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योगी के सीएम बनने से लेकर दूसरे मंत्रिमंडल विस्तार की अटकलों तक का सफर

यूपी के सियासी गलियारों में इन दिनों कयासों का बाजार गर्म है. प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन से लेकर मंत्रिमंडल विस्तार तक कई तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं. ऐसे में भविष्य में प्रदेश की राजनीति में क्या कुछ होने वाला है उसका अनुमान लगाने के लिए 2017 के चुनाव के बाद प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने से लेकर अब तक प्रदेश में क्या-क्या सियासी अटकलें लगाई गईं और सूबे की सियासत में क्या बदलाव हुआ इस पर एक नजर डालें. पढ़ें इस पर हमारी विशेष रिपोर्ट...

योगी
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Published : Jun 11, 2021, 2:19 PM IST

लखनऊ : यूपी का सियासी तापमान इन दिनों काफी बढ़ा हुआ है. सीएम योगी के दिल्ली दौर पर जाने के बाद सूबे की सियासत में बदलाव की अटकलें और तेज हो गई हैं. कोई प्रदेश नेतृत्व परिवर्तन, तो कोई मंत्रिमंडल विस्तार के कयास लगा रहा है. ऐसे में प्रदेश की सियासत में क्या कुछ चल रहा है उसका अनुमान लगाने पहले एक नजर 2017 के चुनाव के बाद से लगाई जा रही अटकलों और सियासी बदलावों पर एक नजर डालते हैं. जिससे भविष्य की राजनीति का अनुमान लगाना आपके लिए थोड़ा आसान हो जाएगा.

सीएम योगी और खींचतान
यूपी भाजपा और योगी सरकार (Yogi Sarkar) से जुड़ी पूरी सियासत को समझने के लिए हम आपको चार साल पहले लेकर चलते हैं. गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ के 19 मार्च 2017 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजते ही खींचतान सामने आ गई थी या फिर यूं कहें कि खींचतान के बीच से निकलकर योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री (Yogi Adityanath Chief Minister) की कुर्सी पर काबिज हो गए थे.

दरअसल 2017 में भाजपा के पक्ष में आये चुनाव परिणामों के बाद यूपी भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य और उनके समर्थकों को यह लगने लगा कि मौर्य मुख्यमंत्री हो सकते हैं, लेकिन ताज योगी आदित्यनाथ के सिर पर सजा. तब से अब तक ऊपरी तौर पर इन दोनों नेताओं के बीच में भले ही उतनी खींचतान न दिखती हो, लेकिन उनके समर्थकों के बीच यह फासला जरूर बना हुआ है.

जब ब्रांड के रूप में उभर कर सामने आए योगी
सीएम योगी के ऊपर जातिवाद का आरोप लगने लगा. विपक्ष ने अधिकारियों की तैनाती से लेकर सरकारी नौकरियों के बहाने योगी को निशाना बनाया. विपक्ष ही नहीं बल्कि भाजपा के अंदर से भी यह बात दबी जुबान में उठने लगी. कुछ लोग तो जगह-जगह खुलकर बोलने लगे. लेकिन, सीएम योगी अपने काम के बल पर इन आरोपों का सामना करते हुए आगे बढ़ने में लगे रहे. सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था, 2019 के लोकसभा से लेकर यूपी के उपचुनाव तक भाजपा को जीत दिलाकर योगी ने खुद को प्रदेश की राजनीति के साथ-साथ भाजपा में भी मजबूती से स्थापित किया और योगी आदित्यनाथ एक ब्रांड के रूप में उभरकर सामने आए.


शर्मा की एंट्री के साथ ही दूसरे मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चा शुरू हुई
पिछले साल 2020 के मार्च में कोरोना वायरस ने उत्तर प्रदेश को भी अपनी चपेट में लिया तो योगी आदित्यनाथ इस संकट से निपटने में सफल रहे. इसके बाद कोविड ठंडा पड़ता गया. इसी बीच जनवरी 2021 में अरविंद कुमार शर्मा की उत्तर प्रदेश की सियासत में एंट्री हुई. शर्मा गुजरात कैडर के आईएएस अधिकारी रहे हैं. वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ लंबे समय तक काम करने का अनुभव रखते हैं. पीएम मोदी के करीबी कहे जाने वाले शर्मा की भाजपा में एंट्री के साथ ही उनके योगी मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने की चर्चा शुरू हो गई. माना जाने लगा कि शर्मा को योगी मंत्रिमंडल में शामिल करके उन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जाएगी. उन्हें डिप्टी सीएम भी बनाने जाने के भी कयास लगाए जाने लगे. इस बीच पश्चिम बंगाल समेत 5 राज्यों में हुए चुनाव के दौरान योगी व्यस्तता चुनावी रैलियों में बढ़ गई और मंत्रिमंडल विस्तार भी टलता रहा. इसी बीच मार्च में कोविड-19 की दूसरी लहर आ गई.


