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जानिए, बंगाल में क्यों हो गया 'खेला' - तीसरी बार प. बंगाल में ममता

पश्चिम बंगाल के चुनाव परिणाम ने भारतीय जनता पार्टी को सन्न कर दिया है. 200 सीटों पर जीत का दावा करने वाली भाजपा को 100 सीटें भी नसीब नहीं हुईं. आखिर टीएमसी की जीत की क्या वजहें रहीं और कौन से ऐसे कारक थे, जिसने पार्टी को तीसरी बार सत्ता में ला दिया. आइए एक नजर डालते हैं.

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ममता बनर्जी
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Published : May 2, 2021, 7:17 PM IST

हैदराबाद : प. बंगाल का चुनाव परिणाम आ चुका है. तृणमूल कांग्रेस तीसरी बार लगातार सत्ता में लौट रही है. पार्टी 200 से अधिक सीटें जीतने की ओर अग्रसर है. टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने जीत को लेकर मतदाताओं का शुक्रिया अदा किया. ममता ने कहा कि उन्होंने जनता से जो भी वादा किया, वह उसे पूरा करेंगी. आइए उन वजहों पर एक नजर डालते हैं जिसकी बदौलत टीएमसी को प्रचंड जीत नसीब हुई.

सीएम पद को लेकर सस्पेंस

- भाजपा द्वारा सीएम पद के लिए किसी उम्मीदवार को आगे नहीं करना. पूरा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के कंधों पर निर्भर हो गया.

बंगाली अस्मिता का दांव

-ममता बनर्जी ने अपने प्रचार के दौरान क्षेत्रीय राजनीति को अपना आधार बनाए रखा. मोदी-शाह को बार-बार 'बाहरी' कहती रहीं. बंगाली अस्मिता और बंगाली राष्ट्रीयता के पिच पर प्रचार केंद्रित रखा. उन्होंने कहा कि 'बाहर' वाले बंगाली संस्कृति और उनके समावेशिता के भाव को नहीं समझते हैं. ममता का यह दांव काम कर गया.

कल्याणकारी योजनाएं

ममता सरकार ने महिलाओं के लिए कन्याश्री और रुपाश्री दो योजनाएं चलाईं थीं. ऐसा लगता है कि महिला मतदाताओं ने उनका 'कर्ज' अदा किया. कन्याश्री योजना के तहत आठवीं क्लास की लड़कियों को 25 हजार रुपया दिया जाता है. उसके बाद रूपाश्री योजना के तहत लड़कियों के18 साल होने पर उनके परिवार को 25 हजार की सहायता दी जाती है. मुफ्त चावल, मुफ्त राशन की योजना भी लोगों के बीच काफी लोकप्रिय रही. 'कट मनी' पर लोगों के गुस्से और ग्रामीण क्षेत्रों में 'जबरन वसूली' के आरोपों के बावजूद कल्याणकारी योजनाएं जनता को ज्यादा भायी.

सीपीएम-कांग्रेस का परंपरागत वोट शिफ्ट

लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान भाजपा को 18 सीटें मिली थीं. वोट प्रतिशत 40 फीसदी था. लेकिन इस बार लगता है कि सीपीएम और कांग्रेस के परंपरागत मतदाताओं ने दीदी पर ज्यादा भरोसा किया.

मुस्लिम मतदाता ममता के पीछे

मुस्लिम मतादाता पूरी तरह से ममता बनर्जी के पीछे खड़े हो गए. नागरिकता संशोधन कानून ने भाजपा के खिलाफ मूड बनाया. इंडियन सेक्युलर फ्रंट मुस्लिम मतदाताओं को अपनी ओर रिझाने में नाकामयाब रहा. वाम और कांग्रेस की ओर मुस्लिम मतदाता नहीं बढ़े. उन्हें लगा कि इन्हें वोट देने से भाजपा और मजबूत होगी. इसका असर दिखा.

ध्रुवीकरण

भाजपा को ध्रुवीकरण की राजनीति से थोड़ा बहुत फायदा हुआ. लेकिन ऐसा लगता है कि इसके खिलाफ जो ध्रुवीकरण हुआ (मुस्लिमों के बीच), उससे टीएमसी को बहुत अधिक फायदा हुआ. इसे काउंटर पोलराइजेशन कहते हैं. द.बंगाल के कुछ इलाकों में भाजपा ने ध्रुवीकरण के कारण अच्छा परिणाम हासिल किया.

घायल ममता

चुनाव प्रचार के दौरान ममता बनर्जी के घायल होने पर कई सारे भाजपा नेताओं ने उन पर तंज कसा था. व्यक्तिगत टिप्पणियां की गईं थीं. ममता ने इस 'प्रहार' को अपना हथियार बना लिया.

