हैदराबाद : आज अंतरराष्ट्रीय नस्लीय भेदभाव उन्मूलन दिवस है. 21 मार्च 1960 को दक्षिण अफ्रीका के शार्पविले में नरसंहार की घटना हुई थी. दक्षिण अफ्रीकी पुलिस ने नस्लभेद के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे 69 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था. उसी त्रासदी को आज याद करते हैं. नस्लवाद के खिलाफ लड़ाई में यह घटना बहुत ही ऐतिहासिक मानी जाती है. इसके बावजूद नस्लवाद की घटना पूरी तरह से रूकी नहीं है.
भारत में भी गोरी चमड़ी के प्रति बहुत अधिक मोह है. शादी के लिए दिए जाने वाली एड में भी इसे आप देख सकते हैं. फेयर स्कीन एक फैक्टर माना जाता है. व्हाइट बनाने का दावा करने वाली फेयर क्रीम की सालों से लोकप्रयिता बनी हुई है. पर आजतक किसी ने इसके खिलाफ नस्लवाद का आरोप नहीं लगाया. वैसे, जब इस पर आपत्ति जताई गई, तो बहुत सारे ब्रैंड ने उस प्रोडक्ट का नाम बदल दिया. पर क्या यह समस्या का समाधान है. 'डार्क इज ब्यूटीफुल' कैंपेन चलाने वाली कविता इमैनुअल इसे सही नहीं मानती हैं. वह इस तरह के उत्पादों को बाजार में आने से रोकना चाहती हैं. कोरोना महामारी के दौर में भी उत्तर-पूर्वी राज्यों की कई महिलाओं के खिलाफ ऐसी टिप्पणियों का मामला सामने आया था.
पिछले साल 26 मार्च को मणिपुर की एक महिला को 'कोरोना' बताकर मुंह पर थूक फेंका गया था. यह कोई पहली घटना नहीं है. इन्हें 'चिंकी' और 'नेपाली' कहना तो आम प्रचलन-सा हो गया है.
उत्तर पूर्व की रहने वाली तिब्बती-मंगोलायड मूल के लोगों पर नस्लवादी टिप्पणियों के कई मामले सामने आए हैं. एनसीएटी (नेशनल कैंपेन अगेंस्ट टॉर्चर) ने कोरोना के दौर में ऐसे कम से कम 30 मामलों को दर्ज किया है, जहां उन पर सिर्फ कोरोना को लेकर टिप्पणी की गई.
इसके अलावा भारत में 'काला', 'दलित', 'अछूत' जैसे शब्द लंबे समय से प्रचलन में हैं. ये सारे शब्द हमारी जाति व्यवस्था में खामियों की ओर इंगित करते हैं. जाति व्यवस्था से ऊपजी समस्याएं हैं.
चमड़ी के रंगों को लेकर भारतीय पूर्वाग्रही हैं. यहां तक कि वीजा में भी इसका असर देखा जा सकता है. जहां एक सप्ताह का समय लगना चाहिए, रंग की वजह से तीन महीने तक का समय लग जाता है.
भारत में नस्लभेद पश्चिमी देशों जैसा नहीं
पश्चिम के देशों में फैली इस व्यवस्था की भारतीय जाति व्यवस्था से तुलना नहीं की जा सकती है. भारत में रंगों को लेकर की गई टिप्पणी बिल्कुल अलग है. पश्चिम में की जाने वाली नस्लीय टिप्पणी घृणा से उपजी होती है. भारत में बहु संस्कृतिवाद सोच की वजह से रंगों को लेकर की जाने वाली टिप्पणी का असर कम हो जाता है. पश्चिम में ऐसा नहीं है. वहां एक-दूसरे को स्पेस नहीं देते हैं. आध्यात्मिक लोकतंत्र हमारी धर्मनिरपेक्षता का आधार है.
