को काटने की तैयारियां ठेकेदार की तरफ से पूरी कर ली गई और पेड़ों को काटने के लिए आरियां और कुल्हाड़ी लेकर मजदूर जंगलों का रुख करने लगे. सरकार के इस फैसले की जानकारी जंगल में आग की तरह आसपास के तमाम लोगों तक पहुंचने लगी. इसके बाद शुरू हुआ जंगलों को काटे जाने का विरोध. इस दौरान इसी गांव में रहने वाली गौरा देवी ने मोर्चा संभालते हुए करीब 27 महिलाओं के साथ जंगल में पहुंचकर चिन्हित गए किए गए पेड़ों से लिपटना शुरू कर दिया. इस दौरान महिलाओं ने पेड़ों से चिपक कर उनपर कुल्हाड़ी चलने से बचाने का प्रयास शुरू कर दिया.

First forest conservation act
पहाड़ी महिलाओं ने हिलाई थी इंदिरा सरकार

देश में लाया गया वन संरक्षण अधिनियम: नतीजा यह हुआ कि यहां पहुंचे मजदूर इन पेड़ों को काटे जाने की मंजूरी मिलने के बाद भी इन्हें न काट सके. ये बात अधिकारियों तक पहुंची, तो गांव वालों को मनाने की भी कोशिश होने लगी. लंबे समय तक चले इस आंदोलन के दौरान धीरे-धीरे इसकी चर्चा चमोली और उसके आसपास के जिलों तक भी होने लगी. आंदोलन जारी रहा और आंदोलन की खबर अब देश की राजधानी दिल्ली तक भी पहुंच गई. दरअसल गांव की बिना पढ़ी लिखी महिलाओं का पेड़ों को बचाने के लिए अनोखा आंदोलन सभी की जुबां पर आ चुका था. कुछ बुद्धिजीवियों और राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की मैगजीन और पत्रिकाओं में भी अब ये आंदोलन जगह लेने लगा था. फिर तो इस आंदोलन की चर्चा दुनिया भर के तमाम देशों में होने लगी. देश में वन संरक्षण अधिनियम लाया गया.

Former Prime Minister Indira Gandhi
गूगल ने बनाया था चिपको आंदोलन का डूडल

अनपढ़ महिलाओं ने वृक्षों को लेकर दिखाया अपनत्व: बताया जाता है कि इस दौरान क्षेत्र में करीब 2400 पेड़ों को काटा जाना था, लेकिन गौरा देवी और उनके साथ जंगल में पहुंची महिलाओं के विरोध ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तमाम लोगों को इस कदर आकर्षित किया कि इसने पर्यावरण संरक्षण को लेकर पूरी दुनिया को ही विचार करने पर मजबूर कर दिया. गौरा देवी चंडी प्रसाद भट्ट और गोविंद सिंह जैसे कई पर्यावरण प्रेमियों के नेतृत्व में अब आंदोलन और गति पकड़ने लगा था. जिसके बाद भारत में वृक्षों के संरक्षण को लेकर कुछ महत्वपूर्ण फैसले भारत सरकार की तरफ से लिए गए. दुनिया चिपको आंदोलन को लेकर इसलिए भी स्तब्ध थी कि, क्योंकि गांव की अनपढ़ महिलाओं द्वारा वृक्षों के संरक्षण को लेकर अपनत्व दिखाया गया था. आंदोलन में महिलाओं ने जंगलों पर अपना अधिकार जाहिर किया और इसके जरिए ग्रामीणों की रोजी-रोटी चलने को लेकर अपना पक्ष भी रखा. इस तरह गांव की महिलाओं की तरफ से पेड़ों पर चिपक कर चिपको आंदोलन शुरू करने से दुनिया भर में एक बड़ा संदेश जा रहा था. चिपको आंदोलन 1973 में शुरू हुआ और 2023 यानी इसी साल इस आंदोलन को 50 वर्ष पूरे हो रहे हैं. जाहिर है कि इस आंदोलन ने पर्यावरण को लेकर देश और दुनिया को एक सोच दी, लेकिन वक्त के साथ बनाए गए तमाम नियमों के लिए नए रास्ते भी तलाशे गए.

Former Prime Minister Indira Gandhi
पेड़ों से चिपक कर महिलाओं ने किया आंदोलन

हरेला पर्व के दौरान लाखों पेड़ लगाने का लक्ष्य: पर्यावरणविद प्रोफेसर एसपी सती कहते हैं कि पहाड़ों पर परियोजनाओं के नाम पर हो रहे प्रकृति के दोहन और विकास की अंधी दौड़ में पर्यावरण के साथ होते खिलवाड़ ने 50 साल पहले हुए इस चिपको आंदोलन की जरूरत को एक बार फिर जरूरी बना दिया है. वैसे तो देश में इसके बाद वह वन मंत्रालय भी बना और वनों के संरक्षण के लिए कठोर कानून भी बनाए गए. शायद यही वजह है कि आज पेड़ों के कटान को लेकर स्थितियां इतनी आसान नहीं रह गई हैं. राज्य सरकार की तरफ से भी पर्यावरण संरक्षण और इसके लिए लोगों को जागरूक करने के प्रयास किए जाते रहे हैं. हाल ही में हरेला पर्व के दौरान लाखों पेड़ लगाने का लक्ष्य भी रखा गया है और गौरा देवी के नाम पर मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण की तरफ से 50 साल पूरे होने पर राजधानी में 1 लाख पौधे लगाए जाने का लक्ष्य रखा गया है. इसके अलावा सरकार भी चिपको आंदोलन के संदेश को एक बार फिर लोगों के जेहन में डालने के लिए एक बड़े कार्यक्रम के जरिए पर्यावरण संरक्षण का संदेश देने जा रही है.
ये भी पढ़ें: Harela 2023: उत्तराखंड में आज से हरेला पर्व का आगाज, जानें क्यों मनाया जाता है यह त्योहार

Last Updated : Jul 22, 2023, 10:14 PM IST
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