भाजपा के स्थानीय कार्यकर्ताओं में रोष

टीएमसी और दूसरी पार्टियों के नेताओं को वरीयता मिलने से भाजपा के स्थानीय कार्यकर्ताओं में रोष का भाव था. हो सकता है, इसने भी पार्टी के खिलाफ काम किया हो.

हैदराबाद : प. बंगाल का चुनाव परिणाम आ चुका है. तृणमूल कांग्रेस तीसरी बार लगातार सत्ता में लौट रही है. पार्टी 200 से अधिक सीटें जीतने की ओर अग्रसर है. टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने जीत को लेकर मतदाताओं का शुक्रिया अदा किया. ममता ने कहा कि उन्होंने जनता से जो भी वादा किया, वह उसे पूरा करेंगी. आइए उन वजहों पर एक नजर डालते हैं जिसकी बदौलत टीएमसी को प्रचंड जीत नसीब हुई.

सीएम पद को लेकर सस्पेंस

- भाजपा द्वारा सीएम पद के लिए किसी उम्मीदवार को आगे नहीं करना. पूरा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के कंधों पर निर्भर हो गया.

बंगाली अस्मिता का दांव

-ममता बनर्जी ने अपने प्रचार के दौरान क्षेत्रीय राजनीति को अपना आधार बनाए रखा. मोदी-शाह को बार-बार 'बाहरी' कहती रहीं. बंगाली अस्मिता और बंगाली राष्ट्रीयता के पिच पर प्रचार केंद्रित रखा. उन्होंने कहा कि 'बाहर' वाले बंगाली संस्कृति और उनके समावेशिता के भाव को नहीं समझते हैं. ममता का यह दांव काम कर गया.

कल्याणकारी योजनाएं

ममता सरकार ने महिलाओं के लिए कन्याश्री और रुपाश्री दो योजनाएं चलाईं थीं. ऐसा लगता है कि महिला मतदाताओं ने उनका 'कर्ज' अदा किया. कन्याश्री योजना के तहत आठवीं क्लास की लड़कियों को 25 हजार रुपया दिया जाता है. उसके बाद रूपाश्री योजना के तहत लड़कियों के18 साल होने पर उनके परिवार को 25 हजार की सहायता दी जाती है. मुफ्त चावल, मुफ्त राशन की योजना भी लोगों के बीच काफी लोकप्रिय रही. 'कट मनी' पर लोगों के गुस्से और ग्रामीण क्षेत्रों में 'जबरन वसूली' के आरोपों के बावजूद कल्याणकारी योजनाएं जनता को ज्यादा भायी.

सीपीएम-कांग्रेस का परंपरागत वोट शिफ्ट

लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान भाजपा को 18 सीटें मिली थीं. वोट प्रतिशत 40 फीसदी था. लेकिन इस बार लगता है कि सीपीएम और कांग्रेस के परंपरागत मतदाताओं ने दीदी पर ज्यादा भरोसा किया.

मुस्लिम मतदाता ममता के पीछे

मुस्लिम मतादाता पूरी तरह से ममता बनर्जी के पीछे खड़े हो गए. नागरिकता संशोधन कानून ने भाजपा के खिलाफ मूड बनाया. इंडियन सेक्युलर फ्रंट मुस्लिम मतदाताओं को अपनी ओर रिझाने में नाकामयाब रहा. वाम और कांग्रेस की ओर मुस्लिम मतदाता नहीं बढ़े. उन्हें लगा कि इन्हें वोट देने से भाजपा और मजबूत होगी. इसका असर दिखा.

ध्रुवीकरण

भाजपा को ध्रुवीकरण की राजनीति से थोड़ा बहुत फायदा हुआ. लेकिन ऐसा लगता है कि इसके खिलाफ जो ध्रुवीकरण हुआ (मुस्लिमों के बीच), उससे टीएमसी को बहुत अधिक फायदा हुआ. इसे काउंटर पोलराइजेशन कहते हैं. द.बंगाल के कुछ इलाकों में भाजपा ने ध्रुवीकरण के कारण अच्छा परिणाम हासिल किया.

घायल ममता

चुनाव प्रचार के दौरान ममता बनर्जी के घायल होने पर कई सारे भाजपा नेताओं ने उन पर तंज कसा था. व्यक्तिगत टिप्पणियां की गईं थीं. ममता ने इस 'प्रहार' को अपना हथियार बना लिया.

भाजपा के स्थानीय कार्यकर्ताओं में रोष

टीएमसी और दूसरी पार्टियों के नेताओं को वरीयता मिलने से भाजपा के स्थानीय कार्यकर्ताओं में रोष का भाव था. हो सकता है, इसने भी पार्टी के खिलाफ काम किया हो.

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