हैदराबाद: मंगलवार को वित्त वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही के GDP के आंकड़ों के बाद कोई इसे बंपर विकास की ओर इशारा बता रहा है तो कुछ इसे चिंता का विषय बता रहे हैं. आखिर क्या होती है जीडीपी और क्यों कोरोना काल में GDP के आंकड़ों पर चर्चाओं का बाजार इतना गर्म है. ये अच्छे संकेत हैं या चिंता की बात ? मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही के आंकड़ों को लेकर हर बात का जवाब आपको मिलेगा, लेकिन पहले जान लेते हैं कि...
क्या होती है जीडीपी ? (Gross Domestic Product)
किसी देश की सीमा में एक निर्धारित समय के दौरान तैयार सभी सामानों और सेवाओं का कुल कीमत सकल घरेलू उत्पाद यानि GDP कहलाती है. ये किसी देश की अर्थव्यवस्था की सेहत की जानकारी देता है. बढ़ती जीडीपी का मतलब है कि देश विकास कर रहा है, देश में रोजगार के मौके पैदा हो रहे हैं, कौन से क्षेत्र में विकास हो रहा है और कौन सा पिछड़ रहा है. इसकी जानकारी भी मिलती है.
आम तौर पर दुनियाभर में इसकी गणना वार्षिक तौर पर होती है लेकिन किसी वित्त वर्ष को चार तिमाहियों में बांटा जाता है. इसलिये अर्थव्यस्था से जुड़े आंकड़ों का आंकलन तिमाही के आधार पर भी होता है. कई कंपनियां भी अपने उत्पादन, बिक्री, मुनाफा आदि से जुड़े आंकड़े वार्षिक के साथ-साथ तिमाही पर भी जारी करते हैं.
जीडीपी पर क्यों हो रही है चर्चा ?
दरअसल केंद्र सरकार ने मौजूदा वित्त वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही यानि अप्रैल से जून तक के जो आंकड़े जारी किए हैं. उसमें सकल घरेलू उत्पाद (GDP) रिकॉर्ड 20.1 फीसदी रही है. इससे पहले इस तिमाही के लिए एसबीआई की एक रिपोर्ट में 18.5 फीसदी और आरबीआई ने 21.4 फीसदी जीडीपी ग्रोथ का अनुमान लगाया था. किसी भी वित्त वर्ष की किसी तिमाही में जीडीपी ग्रोथ के आंकड़ों ने तीन दशक का रिकॉर्ड तोड़ दिया है. 2021-22 की पहली तिमाही में जीडीपी 32.38 लाख करोड़ रुपये रही है.
बेस इफेक्ट है इस उछाल की वजह
जीडीपी में आए इस उछाल की मुख्य वजह बेस इफेक्ट है यानि साल 2020 के जून में जीडीपी ग्रोथ का माइनस में जाना. दरअसल जीडीपी के माइनस में पहुंचने के बाद कोविड-19 के दौर में जब हालात सामान्य हुए तो कई क्षेत्रों पटरी पर लौटने लगे. निर्माण (construction) क्षेत्र में 68 और विनिर्माण (manufacturing) सेक्टर में क्रमश 49 फीसदी से अधिक ग्रोथ देखी गई.
गौरतलब है कि इन्हीं दो क्षेत्रों में बीते साल सबसे ज्यादा गिरावट दर्ज की गई थी. लेकिन इस बार निर्माण और विनिर्माण पर जोर रहा. कोरोना की दूसरी लहर के बावजूद मांग बढ़ी और फिर उत्पादन भी बढ़ा. इसके बावजूद जून 2019 के जीडीपी आंकड़ों के मुताबिक मौजूदा जीडीपी का आकार 9 फीसदी कम है.
कोरोना काल और जीडीपी के आंकड़े
जीडीपी के आंकड़े किसी देश की अर्थव्यवस्था की सेहत बताते हैं. बढ़ती जीडीपी किसी अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा संकेत है. बीते साल कोरोना की मार का असर जीडीपी पर भी पड़ा, जो नेगेटिव में पहुंच गई. गौरतलब है कि बीते साल मार्च में कोविड-19 की वजह से लगे लॉकडाउन ने अर्थव्यवस्था को तगड़ा झटका लगा था. जिसकी झलक वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही के आंकड़ों में दिखी, जहां जीडीपी माइनस 24.4 फीसदी तक गिर गई. जो कि 26.95 लाख करोड़ रुपये थी, इसकी तुलना में इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही की जीडीपी में करीब 5.5 लाख करोड़ का इजाफा हुआ है.
आपसे भी है जीडीपी का कनेक्शन
जीडीपी के आंकड़ों का आम लोगों पर भी असर पड़ता है. अगर जीडीपी के आंकड़े लगातार सुस्त होते हैं तो ये देश के लिए खतरे की घंटी मानी जाती है. जीडीपी कम होना बताता है कि रोजगार के साधन कम हुए हैं, जिससे लोगों की औसत आय पर फर्क पड़ता है, लोग गरीबी रेखा के नीचे चले जाते हैं. की वजह से लोगों की औसत आय कम हो जाती है और लोग गरीबी रेखा के नीचे चले जाते हैं. आपकी बचत से लेकर खर्च करने और निवेश करने तक का जीडीपी से सीधा कनेक्शन है.
