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मुद्रास्फीति पर विफलता की वजह सरकार को बताएगा RBI, एमपीसी की बैठक इसी सप्ताह

इस साल जनवरी से ही मुद्रास्फीति लगातार छह प्रतिशत से ऊपर बनी हुई है. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) इस संबंध में एक रिपोर्ट सरकार को सौंपेगा (RBIs rate setting panel to discuss inflation report this week).

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Published : Oct 30, 2022, 3:13 PM IST

मुंबई : छह साल पहले मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) का गठन होने के बाद पहली बार भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) लगातार नौ महीनों तक मुद्रास्फीति को निर्धारित दायरे में नहीं रख पाने पर एक रिपोर्ट तैयार कर सरकार को सौंपेगा (RBIs rate setting panel to discuss inflation report this week).

वर्ष 2016 में मौद्रिक नीति निर्धारण के एक व्यवस्थित ढांचे के रूप में एमपीसी का गठन किया गया था. उसके बाद से एमपीसी ही नीतिगत ब्याज दरों के बारे में निर्णय लेने वाली सर्वोच्च इकाई बनी हुई है. एमपीसी ढांचे के तहत सरकार ने आरबीआई को यह जिम्मेदारी सौंपी थी कि मुद्रास्फीति चार प्रतिशत (दो प्रतिशत घट-बढ़ के साथ) से नीचे बनी रहे.

हालांकि, इस साल जनवरी से ही मुद्रास्फीति लगातार छह प्रतिशत से ऊपर बनी हुई है. सितंबर में भी उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) पर आधारित खुदरा मुद्रास्फीति 7.4 प्रतिशत पर दर्ज की गई. इसका मतलब है कि लगातार नौ महीनों से मुद्रास्फीति छह प्रतिशत के संतोषजनक स्तर से ऊपर बनी हुई है.

मुद्रास्फीति का यह स्तर दर्शाता है कि आरबीआई अपना निर्दिष्ट दायित्व निभाने में असफल रहा है. दरअसल, आरबीआई अधिनियम की धारा 45जेडएन में प्रावधान है कि लगातार तीन तिमाहियों यानी लगातार नौ महीनों तक मुद्रास्फीति के निर्धारित स्तर से ऊपर रहने पर केंद्रीय बैंक को अपनी नाकामी के बारे में सरकार को एक समीक्षात्मक रिपोर्ट सौंपनी होगी.

इस रिपोर्ट में आरबीआई को यह बताना होता है कि मुद्रास्फीति को काबू में रख पाने में उसकी नाकामी की क्या वजह रही? इसके साथ ही आरबीआई को यह भी बताना होता है कि वह स्थिति को काबू में लाने के लिए किस तरह के कदम उठा रहा है.

इन वैधानिक प्रावधानों और मुद्रास्फीति के मौजूदा स्तर को देखते हुए आरबीआई ने तीन नवंबर को एमपीसी की विशेष बैठक बुलाई है जिसमें सरकार को सौंपी जाने वाली रिपोर्ट को तैयार किया जाएगा. एमपीसी के छह-सदस्यीय पैनल की अगुवाई गवर्नर शक्तिकांत दास करेंगे.

आरबीआई ने गत गुरुवार को जारी बयान में कहा था कि आरबीआई अधिनियम की धारा 45जेडएन के प्रावधानों के अनुरूप तीन नवंबर को एमपीसी की एक अतिरिक्त बैठक बुलाई जा रही है. यह धारा मुद्रास्फीति को तय दायरे में रख पाने में विफलता से जुड़े प्रावधान निर्धारित करती है.

सरकार ने 31 मार्च,2021 को जारी एक अधिसूचना में कहा था कि मार्च, 2026 तक आरबीआई को मुद्रास्फीति को चार प्रतिशत (दो प्रतिशत अधिक या दो प्रतिशत कम) के भीतर रखना होगी. इस तरह सरकार ने पांच वर्षों के लिए मुद्रास्फीति को अधिकतम छह प्रतिशत तक रखने का दायित्व आरबीआई को सौंपा था.

लेकिन वर्ष 2022 इस लक्ष्य की दिशा में असफल साबित हुआ है. जनवरी से लेकर सितंबर तक लगातार मुद्रास्फीति छह प्रतिशत से अधिक रही है. इसपर काबू पाने के लिए आरबीआई ने एमपीसी की सिफारिश पर नीतिगत रेपो दर को पिछले पांच महीनों में 1.90 प्रतिशत तक बढ़ा दिया है. अब रेपो दर 5.90 प्रतिशत हो चुकी है जो इसका तीन साल का सर्वोच्च स्तर है.

