पुरी : ओडिशा के पुरी में विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा के लिए तैयारियां जोरोंशोरों से जारी है. तीन रथों के निर्माण में विश्वकर्मा सेवक समेत अन्य कारीगर लगे हुए हैं. तीन रथों 'तालध्वज' पर भगवान बलराम, 'दर्पदलन' या 'पद्म रथ' पर देवी सुभद्रा और 'नंदीघोष' या 'गरुड़ध्वज' पर सवार होकर भगवान श्रीजगन्नाथ अपने मौसी के घर श्रीगुंडिचा मंदिर जाते हैं. लाखों श्रद्धालुओं तीनों रथों को श्रीमंदिर से तीन किमी दूर स्थित श्रीगुंडिचा मंदिर तक खिंचकर ले जाते हैं. इन तथ्यों के बारे में तो आप जानते ही होंगे, लेकिन क्या आप जानते हैं कि रथों के निर्माण में भारतीय रेलवे का भी बड़ा हाथ होता है. रेलवे के कई इंजीनियर्स भी रथों के निर्माण में भरपूर सहयोग करते हैं.
जी हां, तीनों रथों के निर्माण में भारतीय रेलवे की एक इकाई ईस्ट कोस्ट रेलवे भी महत्वपूर्ण सहयोग रहता है. ऐसा माना जाता है कि जब भगवान श्रीजगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा के रथों को खिंचकर श्रीगुंडिचा मंदिर की ओर लिया जाता है, तो इस दौरान तीनों रथ भले ही कुछ देर के लिए रूक जाएं, लेकिन पहिये एक बार भी रिवर्स या पीछे नहीं जाने चाहिए. इस बात का ख्याल ईस्ट कोस्ट रेलवे के मैकेनिकल इंजीनियर्स रखते हैं. अपनी तकनीकी ज्ञान का इस्तेमाल कर रथों के लिए ऐसे पुर्जे बनाते हैं, जिससे मान्यता बनी रहे. जानकर आपको हैरानी होगी कि रथों के सारे पार्ट्स भले ही लकड़ियों से निर्मित होते हैं, लेकिन इसमें एक पार्ट मैकेनिक यंत्र भी होता है.
इस साल रेलवे के 40 इंजीनियरों की एक अनुभवी टीम 'ट्रैवर्सिंग जैक' का इस्तेमाल करते हैं. ये यंत्र रथों को उठाने, उनकी दिशा बदलने और पहियों पर नियंत्रण रखने में सक्रिय रूप से कार्य करता है. सभी जैक धुरी के नीचे अलग-अलग स्थानों पर रखे जाते हैं और रथों को उठाने और उनके हलचल को नियंत्रण करते हैं. लगभग 30 नग ट्रैवर्सिंग स्क्रू जैक ('नंदीघोष' के 12 नग, 'तालध्वज' के 10 नग और 'देवदलन' के 08 नग) इस कार्य में उपयोग किए जाते हैं. महापर्व के पांचवें दिन (हेरा पंचमी) में सभी तीन रथों की दिशा बदली जाती है और उन्हें वापसी दी दिशा में खड़ा किया जाता है. इतना ही नहीं, तीनों रथों को बाहुड़ा यात्रा (रथों की वापसी) की तैयारी के लिए नाक-चना द्वार (श्रीगुंडिचा मंदिर का निकास द्वार) पर खड़ा किया जाता है, जिसमें 'ट्रैवर्सिंग जैक' का अहम उपयोग होता है.
रथयात्रा के दिन इंजीनियरों की ये टीम श्रीमंदिर से श्रीगुंडिचा मंदिर तक की यात्रा के दौरान रथों में किसी भी प्रकार की खराबी न हो, यह सुनिश्चित करते हैं. बाहुड़ा के दिन, श्रीगुंडिचा मंदिर से श्रीमंदिर तक की यात्रा के दौरान टीम रथों की सुरक्षा करती है. सिंहद्वार पर पहुंचने के बाद तीनों रथों पर भगवान का 'सुना वेश' और अन्य विभिन्न पूर्जा-अर्चनाएं होती हैं, जिसके लिए एक बार फिर से रथों को सही जगह पर अगल-बगल रखा जाता है. प्रत्येक रथ को उनकी सही जगह पर खड़ा करने के लिए 6 फीट से 8 फीट तक शिफ्ट किया जाता है. यह पूरी तरह से रेलवे के इस टीम द्वारा सावधानी पूर्वक किया जाता है, जिसका नेतृत्व पुरी कोचिंग डिपो के यांत्रिक विभाग के वरिष्ठ सेक्शन इंजीनियर संभालते हैं.
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रेलवे की ये डेडिकेटेड टीम 11 दिनों तक इस रथ की सेवा में दिन रात कार्यरत रहते हैं. इन 11 दिनों में इंजीनियर्स पूर्ण रूप से शाकाहारी भोजन करते हैं. मांसाहार या मद्यपान 11 दिनों तक के लिए निषेध रहता है. इतना ही नहीं, इंजीनियर्स अपनी इस अतिरिक्त सेवा के लिए डीए नहीं लेते यानी पूर्ण रूप से भगवान श्रीजगन्नाथ की सेवा में नियोजित रहते हैं.
गौरतलब है कि साल 1960 के दशक में रथयात्रा के दौरान बड़े और ऊंचे पहियों की वजह से काफी दिक्कतें आती थी. उस वक्त रथयात्रा के संचालन में कई चुनौतियां थी, जिससे पूरा करना प्रशासनिक अधिकारियों के बस में भी नहीं था. 1960 के रथयात्रा में भगवान श्रीजगन्नाथ के रथ का एक पहिया इलेक्ट्रिक खम्भे से टकराकर क्षतिग्रस्त हो गया था और इससे भक्तों के बीच काफी अफरातफरी मच गई थी. उसी समय वहां मौजूद एक रेलवे अधिकारी ने अपनी सूझबूझ और तत्परता से रथ के पहिए को ठीक किया, जिसके बाद रथयात्रा सफलतापूर्ण रूप से संपन्न हुआ. इस घटना के बाद से ही ईस्ट कोस्ट रेलवे ने रथयात्रा के सुचारू संचालन और पहियों और रथों की देखरेख की जिम्मेदारी संभाल ली. प्रशासनिक अधिकारियों की मानें, तो हर साल लाखों श्रद्धालु रथयात्रा के दिन पुरी पहुंचते हैं. इस साल रथयात्रा 20 जून को है और इसकी तैयारी पुरी में अभी से शुरू हो चुकी है. मंदिर के सामने ही रथों का निर्माण हो रहा है, जिसमें हजारों कारीगर नियोजित हैं. चार जून को स्नान पूर्णिमा के बाद 5 जून से 19 जून तक भगवान श्रीजगन्नाथ के दर्शन बंद हो जाएंगे.