नई दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने बहू से दुष्कर्म के आरोपी 65 वर्षीय एक व्यक्ति को जमानत देने से इनकार करते हुए कहा कि बलात्कार केवल एक शारीरिक हमला नहीं है बल्कि यह पीड़िता के मानस को खराब करने के साथ उसके पूरे व्यक्तित्व को नष्ट कर सकता है. न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने यह भी कहा कि बलात्कार एक अत्यंत जघन्य अपराध है और इसका आघात पीड़िता को वर्षों तक सहन करना पड़ सकता है.
अदालत ने 21 अक्टूबर को जमानत याचिका खारिज करते हुए पारित आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता पर बहू के साथ बलात्कार करने का आरोप लगाया गया है, और इस समय उसके द्वारा पीड़िता को धमकी देने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता. अदालत ने यह भी कहा कि मौजूदा मामले में दो महीने के अंतराल के बाद प्राथमिकी दर्ज की गई, इसका मतलब यह नहीं है कि बहू ने झूठा मामला दर्ज कराया है.
न्यायाधीश ने कहा, 'बलात्कार एक अत्यंत जघन्य अपराध है जिसमें न्यूनतम 7 साल की सजा का प्रावधान है और यह उम्रकैद तक जा सकती है. प्राथमिकी में कहा गया है कि पीड़िता (बहू) डरी हुई थी और अपने माता-पिता को घटना के बारे में बताने से हिचक रही थी, लेकिन जब याचिकाकर्ता द्वारा उसे बार-बार प्रताड़ित किया गया और बलात्कार किया गया, तो उसने हिम्मत जुटाई और अपने माता-पिता को घटना के बारे में सूचित किया.'
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न्यायाधीश ने कहा, 'बलात्कार केवल शारीरिक हमला नहीं है; यह अक्सर पीड़िता के संपूर्ण व्यक्तित्व के लिए विनाशकारी होता है. बलात्कार के कृत्य में पीड़िता के मानस को डराने की क्षमता है और यह आघात वर्षों तक बना रह सकता है.' अदालत ने यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता पिछले साल अगस्त से हिरासत में है, निचली अदालत को जितनी जल्दी हो सके आरोपों के बारे में बहू की दलीलें सुनने और उनकी पड़ताल करने का निर्देश दिया.
याचिकाकर्ता ने इस आधार पर जमानत मांगी कि मामला एक वैवाहिक विवाद से उत्पन्न हुआ है और बहू परिवार में सभी को फंसाने की कोशिश कर रही है. अदालत को बताया गया कि याचिकाकर्ता की आयु 65 वर्ष है और वह बीमार है. उसके खिलाफ निचली अदालत के समक्ष आरोप पत्र दाखिल किया जा चुका है. अभियोजन और बहू ने जमानत देने का विरोध किया था.
(पीटीआई-भाषा)