जातिवाद और नस्लीय अपराधों को अपराध की श्रेणी में लाने की जरूरत
'अत्याचार के खिलाफ राष्ट्रीय अभियान' ने गृह मंत्रालय को एक आवेदन दिया है, जिसमें जातिवाद और नस्लीय अपराधों को अपराध की श्रेणी में लाने की मांग की गई है. आईपीसी की धारा 52बी और 153सी में नए प्रावधान जोड़ने की वकालत की गई है. सजा के लिए आईपीसी की धारा 509ए में बदलाव की अपील की गई है. अरुणाचल प्रदेश के निदो तानिया और कांगो के मसंदों केतंडा ओलिवियर की नस्लीय प्रेरित हमलों के बावजूद हम ऐसे अपराधों पर नियंत्रण नहीं लगा सके हैं.
भारतीय मूल के लोगों के खिलाफ होने वाले नस्लीय अपराधों पर एक नजर
2021
- मार्च - कर्नाटक के उडुप्पी की रहने वाली रश्मि सामंत को ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में नस्लीय भेदभाव का सामना करना पड़ा.
2017
- फरवरी महीने में भारतीय इमीग्रेंट इंजीनियर श्रीनिवास कुचिभोटला और उनके दो साथियों को अमेरिकी नेवी के एडम पुरिंटन ने गोली मारी. भोटला की मौत हो गई. दोनों साथी घायल हो गए. एडम अभी जेल में है.
- तेलंगाना के वारंगल की 27 वर्षीय छात्रा मामिडाला वामसी की कैलिफोर्निया में गोली मारकर हत्या कर दी गई.
2016
- नवंबर में भारतीय मूल के 17 साल के सिख युवक गुरनूर सिंह निहाल को उस समय गोली मार दी गई, जब वह काम करने के बाद घर लौट रहा था. घटना कैलिफोर्निया के कंडींस्की-वे की है. उसकी हत्या घर के गराज की में की गई थी.
2015
- अगस्त में वर्जीनिया में मामूली कहासुनी के बाद मणिपुर के रहने वाले शाओलिन चांडम को उसके घर के बाहर गोली मारी गई.
- जुलाई में न्यूजर्सी में भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक पर हमला किया गया. उसके परिवार ने कहा कि भारतीय होने की वजह से उस पर हमला किया गया था.
2013
- सितंबर महीने में कोलंबिया यूनिवर्सिटी के सिख प्रोफेसर को 'ओसामा' और 'आतंकी' कहा गया. उसके बाद उन पर हमला किया गया. घटना अमेरिका के हार्लेम की है.
- अगस्त महीने में 80 साल के बुजुर्ग सिख पर ब्रिटेन की एक लड़की ने ट्रिनिटी स्ट्रीट में हमला किया था. उनकी पगड़ी खोल दी गई थी. उन्हें गंभीर चोटें आईं.
- जुलाई महीने में कैलिफोर्निया के एक गुरुद्वारा के बाहर 'आतंकी' शब्द लिख दिया गया. घटना अमेरिका के ओक क्रीक गुरुद्वारा की है. गुरुद्वारा पर हमला बोला गया था.
- जून में कनाडा में हिंदू मंदिर में तोड़फोड़ की गई. मई में गुरुद्वारा के बाहर बुजुर्ग सिख पर हमला किया गया.
- फरवरी में फ्लोरिडा में सिख युवक पर ताबड़तोड़ हमले किए गए. डेटोना बीच की घटना है. हमलावर ट्रक पर चढ़ कर आए थे.
2012
- दिसंबर- भारतीय प्रवासी, सुनंदो सेन क्वींस में एक मेट्रो प्लेटफॉर्म पर खड़े थे, तभी पीछे से किसी ने धक्का दे दिया. घटना के बाद उसकी मृत्यु हो गई.
- श्वेत वर्चस्ववादी सोच रखने वाले वेड माइकल पेज ने ओक क्रीक स्थिति गुरुद्वारा के बाहर ताबड़तोड़ गोली चलाई.