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शीर्ष अदालत के नियमों की जानकारी रजिस्ट्री अधिकारियों को होनी चाहिए: SC - विशेष अनुमति याचिकाओं (SLP)

शीर्ष अदालत ने रजिस्ट्रार (न्यायिक) को उन मामलों के संबंध में संबंधित अनुभागों को औपचारिक निर्देश जारी करने का निर्देश दिया, जिनमें आदेश 20, नियम तीन और आदेश 22, नियम पांच लागू होंगे. साथ ही अन्य मामलों में ऐसे आवेदन दाखिल करने पर जोर नहीं देने का निर्देश दिया गया.

शीर्ष अदालत
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Published : Jan 11, 2022, 2:25 PM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि रजिस्ट्री अधिकारियों को शीर्ष अदालत के नियमों के बारे में भली-भांति जानकारी होनी चाहिए. साथ ही, न्यायालय ने रजिस्ट्रार (न्यायिक) को अधिकारियों के लिए यह निर्देश जारी करने के लिए कहा कि अदालत के समक्ष जिस आदेश को चुनौती दी गई है. यदि वह केवल जमानत रद्द किए जाने से संबंधित है, तो आत्मसमर्पण करने से छूट मांगने के लिए आवेदन दाखिल करने की कोई आवश्यकता नहीं है.

जस्टिस पी एस नरसिम्हा ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के नियमानुसार, यह आवश्यकता केवल उन आपराधिक अपीलों और विशेष अनुमति याचिकाओं (SLP) के लिए है, जिनमें याचिकाकर्ता को 'कारावास की सजा' दी गई हो. शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी धोखाधड़ी के एक मामले में समर्पण से छूट के आवेदन को बहाल करने और देरी को माफ करने संबंधी आवेदनों पर विचार करते हुए की.

याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री ने आत्मसमर्पण से छूट देने का अनुरोध करने वाली अर्जी दाखिल करने पर जोर दिया, जबकि अदालत में जिस आदेश को चुनौती दी गई है, वह जमानत को रद्द करने से जुड़ा है. न्यायालय ने वकील को सूचित किया कि यह नियम केवल उन मामलों में आपराधिक अपील और विशेष अनुमति याचिकाओं (SLP) पर लागू होता है, जिनमें याचिकाकर्ता को कारावास की सजा दी गई है और यह नियम जमानत रद्द किए जाने के खिलाफ SLP पर लागू नहीं होता. इसके बाद कुछ वकीलों ने कहा कि वे रजिस्ट्री से बहस करने के बजाय इस प्रकार की अर्जियां दाखिल कर देते हैं.

न्यायालय ने कहा कि रजिस्ट्री के अधिकारियों को उच्चतम न्यायालय के नियमों से भली प्रकार अवगत होना चाहिए. आदेश 22 नियम पांच केवल उन मामलों में लागू होता है, जिनमें याचिकाकर्ता को कारावास की सजा दी गई है और जमानत रद्द करने के सामान्य आदेश के साथ इसे लेकर भ्रमित नहीं हुआ जा सकता.

पढ़ें : अदालतों के चक्कर में उम्र बीत गई, 35 साल बाद बंबई हाईकोर्ट ने हटाया करप्शन का दाग

शीर्ष अदालत ने हाल के एक आदेश में कहा कि यह परेशान करने वाली बात है कि छूट के लिए बड़ी संख्या में ऐसे आवेदन नियमित रूप से दाखिल किए जाते हैं, जबकि इस तरह की प्रक्रिया की कतई आवश्यकता नहीं होती. इसके कारण वकीलों, न्यायाधीशों और यहां तक ​​कि रजिस्ट्री का बोझ बढ़ता है. इसके अलावा यह कानून के प्रति सम्मान का अभाव दर्शाता है.

शीर्ष अदालत ने रजिस्ट्रार (न्यायिक) को उन मामलों के संबंध में संबंधित अनुभागों को औपचारिक निर्देश जारी करने का निर्देश दिया, जिनमें आदेश 20, नियम तीन और आदेश 22, नियम पांच लागू होंगे. साथ ही अन्य मामलों में ऐसे आवेदन दाखिल करने पर जोर नहीं देने का निर्देश दिया गया. इस मामले की सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने इस बात पर गौर किया कि याचिकाकर्ता को भारतीय दंड संहिता की धारा 420 (धोखाधड़ी), धारा 34 (सामान्य इरादा) के साथ पढ़ा जाए, के तहत गिरफ्तार किया गया था और उच्च न्यायालय ने एक राशि जमा करने की शर्त पर उनकी जमानत याचिका मंजूर कर ली थी.

