जांजगीर-चांपा : ऐसा कहा जाता है कि बड़ा काम करने के लिए जज्बे की जरुरत होती है. इंसान का जज्बा उसे किसी भी चीज को पाने के लिए मदद करता है. ऐसा ही एक जज्बा जांजगीर-चांपा में देखने को मिला.जहां प्रशासनिक टीम ने बोरवेल के अंदर से फंसे राहुल साहू को जान पर खेलकर बचाया है.इस रेस्क्यू को भारत का सबसे बड़ा ऑपरेशन कहा जा रहा है. जिसमे NDRF, राज्य शासन, कोल इंडिया और सेना की टीम ने संयुक्त रुप से हिस्सा लिया. इस टीम में अफसरों से लेकर मजदूरों तक की भूमिका सराहनीय रही है. आज हम आपको मिशन राहुल के उन जांबाज योद्धा से मिलाने जा रहे ( Real Hero of Janjgir Champa Mission Rahul) हैं. जिसने राहुल को बोरवेल के अंदर से निकाला और सेफ्टी बेल्ट बांधकर एंबुलेंस तक पहुंचाया.
कैसे हुआ ऑपरेशन : जांजगीर-चांपा जिले के मालखरौदा के पिहरीद गांव (Pihrid village of Malkharoda in Janjgir Champa district) में शुक्रवार 10 जून को 4 बजे जिले के तमाम अधिकारियों का आना-जाना शुरु हो गया. 10 साल के राहुल साहू को बोरवेल के अंदर से बाहर निकालने की तरकीब सोच रहे थे. राज्य शासन और जिला प्रशासन ने राहुल को बचाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी. SDRF, NDRF के साथ ही आर्मी की मदद ली गई. इसके साथ ही प्रदेश भर में अंडर ग्राउंड सिस्टम पर काम करने वाले निजी और शासकीय संस्थानों के एक्सपर्ट्स को बुलाया गया. रायपुर केक टनलाइड इंफ्रा लिमिटेड जो सीवरेज सिस्टम बनाने का काम कर रही है. उनके एक्सपर्ट और मजदूर भी पिछले पांच दिन से इस ऑपरेशन में जुटे थे. ये सभी NDRF और सेना के निर्देशन में काम कर रही थी.
राहुल तक कौन पहुंचा पहले : राहुल साहू का रेस्क्यू सफल हो चुका है.राहुल को बोर के अंदर से सुरक्षित निकालने में अहम भूमिका निभाने वाले मजदूर मालदा पश्चिम बंगाल के हैं. इन मजदूरों ने ही रेस्क्यू के दौरान बाधा बन रहे पत्थर में होल करके टनल बनाया और अपनी जान पर खेलकर टनल के अंदर घुसे.इसके बाद राहुल को सेफ्टी बेल्ट से बांधकर गड्ढे से बाहर निकालकर सुरक्षित इलाज के लिए एंबुलेंस तक लाया गया. इस मिशन में शामिल अफसरों और मजदूरों ने राहुल के ऑपरेशन की जानकारी साझा (Rahul Sahu was trapped in the borewell of Janjgir) की.
कैसा बनाया गया टनल : टनल का काम कर रहे एक्सपर्ट भावेश साहा ने बताया कि ''बोर के बाजू में पैरलल 63 फीट गहरे खाई की खुदाई करने के बाद उसके नीचे बोर तक पहुंचने के लिए टनल बनाने का काम शुरू हुआ. शुरूआत में तेजी से काम चला. लेकिन चट्टान मिल रहे थे. इसके कारण सुरंग में उसे काटकर निकालने में दिक्कतें हो रही थी. अंदर एक के बाद एक चट्टान मिलने से उसे तोड़कर बाहर निकालने में दिक्कत आ रही थी.चट्टान नहीं होती तो राहुल दो दिन पहले ही बाहर आ जाता.''
टनल में क्यों हुई देरी : टीम में शामिल इमरान और धवल मेहता ने बताया कि ''आम तौर पर खुली तौर पर अंडर ग्राउंड पाइप लाइन के लिए सुरंग खोदना और सिस्टम लगाना दूसरी बात है. क्योंकि पाइप लाइन लगाने के लिए पत्थर मिल जाए तो उसे विस्फोट कर भी बाहर निकाला जा सकता है. लेकिन इस तरह से रेस्क्यू ऑपरेशन चलाना काफी चुनौतीपूर्ण रहता है. यह हमारे लिए बिल्कुल नया अनुभव रहा. क्योंकि इस काम में बहुत सावधानियां और चुनौतियां भी कम नहीं थी. अंदर सुरंग बनाने के लिए डोलोमाइट के चट्टानों को सुरक्षित तरीके से तोड़ना आसान काम नहीं था.''
कब दिखा राहुल : इस रेस्क्यू ऑपरेशन को सेना और NDRF के साथ कंपनी के मजदूर अंजारूल और मुरफल हक शामिल थे. दोनों टनल के अंदर ड्रील मशीन से निकलने वाले डस्ट, पत्थर के टुकड़े और मलबे को बाहर निकाल रहे थे. 14 जून की रात करीब 9.40 बजे सुरंग की खुदाई करते हुए राहुल का पैर नजर आया. इसके बाद अधिकारियों के निर्देश पर अजारुल ने खुद सेफ्टी बेल्ट लगाकर सर नीचे कर बोर के नीचे उतरा. वहां जाकर राहुल को आवाज दी और फिर उसे होल से बाहर निकालकर सेफ्टी बेल्ट लगाया और फिर राहुल को बाहर निकाला (India biggest rescue operation in Janjgir) गया.
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कितनी थी अंदर जगह : अंजारूल और मुरफुल ने बताया कि ''राहुल जिस बोर में फंसा था वह उसकी चौड़ाई और गोलाई महज एक फीट थी. लेकिन, राहुल जहां गिरा था। वहां तीन फीट चौड़ा होल था और वह पत्थर के नीचे टिका था. उसके हाथ और पैर पानी में डूबा हुआ था. इस दौरान पांच दिन तक राहुल उसमें फंसा हुआ था. उसके पैर हाथ मुड़े हुए थे.''