कोविड की दूसरी लहर में योगी की बढ़ीं मुश्किलें
दूसरी लहर के दौरान उत्तर प्रदेश में कोरोना संक्रमण बढ़ रहा था, वहीं दूसरी तरफ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पश्चिम बंगाल के चुनावी रण में सभाएं करने में जुटे थे. इस बीच प्रदेश में पंचायत चुनाव की तैयारियां भी चल रही थीं, लेकिन कोविड को देखते हुए हर तरफ से पंचायत चुनाव टालने की आवाज उठने लगी, मगर सरकार ने चुनाव कराया. ऑक्सीजन की किल्लत से लेकर दवाओं की कमी हो या फिर बेड का अभाव, जनता बेहाल दिखी. जिसके बाद प्रदेश में योगी सरकार के खिलाफ माहौल बनने लगा. जिसके बाद सीएम योगी ने खुद मोर्चा संभाला, जनता से अपील की, अधिकारियों पर नकेल कसी, प्रदेश के सभी 18 मंडलों और जिलों का दौरा किया. सीएम तकरीबन प्रदेश के सभी जिलों तक पहुंचे. अस्पतालों का मौके पर जाकर निरीक्षण किया, मरीजों से संवाद किया. यह सब करके एक तरफ उन्होंने जनता के बीच संदेश दिया कि सरकार उनके साथ खड़ी है, दूसरी तरफ प्रदेश के अस्पतालों में ऑक्सीजन साथ बेड और दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित कराया. लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी. सीएम योगी के ये प्रयास रंग और प्रदेश में कोविड संक्रमण कंट्रोल भी हो गया, लेकिन तब तक सरकार की जमकर किरकिरी हो चुकी थी. आम लोगों से लेकर सियासी दलों ने सरकार को कटघरे में खड़ा किया.


जब शर्मा बने योगी की आंख के किरकिरी
एक तरफ योगी प्रदेश की स्वास्थ्य सुविधाओं को सुदृढ़ करने में जुटे थे, दूसरी तरफ पूर्वांचल में प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में पूर्व नौकरशाह एके शर्मा पैर जमा रहे थे. उन्होंने वाराणसी में कोविड प्रबंधन करने का प्रयास किया. वह इसमें कितना सफल रहे, उसमें उनका कितना योगदान रहा, यह चर्चा का विषय है. लेकिन, मीडिया में सुर्खियां बटोरने में शर्मा सफल रहे. प्रधानमंत्री मोदी ने भी वाराणसी मॉडल की सराहना की. उस वाराणसी मॉडल को एके शर्मा अपने नाम कर लिया. जिसके बाद प्रदेश में दूसरे पावर सेंटर के रूप में अरविंद कुमार शर्मा को देखा जाने लगा. पीएम मोदी के करीबी माने जाने वाले अरविंद शर्मा का इस तरह से पावर सेंटर के रूप में स्थापित होना, योगी के लिए अच्छा नहीं था. ऐसे में शर्मा उनकी आंख की किरकिरी बनते गए.

इसे भी पढ़ें : पीएम मोदी से मिले यूपी के सीएम योगी, कई अहम मुद्दों पर हुई चर्चा


फाइनल मैच : योगी का दिल्ली दौरा
यूपी बीजेपी प्रभारी और राज्यपाल की भेंट के ठीक चौथे दिन गुरुवार यानी 10 जून को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अचानक दिल्ली का दौरा किया है. दोपहर करीब 3:30 बजे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दिल्ली पहुंचे. उनकी गृहमंत्री अमित शाह से करीब डेढ़ घंटे की मुलाकात हुई. बताया जा रहा है कि इस मुलाकात के दौरान सीएम योगी और गृहमंत्री अमित शाह के बीच यूपी की संपूर्ण व्यवस्था और मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर चर्चा की. कहा जा रहा है कि इस दौरान यूपी से जिन चेहरों को केंद्र में भेजा जा सकता है, उनके बारे में भी चर्चा हुई. इन सबके बीच शुक्रवार को सीएम योगी की मुलाकात प्रधानमंत्री मोदी और उसके बाद भाजपा के अध्यक्ष जेपी नड्डा से होनी है. इन दोनों शीर्ष नेताओं से मुलाकात के बाद सब कुछ करीब-करीब स्पष्ट हो जाएगा. इसी के बाद मंत्रिमंडल विस्तार और भाजपा संगठन में बदलाव की अटकलों पर भी विराम लग जाएगा या फिर यूं कहें कि शुक्रवार को योगी मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर जो खेल खेला जा रहा था उसका फाइनल मैच होगा.

