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SC Cancels Karnataka Man Bail : सुप्रीम कोर्ट ने पत्नी की हत्या के आरोपी कर्नाटक के एक व्यक्ति की जमानत रद्द कर दी - SC cancels bail of Karnataka man

पति के द्वारा कथित तौर पर पत्नी की हत्या के आरोपी की सुप्रीम कोर्ट ने जमानत रद्द कर दी. साथ ही कोर्ट ने इस बारे में बेंगलुरु के पुलिस आयुक्त को निर्देशित किया कि वह मृतक के परिवार को नई गवाही के लिए पूरी सुरक्षा प्रदान करें. SC Cancels Bail Of A Karnataka Man, supreme Court

supreme Court
सुप्रीम कोर्ट
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Oct 21, 2023, 6:25 PM IST

Updated : Oct 21, 2023, 7:17 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (supreme Court) ने कथित तौर पर अपनी पत्नी की हत्या के आरोपी पति की जमानत रद्द कर दी. मामले में कहा गया कि आरोपी ने अपनी पत्नी की हत्या के लिए सुपारी लेकर हत्यारों पर काम पर रखकर आपराधिक साजिश रची थी. इस संबंध में कोर्ट ने बेंगलुरु के पुलिस आयुक्त को निर्देश दिया कि वह मृतक के परिवार को उनकी नई गवाही तक पूरी सुरक्षा प्रदान करें. साथ ही कहा गया कि वह यह भी जांच करें कि क्या उन्हें अपने बयानों से पीछे हटने के लिए धमकाया गया, प्रेरित किया गया या किसी बाहरी दबाव का सामना करना पड़ा.

शीर्ष अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि यदि कोई गवाह अनावश्यक कारणों से मुकर जाता है और सच्चाई को बयान करने में अनिच्छुक होता है, तो इससे न्याय प्रशासन को अपूरणीय क्षति होगी और आपराधिक न्याय प्रणाली की विश्वसनीयता खत्म हो जाएगी. न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने 20 अक्टूबर को दिए गए फैसले में कहा कि यह काफी निराशाजनक है और यह उनकी अंतरात्मा को चुभता है कि एक हत्या की गई महिला का परिवार शत्रुतापूर्ण हो गया और अपने पहले के बयानों से मुकर गया.

पीठ ने कहा कि तथ्य यह है कि मृतक के माता-पिता और बहन अपने पहले के दृष्टिकोण से पीछे हट गए हैं, जहां उन्हें वर्ष 2019 से विभिन्न मंचों पर जोरदार आंदोलन करते पाया गया था. शीर्ष अदालत ने किसी भी प्रकार की धमकी, मनोवैज्ञानिक भय या किसी प्रलोभन से मुक्त, अनुकूल माहौल सुनिश्चित करने के बाद परिवार को दोबारा जिरह के लिए वापस बुलाने का निर्देश जारी किया. कोर्ट ने कहा कि हमारा ध्यान इस तथ्य की ओर आकर्षित किया गया है कि मुख्य गवाहों की जांच और जिरह के बीच लगभग 20 दिनों का अंतर था, जो कोई और नहीं बल्कि अपीलकर्ता (मृतक की मां) हैं, बेटी (मृतक की बहन) और मृतक के पिता थे, वे सभी अपने पहले के बयानों से मुकर गए हैं.

पीठ की ओर से फैसला लिखने वाले न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि यह सुनिश्चित करना अदालतों का एक कठिन कर्तव्य है कि आपराधिक न्याय प्रणाली जीवंत और प्रभावी हो और अपराध के अपराधी दंडित न हों. पीठ ने कहा कि नरेंद्र बाबू (प्रतिवादी नंबर 1) को जमानत दिए जाने के बाद असामान्य और आश्चर्यजनक घटनाएं घटी हैं. जो मुकदमे के प्रभावी, निष्पक्ष और स्वतंत्र निर्णय के लिए गवाहों को वापस बुलाने का मामला बनाती हैं.