पढ़ें- विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट, 537.518 से घटकर 532.66 अरब डॉलर हुआ

(पीटीआई-भाषा)

मुंबई : छह साल पहले मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) का गठन होने के बाद पहली बार भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) लगातार नौ महीनों तक मुद्रास्फीति को निर्धारित दायरे में नहीं रख पाने पर एक रिपोर्ट तैयार कर सरकार को सौंपेगा (RBIs rate setting panel to discuss inflation report this week).

वर्ष 2016 में मौद्रिक नीति निर्धारण के एक व्यवस्थित ढांचे के रूप में एमपीसी का गठन किया गया था. उसके बाद से एमपीसी ही नीतिगत ब्याज दरों के बारे में निर्णय लेने वाली सर्वोच्च इकाई बनी हुई है. एमपीसी ढांचे के तहत सरकार ने आरबीआई को यह जिम्मेदारी सौंपी थी कि मुद्रास्फीति चार प्रतिशत (दो प्रतिशत घट-बढ़ के साथ) से नीचे बनी रहे.

हालांकि, इस साल जनवरी से ही मुद्रास्फीति लगातार छह प्रतिशत से ऊपर बनी हुई है. सितंबर में भी उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) पर आधारित खुदरा मुद्रास्फीति 7.4 प्रतिशत पर दर्ज की गई. इसका मतलब है कि लगातार नौ महीनों से मुद्रास्फीति छह प्रतिशत के संतोषजनक स्तर से ऊपर बनी हुई है.

मुद्रास्फीति का यह स्तर दर्शाता है कि आरबीआई अपना निर्दिष्ट दायित्व निभाने में असफल रहा है. दरअसल, आरबीआई अधिनियम की धारा 45जेडएन में प्रावधान है कि लगातार तीन तिमाहियों यानी लगातार नौ महीनों तक मुद्रास्फीति के निर्धारित स्तर से ऊपर रहने पर केंद्रीय बैंक को अपनी नाकामी के बारे में सरकार को एक समीक्षात्मक रिपोर्ट सौंपनी होगी.

इस रिपोर्ट में आरबीआई को यह बताना होता है कि मुद्रास्फीति को काबू में रख पाने में उसकी नाकामी की क्या वजह रही? इसके साथ ही आरबीआई को यह भी बताना होता है कि वह स्थिति को काबू में लाने के लिए किस तरह के कदम उठा रहा है.

इन वैधानिक प्रावधानों और मुद्रास्फीति के मौजूदा स्तर को देखते हुए आरबीआई ने तीन नवंबर को एमपीसी की विशेष बैठक बुलाई है जिसमें सरकार को सौंपी जाने वाली रिपोर्ट को तैयार किया जाएगा. एमपीसी के छह-सदस्यीय पैनल की अगुवाई गवर्नर शक्तिकांत दास करेंगे.

आरबीआई ने गत गुरुवार को जारी बयान में कहा था कि आरबीआई अधिनियम की धारा 45जेडएन के प्रावधानों के अनुरूप तीन नवंबर को एमपीसी की एक अतिरिक्त बैठक बुलाई जा रही है. यह धारा मुद्रास्फीति को तय दायरे में रख पाने में विफलता से जुड़े प्रावधान निर्धारित करती है.

सरकार ने 31 मार्च,2021 को जारी एक अधिसूचना में कहा था कि मार्च, 2026 तक आरबीआई को मुद्रास्फीति को चार प्रतिशत (दो प्रतिशत अधिक या दो प्रतिशत कम) के भीतर रखना होगी. इस तरह सरकार ने पांच वर्षों के लिए मुद्रास्फीति को अधिकतम छह प्रतिशत तक रखने का दायित्व आरबीआई को सौंपा था.

लेकिन वर्ष 2022 इस लक्ष्य की दिशा में असफल साबित हुआ है. जनवरी से लेकर सितंबर तक लगातार मुद्रास्फीति छह प्रतिशत से अधिक रही है. इसपर काबू पाने के लिए आरबीआई ने एमपीसी की सिफारिश पर नीतिगत रेपो दर को पिछले पांच महीनों में 1.90 प्रतिशत तक बढ़ा दिया है. अब रेपो दर 5.90 प्रतिशत हो चुकी है जो इसका तीन साल का सर्वोच्च स्तर है.

पढ़ें- विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट, 537.518 से घटकर 532.66 अरब डॉलर हुआ

(पीटीआई-भाषा)

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