मसलन जीडीपी में एक किसान की उपज से लेकर फैक्ट्रियों में बनने वाले उत्पाद और बैंकिंग सेवाओं तक का आंकलन होता है. आप चाहे किसी फैक्ट्री में काम करते हों या फिर किसी बैंक में, आपका किया काम देश की अर्थव्यवस्था में हिस्सेदार बनता है. एक देश में डीजीपी प्रति व्यक्ति का आंकड़ा बताता है कि देश की अर्थव्यवस्था में वहां के हर नागरिक का कितना योगदान है.
क्या पटरी पर लौट आई है अर्थव्यवस्था ?
बीते साल लगे लॉकडाउन से जीडीपी को तगड़ा झटका लगा और इस बार पहली तिमाही में जीडीपी में 20.1 फीसदी का उछाल देखने को मिल रहा है. जानकार मानते हैं कि ये आंकड़े बीते साल के मुकाबले अच्छे संकेत तो हैं लेकिन अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट आई है, ये सिर्फ इस आंकड़े के आधार पर नहीं कहा जा सकता क्योंकि इस उछाल की तुलना बीते वित्त वर्ष और खासकर पहली तिमाही से की जा रही हैं जब जीडीपी माइनस में गोते खा रही थी.
कुल मिलाकर बीते वित्त वर्ष के तिमाही के आंकड़ों से तुलना पर इस बार की तिमाही के आंकड़े उत्साहित करने वाले हैं. लेकिन जानकार मानते हैं कि इन आंकड़ों की तुलना प्री-कोविड टाइम या कोरोना काल से पहले के आंकड़ों से होनी चाहिए जिनके सामने ये बहुत कम हैं.
क्या कहते हैं जानकार ?
दरअसल कोरोना काल में अर्थव्यवस्था का जो हाल था उसके बाद सामान्य होते हालात के बीच ज्यादातर अर्थशास्त्रियों ने जीडीपी के ऐसे ही आंकड़ों की भविष्यवाणी की थी. ज्यादातर का अनुमान 18 से 22 फीसदी के बीच था, जीडीपी के आंकड़े सामने आने का असर शेयर बाजार में उछाल के रूप में दिखा. लेकिन जानकार मानते हैं कि जीडीपी के बेहतर आंकड़े और शेयर बाजार का उछाल से ये नहीं मानना चाहिए कि सब ठीक ठाक है.
पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम के मुताबिक दो साल पहले 2019-20 की पहली तिमाही में जीडीपी 35,66,788 करोड़ रुपये थी जो अब 32,38,828 करोड़ ही है. चिदंबरम ने कहा कि खनन से लेकर होटल, परिवहन और वित्तीय सेवाएं अब भी पहले वाली स्थिति में नहीं पहुंच पाई हैं. इस लिहाज से देखें तो पता चलता है कि अर्थव्यवस्था फिलहाल वहां भी नहीं पहुंच पाई है जहां 2 साल पहले थी.
जीडीपी के आंकड़ों का विश्लेषण करने वाले जानकारों के मुताबिक इस साल जनवरी से मार्च की तिमाही से ही तुलना करें तो उत्पादन में करीब 17 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है. जबकि कोरोना को देखते हुए हालात बीते वित्त वर्ष की पहली तिमाही के बेहतर हुए हैं. हालांकि कंस्ट्रक्शन क्षेत्र में जहां पिछले साल 50 फीसदी की गिरावट थी वहां अब 68 फीसदी से अधिक का उछाल है.
इसके अलावा औद्योगिक क्षेत्र में भी उछाल देखा गया है. इन दोनों ही सेक्टर में रोजगार के मौके भी बढ़े हैं लेकिन बाकी दूसरे क्षेत्रों और खासकर सर्विस सेक्टर में बहुत कम सुधार हुआ है और देश की अर्थव्यवस्था बड़े पैमाने पर इस सर्विस सेक्टर पर टिकी है.
अर्थशास्त्रियों के मुताबिक देश की जीडीपी की बात करें तो इसमें वित्त वर्ष 2017-18 से ही गिरावट दर्ज की जा रही है. लगातार गिरती जीडीपी को बीते साल कोरोना ने और भी गर्त में धकेल दिया था. अगर वित्त वर्ष की पहली तिमाही की भी तुलना करें तो बीते 5 सालों में इस बार के आंकड़े सिर्फ साल 2017 और कोरोना काल की 2020 की पहली तिमाही से ही बेहतर है.
जीडीपी के आंकड़े खुशखबरी या चिंता की बात ?
कोरोना काल में गर्त में पहुंच चुकी अर्थव्यस्था को देखते हुए जीडीपी के आंकड़े खुशखबरी तो हैं लेकिन कोरोना काल से पहले यानि साल 2019 के आंकड़ों से इनकी तुलना करने पर ये उतने उत्साहवर्धक नहीं है. गिने चुने सेक्टर्स को छोड़कर ज्यादातर क्षेत्र अभी भी पटरी पर लौटने की जद्दोजहद में लगे हैं. जिसके कारण इन क्षेत्रों में रोजगार के अवसर भी कम पैदा हो रहे हैं. ऐसे में अगली तिमाही और फिर मौजूदा वित्त वर्ष के जीडीपी के आंकड़ों पर सबकी नजर रहेगी.
इस बीच सरकार के लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय कोविड-19 की तीसरी लहर है जिसके कयास लगाए जा रहे हैं. पहली लहर में लॉकडाउन से आर्थिक नुकसान और दूसरी लहर में जिंदगियों पर कहर बनकर टूटे कोरोना का डर अर्थव्यवस्था को अब भी सता रहा है. क्योंकि कोविड-19 आपकी सेहत के साथ अर्थव्यवस्था की सेहत भी बिगाड़ रहा है.
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