न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि गवाहों को धमकी और डराना हमेशा सभी हितधारकों के बीच गंभीर चिंता का विषय रहा है. अदालत के सामने एक बड़ी चुनौती गवाहों की शत्रुता के बीच निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करना है. कोर्ट ने कहा कि उनकी गवाही अदालत के समक्ष मुकदमे के भाग्य को निर्धारित करती है, जिसके बिना अदालत राडार और कम्पास के बिना समुद्र में नाविक की तरह होगी. न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि यदि कोई गवाह अनावश्यक कारणों से मुकर जाता है और बेदाग सच्चाई को बयान करने में अनिच्छुक होता है तो इससे न्याय प्रशासन को अपूरणीय क्षति होगी.

वहीं आपराधिक न्याय प्रणाली की प्रभावकारिता और विश्वसनीयता में बड़े पैमाने पर समाज का विश्वास खत्म हो जाएगा और बिखर जाएगा. पीठ ने कहा कि वह इस बात से संतुष्ट है कि बाबू को जमानत देने और उसके लिए गवाहों को अपने पक्ष में करने के साहसिक अवसर के बीच प्रथम दृष्टया निकटता है, इसलिए वह कम से कम सभी महत्वपूर्ण गवाहों तक जमानत की रियायत का आनंद लेने का हकदार नहीं है. पीठ ने कहा कि अदालतें अक्सर एक तरफ संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित स्वतंत्रता के सबसे कीमती अधिकार और दूसरी तरफ व्यवस्थित समाज के अधिकार, जो कानून के शासन के लिए प्रतिबद्ध है, के बीच संतुलन बनाने में जूझती रहती हैं.

पीठ ने कहा कि मृतक की मां बाबू को दी गई जमानत को रद्द करने की मांग करते हुए इस अपील को सख्ती से आगे बढ़ा रही है और अपने मुख्य परीक्षण में उसने विशेष रूप से बाबू को अपनी बेटी की हत्या में मुख्य साजिशकर्ता के रूप में नामित किया है. शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि मृतक ने अपने जीवनकाल में पुलिस आयुक्त को पत्र लिखकर अपने पति और परिवार के सदस्यों के खिलाफ सुरक्षा और कानूनी कार्रवाई की मांग की थी.

ये भी पढ़ें - SC on Sewer Death: सुप्रीम कोर्ट ने सीवर में मौत का मुआवजा किया 30 लाख, कहा- हाथ से मैला ढोने की प्रथा हो खत्म

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (supreme Court) ने कथित तौर पर अपनी पत्नी की हत्या के आरोपी पति की जमानत रद्द कर दी. मामले में कहा गया कि आरोपी ने अपनी पत्नी की हत्या के लिए सुपारी लेकर हत्यारों पर काम पर रखकर आपराधिक साजिश रची थी. इस संबंध में कोर्ट ने बेंगलुरु के पुलिस आयुक्त को निर्देश दिया कि वह मृतक के परिवार को उनकी नई गवाही तक पूरी सुरक्षा प्रदान करें. साथ ही कहा गया कि वह यह भी जांच करें कि क्या उन्हें अपने बयानों से पीछे हटने के लिए धमकाया गया, प्रेरित किया गया या किसी बाहरी दबाव का सामना करना पड़ा.

शीर्ष अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि यदि कोई गवाह अनावश्यक कारणों से मुकर जाता है और सच्चाई को बयान करने में अनिच्छुक होता है, तो इससे न्याय प्रशासन को अपूरणीय क्षति होगी और आपराधिक न्याय प्रणाली की विश्वसनीयता खत्म हो जाएगी. न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने 20 अक्टूबर को दिए गए फैसले में कहा कि यह काफी निराशाजनक है और यह उनकी अंतरात्मा को चुभता है कि एक हत्या की गई महिला का परिवार शत्रुतापूर्ण हो गया और अपने पहले के बयानों से मुकर गया.