लखनऊ : यूपी का सियासी तापमान इन दिनों काफी बढ़ा हुआ है. सीएम योगी के दिल्ली दौर पर जाने के बाद सूबे की सियासत में बदलाव की अटकलें और तेज हो गई हैं. कोई प्रदेश नेतृत्व परिवर्तन, तो कोई मंत्रिमंडल विस्तार के कयास लगा रहा है. ऐसे में प्रदेश की सियासत में क्या कुछ चल रहा है उसका अनुमान लगाने पहले एक नजर 2017 के चुनाव के बाद से लगाई जा रही अटकलों और सियासी बदलावों पर एक नजर डालते हैं. जिससे भविष्य की राजनीति का अनुमान लगाना आपके लिए थोड़ा आसान हो जाएगा.

सीएम योगी और खींचतान
यूपी भाजपा और योगी सरकार (Yogi Sarkar) से जुड़ी पूरी सियासत को समझने के लिए हम आपको चार साल पहले लेकर चलते हैं. गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ के 19 मार्च 2017 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजते ही खींचतान सामने आ गई थी या फिर यूं कहें कि खींचतान के बीच से निकलकर योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री (Yogi Adityanath Chief Minister) की कुर्सी पर काबिज हो गए थे.

दरअसल 2017 में भाजपा के पक्ष में आये चुनाव परिणामों के बाद यूपी भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य और उनके समर्थकों को यह लगने लगा कि मौर्य मुख्यमंत्री हो सकते हैं, लेकिन ताज योगी आदित्यनाथ के सिर पर सजा. तब से अब तक ऊपरी तौर पर इन दोनों नेताओं के बीच में भले ही उतनी खींचतान न दिखती हो, लेकिन उनके समर्थकों के बीच यह फासला जरूर बना हुआ है.

जब ब्रांड के रूप में उभर कर सामने आए योगी
सीएम योगी के ऊपर जातिवाद का आरोप लगने लगा. विपक्ष ने अधिकारियों की तैनाती से लेकर सरकारी नौकरियों के बहाने योगी को निशाना बनाया. विपक्ष ही नहीं बल्कि भाजपा के अंदर से भी यह बात दबी जुबान में उठने लगी. कुछ लोग तो जगह-जगह खुलकर बोलने लगे. लेकिन, सीएम योगी अपने काम के बल पर इन आरोपों का सामना करते हुए आगे बढ़ने में लगे रहे. सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था, 2019 के लोकसभा से लेकर यूपी के उपचुनाव तक भाजपा को जीत दिलाकर योगी ने खुद को प्रदेश की राजनीति के साथ-साथ भाजपा में भी मजबूती से स्थापित किया और योगी आदित्यनाथ एक ब्रांड के रूप में उभरकर सामने आए.


शर्मा की एंट्री के साथ ही दूसरे मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चा शुरू हुई
पिछले साल 2020 के मार्च में कोरोना वायरस ने उत्तर प्रदेश को भी अपनी चपेट में लिया तो योगी आदित्यनाथ इस संकट से निपटने में सफल रहे. इसके बाद कोविड ठंडा पड़ता गया. इसी बीच जनवरी 2021 में अरविंद कुमार शर्मा की उत्तर प्रदेश की सियासत में एंट्री हुई. शर्मा गुजरात कैडर के आईएएस अधिकारी रहे हैं. वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ लंबे समय तक काम करने का अनुभव रखते हैं. पीएम मोदी के करीबी कहे जाने वाले शर्मा की भाजपा में एंट्री के साथ ही उनके योगी मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने की चर्चा शुरू हो गई. माना जाने लगा कि शर्मा को योगी मंत्रिमंडल में शामिल करके उन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जाएगी. उन्हें डिप्टी सीएम भी बनाने जाने के भी कयास लगाए जाने लगे. इस बीच पश्चिम बंगाल समेत 5 राज्यों में हुए चुनाव के दौरान योगी व्यस्तता चुनावी रैलियों में बढ़ गई और मंत्रिमंडल विस्तार भी टलता रहा. इसी बीच मार्च में कोविड-19 की दूसरी लहर आ गई.


