नई दिल्ली : नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता के बीच सूत्रों ने कहा है कि मंगलवार दोपहर एक बजे, पीएम प्रचंड के गुट वाली सेंट्रल कमेटी पीएम ओली के निष्कासन की घोषणा करेगी. इसके बाद माधव कुमार को कुर्सी सौंपने की घोषणा की जा सकती है. सूत्रों के मुताबिक कल एनसीपी का औपचारिक विभाजन हो सकता है. दोनों पक्ष आधिकारिक पार्टी होने का दावा कर सकते हैं सूत्रों ने कहा है कि मंगलवार पूर्वाह्न 9 बजे पीएम ओली की केंद्रीय समिति (सीसी) का गुट पूर्व पीएम प्रचंड के निष्कासन की घोषणा करेगा.
फैसले के बचाव में पीएम
इससे पहले नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली ने संसद भंग करने के अपने फैसले का बचाव किया. उन्होंने कहा कि सरकार का कामकाज प्रभावित होने के कारण नया जनादेश लेने की जरूरत है. नेपाल की संसद भंग होने का प्रमुख कारण नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) के भीतर गतिरोध बताया जा रहा है. इस घटनाक्रम पर वरिष्ठ राजदूत एसडी मुनि ने कहा है कि इस संबंध में नेपाल की सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर फैसले की संवैधानिकता को चुनौती दी गई है.
एसडी मुनि ने कहा कि इस बात के कयास लगाए जा रहे थे कि कुछ कठोर कदम उठाए जा सकते हैं. इन्हीं में से एक यह हो सकता था कि ओली के स्थान पर किसी और को प्रधानमंत्री बनाया जाए. उन्होंने कहा, ओली ने एनसीपी के भीतर बन रहे दबाव को स्वीकार नहीं किया और संसद भंग करने की सिफारिश कर दी. उनकी यह चाल अपेक्षित भी थी.
ईटीवी भारत के साथ विशेष बातचीत के दौरान एसडी मुनि ने कहा कि यदि सुप्रीम कोर्ट यह फैसला करता है कि प्रधानमंत्री ओली ने जो किया है वह संवैधानिक रूप से मान्य नहीं है, तो पीएम ओली को इस्तीफा देना होगा. उन्होंने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट कहता है कि पीएम ने जो किया है वह सही है, तो नेपाल में चुनाव होंगे.
मुनि ने कहा कि मुझे लगता है कि इस प्रक्रिया में पार्टी उस समय अलग हो गई थी जब ओली के विरोधियों ने पहले ही अविश्वास प्रस्ताव के लिए मतदान किया और ओली ने उन्हें उनकी संसद सदस्यता से वंचित कर दिया था.
यदि पार्टी विभाजित होती है, तो इसका पुनिर्माण हो सकता है, जिसका अनुमान लगाना कठिन है. मुझे संदेह है कि ओली राजशाही ताकतों के साथ भी हाथ मिलाने में संकोच नहीं कर सकते हैं, जो बहुत मुखर हो रहे हैं, क्योंकि आंशिक रूप से उन्हें भाजपा के द्वारा भारत का कुछ समर्थन मिल रहा है.
पूर्व राजदूत ने आगे कहा कि मुझे नहीं पता कि पुननिर्माण होगा या नहीं लेकिन यह एक संभव है. मुझे नहीं लगता कि ओली शेर बहादुर देउबा के साथ हाथ मिला सकते हैं क्योंकि नेपाली कांग्रेस इसे स्वीकार नहीं करेगी और इसके अलावा इस बात की संभावना है कि ओली कुछ छोटे दलों को अपने साथ शामिल कर सकते हैं.'
सूत्रों के अनुसार इस तरह का निर्णय तब से प्रत्याशित था जब इसी साल अप्रैल में हिमालयी राष्ट्र में पहला राजनीतिक संकट आया था और नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के भीतर आंतरिक झगड़ा उजागर हुआ था.
यह पूछे जाने पर कि भारत के लिए नेपाली राजनीतिक संकट का क्या मतलब होगा, तो पूर्व राजदूत मुनि ने कहा कि इससे भारत और अधिक भ्रमिक होगा क्योंकि देश को नहीं पता है कि नेपाल में सरकार या नया गठबंधन कैसा होगा?
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उन्होंने कहा कि भारत के पास चीन, सीमा और विभिन्न असामाजिक तत्वों से संबंधित सुरक्षा के बहुत महत्वपूर्ण मुद्दे हैं, लेकिन हमें इंतजार करना होगा. भारत कुछ संरेखण को प्रोत्साहित कर सकता है, लेकिन नेपाल में बिजली बंटवारा एक बड़ी समस्या है.
हर बार नेपाल की अस्थिरता बिजली बंटवारे के कारण ही बाहर आती है. अब नेपाल में राजनीतिक परिदृश्य फ्लयूड है और हम नहीं जानते कि यह कैसे सुलझेगा.
उन्होंने कहा कि नेपाल में अनिश्चितता बढ़ती जा रही है, जो संबंधों के लिए अच्छा नहीं है. इसका भारत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि हम नहीं जानते कि सरकार किस तरह की सत्ता में आएगी.
मुनि ने आगे कहा कि इसका एकमात्र हल यह है कि ओली एक मुश्किल स्थिति में है और कम्युनिस्ट पार्टी टूट गई है. हम आशा करते हैं कि एनसीपी सत्ता में नहीं आएगी, कौन-कौन से गुट जुड़ेंगे, जो देखा जाना बाकी है.
बता दें एनसीपी का गठन मई 2018 में नेपाल की दो प्रमुख वामपंथी पार्टियों- ओली के नेतृत्व में नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) और प्रचंड की अगुवाई में नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी सेंटर) ने किया था.
तब यह निर्णय लिया गया कि दोनों नेता एक चुनावी गठबंधन के तहत पार्टी के संयुक्त अध्यक्ष के रूप में काम करेंगे.
उस समय, ओली और प्रचंड दोनोंशक्ति-साझाकरण समझौते पर सहमत हुए थे, जिसके तहत दोनों ढाई साल के लिए पीएम होंगे, लेकिन पार्टी के भीतर इस सौदे की पुष्टि नहीं हुई, क्योंकि ओली ने इसे जनरल काउंसिल में ले जाने से परहेज किया था.