उसने कहा कि जब याचिकाकर्ता राशि जमा नहीं कर पाया, तो अदालत ने जमानत मंजूर करने का अपना आदेश वापस ले लिया और उसे आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया. इसके बाद याचिकाकर्ता ने अदालत के आदेश के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में एसएलपी दायर की. इसके साथ ही उसने आत्मसमर्पण से छूट संबंधी आवेदन भी दाखिल किया. शीर्ष अदालत ने कहा कि वकील को पता होना चाहिए कि इस तरह का आवेदन पूर्णतय: अनावश्यक है.

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि रजिस्ट्री अधिकारियों को शीर्ष अदालत के नियमों के बारे में भली-भांति जानकारी होनी चाहिए. साथ ही, न्यायालय ने रजिस्ट्रार (न्यायिक) को अधिकारियों के लिए यह निर्देश जारी करने के लिए कहा कि अदालत के समक्ष जिस आदेश को चुनौती दी गई है. यदि वह केवल जमानत रद्द किए जाने से संबंधित है, तो आत्मसमर्पण करने से छूट मांगने के लिए आवेदन दाखिल करने की कोई आवश्यकता नहीं है.

जस्टिस पी एस नरसिम्हा ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के नियमानुसार, यह आवश्यकता केवल उन आपराधिक अपीलों और विशेष अनुमति याचिकाओं (SLP) के लिए है, जिनमें याचिकाकर्ता को 'कारावास की सजा' दी गई हो. शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी धोखाधड़ी के एक मामले में समर्पण से छूट के आवेदन को बहाल करने और देरी को माफ करने संबंधी आवेदनों पर विचार करते हुए की.

याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री ने आत्मसमर्पण से छूट देने का अनुरोध करने वाली अर्जी दाखिल करने पर जोर दिया, जबकि अदालत में जिस आदेश को चुनौती दी गई है, वह जमानत को रद्द करने से जुड़ा है. न्यायालय ने वकील को सूचित किया कि यह नियम केवल उन मामलों में आपराधिक अपील और विशेष अनुमति याचिकाओं (SLP) पर लागू होता है, जिनमें याचिकाकर्ता को कारावास की सजा दी गई है और यह नियम जमानत रद्द किए जाने के खिलाफ SLP पर लागू नहीं होता. इसके बाद कुछ वकीलों ने कहा कि वे रजिस्ट्री से बहस करने के बजाय इस प्रकार की अर्जियां दाखिल कर देते हैं.

न्यायालय ने कहा कि रजिस्ट्री के अधिकारियों को उच्चतम न्यायालय के नियमों से भली प्रकार अवगत होना चाहिए. आदेश 22 नियम पांच केवल उन मामलों में लागू होता है, जिनमें याचिकाकर्ता को कारावास की सजा दी गई है और जमानत रद्द करने के सामान्य आदेश के साथ इसे लेकर भ्रमित नहीं हुआ जा सकता.

पढ़ें : अदालतों के चक्कर में उम्र बीत गई, 35 साल बाद बंबई हाईकोर्ट ने हटाया करप्शन का दाग

शीर्ष अदालत ने हाल के एक आदेश में कहा कि यह परेशान करने वाली बात है कि छूट के लिए बड़ी संख्या में ऐसे आवेदन नियमित रूप से दाखिल किए जाते हैं, जबकि इस तरह की प्रक्रिया की कतई आवश्यकता नहीं होती. इसके कारण वकीलों, न्यायाधीशों और यहां तक ​​कि रजिस्ट्री का बोझ बढ़ता है. इसके अलावा यह कानून के प्रति सम्मान का अभाव दर्शाता है.

शीर्ष अदालत ने रजिस्ट्रार (न्यायिक) को उन मामलों के संबंध में संबंधित अनुभागों को औपचारिक निर्देश जारी करने का निर्देश दिया, जिनमें आदेश 20, नियम तीन और आदेश 22, नियम पांच लागू होंगे. साथ ही अन्य मामलों में ऐसे आवेदन दाखिल करने पर जोर नहीं देने का निर्देश दिया गया. इस मामले की सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने इस बात पर गौर किया कि याचिकाकर्ता को भारतीय दंड संहिता की धारा 420 (धोखाधड़ी), धारा 34 (सामान्य इरादा) के साथ पढ़ा जाए, के तहत गिरफ्तार किया गया था और उच्च न्यायालय ने एक राशि जमा करने की शर्त पर उनकी जमानत याचिका मंजूर कर ली थी.

उसने कहा कि जब याचिकाकर्ता राशि जमा नहीं कर पाया, तो अदालत ने जमानत मंजूर करने का अपना आदेश वापस ले लिया और उसे आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया. इसके बाद याचिकाकर्ता ने अदालत के आदेश के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में एसएलपी दायर की. इसके साथ ही उसने आत्मसमर्पण से छूट संबंधी आवेदन भी दाखिल किया. शीर्ष अदालत ने कहा कि वकील को पता होना चाहिए कि इस तरह का आवेदन पूर्णतय: अनावश्यक है.

(पीटीआई-भाषा)

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