कोविड की दूसरी लहर में योगी की बढ़ीं मुश्किलें
दूसरी लहर के दौरान उत्तर प्रदेश में कोरोना संक्रमण बढ़ रहा था, वहीं दूसरी तरफ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पश्चिम बंगाल के चुनावी रण में सभाएं करने में जुटे थे. इस बीच प्रदेश में पंचायत चुनाव की तैयारियां भी चल रही थीं, लेकिन कोविड को देखते हुए हर तरफ से पंचायत चुनाव टालने की आवाज उठने लगी, मगर सरकार ने चुनाव कराया. ऑक्सीजन की किल्लत से लेकर दवाओं की कमी हो या फिर बेड का अभाव, जनता बेहाल दिखी. जिसके बाद प्रदेश में योगी सरकार के खिलाफ माहौल बनने लगा. जिसके बाद सीएम योगी ने खुद मोर्चा संभाला, जनता से अपील की, अधिकारियों पर नकेल कसी, प्रदेश के सभी 18 मंडलों और जिलों का दौरा किया. सीएम तकरीबन प्रदेश के सभी जिलों तक पहुंचे. अस्पतालों का मौके पर जाकर निरीक्षण किया, मरीजों से संवाद किया. यह सब करके एक तरफ उन्होंने जनता के बीच संदेश दिया कि सरकार उनके साथ खड़ी है, दूसरी तरफ प्रदेश के अस्पतालों में ऑक्सीजन साथ बेड और दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित कराया. लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी. सीएम योगी के ये प्रयास रंग और प्रदेश में कोविड संक्रमण कंट्रोल भी हो गया, लेकिन तब तक सरकार की जमकर किरकिरी हो चुकी थी. आम लोगों से लेकर सियासी दलों ने सरकार को कटघरे में खड़ा किया.


जब शर्मा बने योगी की आंख के किरकिरी
एक तरफ योगी प्रदेश की स्वास्थ्य सुविधाओं को सुदृढ़ करने में जुटे थे, दूसरी तरफ पूर्वांचल में प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में पूर्व नौकरशाह एके शर्मा पैर जमा रहे थे. उन्होंने वाराणसी में कोविड प्रबंधन करने का प्रयास किया. वह इसमें कितना सफल रहे, उसमें उनका कितना योगदान रहा, यह चर्चा का विषय है. लेकिन, मीडिया में सुर्खियां बटोरने में शर्मा सफल रहे. प्रधानमंत्री मोदी ने भी वाराणसी मॉडल की सराहना की. उस वाराणसी मॉडल को एके शर्मा अपने नाम कर लिया. जिसके बाद प्रदेश में दूसरे पावर सेंटर के रूप में अरविंद कुमार शर्मा को देखा जाने लगा. पीएम मोदी के करीबी माने जाने वाले अरविंद शर्मा का इस तरह से पावर सेंटर के रूप में स्थापित होना, योगी के लिए अच्छा नहीं था. ऐसे में शर्मा उनकी आंख की किरकिरी बनते गए.

इसे भी पढ़ें : पीएम मोदी से मिले यूपी के सीएम योगी, कई अहम मुद्दों पर हुई चर्चा


फाइनल मैच : योगी का दिल्ली दौरा
यूपी बीजेपी प्रभारी और राज्यपाल की भेंट के ठीक चौथे दिन गुरुवार यानी 10 जून को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अचानक दिल्ली का दौरा किया है. दोपहर करीब 3:30 बजे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दिल्ली पहुंचे. उनकी गृहमंत्री अमित शाह से करीब डेढ़ घंटे की मुलाकात हुई. बताया जा रहा है कि इस मुलाकात के दौरान सीएम योगी और गृहमंत्री अमित शाह के बीच यूपी की संपूर्ण व्यवस्था और मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर चर्चा की. कहा जा रहा है कि इस दौरान यूपी से जिन चेहरों को केंद्र में भेजा जा सकता है, उनके बारे में भी चर्चा हुई. इन सबके बीच शुक्रवार को सीएम योगी की मुलाकात प्रधानमंत्री मोदी और उसके बाद भाजपा के अध्यक्ष जेपी नड्डा से होनी है. इन दोनों शीर्ष नेताओं से मुलाकात के बाद सब कुछ करीब-करीब स्पष्ट हो जाएगा. इसी के बाद मंत्रिमंडल विस्तार और भाजपा संगठन में बदलाव की अटकलों पर भी विराम लग जाएगा या फिर यूं कहें कि शुक्रवार को योगी मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर जो खेल खेला जा रहा था उसका फाइनल मैच होगा.

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