पीठ ने कहा कि तथ्य यह है कि मृतक के माता-पिता और बहन अपने पहले के दृष्टिकोण से पीछे हट गए हैं, जहां उन्हें वर्ष 2019 से विभिन्न मंचों पर जोरदार आंदोलन करते पाया गया था. शीर्ष अदालत ने किसी भी प्रकार की धमकी, मनोवैज्ञानिक भय या किसी प्रलोभन से मुक्त, अनुकूल माहौल सुनिश्चित करने के बाद परिवार को दोबारा जिरह के लिए वापस बुलाने का निर्देश जारी किया. कोर्ट ने कहा कि हमारा ध्यान इस तथ्य की ओर आकर्षित किया गया है कि मुख्य गवाहों की जांच और जिरह के बीच लगभग 20 दिनों का अंतर था, जो कोई और नहीं बल्कि अपीलकर्ता (मृतक की मां) हैं, बेटी (मृतक की बहन) और मृतक के पिता थे, वे सभी अपने पहले के बयानों से मुकर गए हैं.

पीठ की ओर से फैसला लिखने वाले न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि यह सुनिश्चित करना अदालतों का एक कठिन कर्तव्य है कि आपराधिक न्याय प्रणाली जीवंत और प्रभावी हो और अपराध के अपराधी दंडित न हों. पीठ ने कहा कि नरेंद्र बाबू (प्रतिवादी नंबर 1) को जमानत दिए जाने के बाद असामान्य और आश्चर्यजनक घटनाएं घटी हैं. जो मुकदमे के प्रभावी, निष्पक्ष और स्वतंत्र निर्णय के लिए गवाहों को वापस बुलाने का मामला बनाती हैं.

न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि गवाहों को धमकी और डराना हमेशा सभी हितधारकों के बीच गंभीर चिंता का विषय रहा है. अदालत के सामने एक बड़ी चुनौती गवाहों की शत्रुता के बीच निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करना है. कोर्ट ने कहा कि उनकी गवाही अदालत के समक्ष मुकदमे के भाग्य को निर्धारित करती है, जिसके बिना अदालत राडार और कम्पास के बिना समुद्र में नाविक की तरह होगी. न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि यदि कोई गवाह अनावश्यक कारणों से मुकर जाता है और बेदाग सच्चाई को बयान करने में अनिच्छुक होता है तो इससे न्याय प्रशासन को अपूरणीय क्षति होगी.

वहीं आपराधिक न्याय प्रणाली की प्रभावकारिता और विश्वसनीयता में बड़े पैमाने पर समाज का विश्वास खत्म हो जाएगा और बिखर जाएगा. पीठ ने कहा कि वह इस बात से संतुष्ट है कि बाबू को जमानत देने और उसके लिए गवाहों को अपने पक्ष में करने के साहसिक अवसर के बीच प्रथम दृष्टया निकटता है, इसलिए वह कम से कम सभी महत्वपूर्ण गवाहों तक जमानत की रियायत का आनंद लेने का हकदार नहीं है. पीठ ने कहा कि अदालतें अक्सर एक तरफ संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित स्वतंत्रता के सबसे कीमती अधिकार और दूसरी तरफ व्यवस्थित समाज के अधिकार, जो कानून के शासन के लिए प्रतिबद्ध है, के बीच संतुलन बनाने में जूझती रहती हैं.

पीठ ने कहा कि मृतक की मां बाबू को दी गई जमानत को रद्द करने की मांग करते हुए इस अपील को सख्ती से आगे बढ़ा रही है और अपने मुख्य परीक्षण में उसने विशेष रूप से बाबू को अपनी बेटी की हत्या में मुख्य साजिशकर्ता के रूप में नामित किया है. शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि मृतक ने अपने जीवनकाल में पुलिस आयुक्त को पत्र लिखकर अपने पति और परिवार के सदस्यों के खिलाफ सुरक्षा और कानूनी कार्रवाई की मांग की थी.

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Last Updated : Oct 21, 2023, 7:17 PM IST
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